दरबार में रामन की विद्वत्ता
देश के विभिन्न भागों से प्रतिष्ठित विद्वान नियमित शास्त्रार्थ के लिए राजदरबार में एकत्र हुए। रामन सीधे दरबार में पहुंचे और श्रोताओं के बीच बैठ गए। विषय था माया पर चर्चा और वाद विवाद। उत्तर भारत के एक विद्वान ने कहा कि पृथ्वी पर हम जो कुछ देखते हैं वह केवल माया है। हमारा सुख, कल्याण, दुख सब माया है। केवल विचार ही हमें सुखी या दुखी बनाते हैं। दरबार में उपस्थित सभी लोग उनके तर्कों से सहमत हुए। सबने विद्वान की प्रशंसा की।
राजा ने चारों ओर देखा कि कोई विद्वान का प्रतिवाद करे। परंतु कोई आगे नहीं आया। राजा निराश हुए। तभी अचानक उन्होंने एक आवाज सुनी और वह रामन थे जो विद्वान को चुनौती दे रहे थे। रामन बोले कि मित्रों इस विद्वान ने कहा कि विचार ही हमें सुख दुख देते हैं। अभी दोपहर है और प्रिय राजा हमें भरपेट भोजन दें। हम सब भोजन कर सकते हैं। विद्वान को भोजन नहीं करना चाहिए। उन्हें सोचना चाहिए कि वे भोजन कर रहे हैं। क्या यह विचार उनकी भूख शांत करेगा। रामन के इस तर्क ने विद्वान को असमंजस में डाल दिया। राजा ने रामन को अपने पास बुलाया और बधाई दी। उन्होंने रामन को स्वर्ण मुद्राएं सहित अनेक पुरस्कार दिए।