गिलहरी और खोया हुआ अखरोट का खज़ाना
हरे भरे जंगल में एक छोटी, फुर्तीली और चंचल गिलहरी रहती थी, जिसका नाम चिक्की था. चिक्की अपनी चमकीली भूरी पूंछ और तेज़ नज़रों के लिए मशहूर थी. वह हमेशा शाखाओं से शाखाओं पर कूदती रहती, अपने लिए अखरोट, फल, और बीज इकट्ठे करती. लेकिन उसकी सबसे खास बात थी उसका अपने खज़ाने को छुपाने का तरीका. वह हर साल सर्दियों से पहले सैकड़ों अखरोट इकट्ठे कर रख देती थी.
एक दिन सुबह, जब सूरज की हल्की रोशनी पत्तों पर चमक रही थी, चिक्की अपने खज़ाने को देखने गई. लेकिन जैसे ही उसने अपनी सुरक्षित जगह पर पहुंचकर अखरोटों का ढेर ढूंढना चाहा, उसके पांव जैसे ठिठक गए. पूरे अखरोट गायब थे. जहां कल तक उसके सैकड़ों अखरोट रखे थे, वहां अब खाली मिट्टी थी.
चिक्की हैरान रह गई. उसने चारों ओर देखा, पेड़ के तने को टटोला, जमीन को खुरचा, लेकिन कहीं कोई निशान नहीं था. उसने घबराकर कहा, मेरे अखरोट का खज़ाना कहां चला गया.
जंगल में खबर फैलते देर नहीं लगी. चिड़ियों ने चहक कर बताया कि गिलहरी का खज़ाना गायब हो गया. बंदरों ने पेड़ों से झूलते हुए सुना और उन्होंने भी अफवाहें फैलाना शुरू कर दीं. किसी ने कहा कि कोई जानवर ले गया होगा, तो किसी ने कहा कि हवा में उड़ गया होगा. लेकिन चिक्की जानती थी कि यह कोई साधारण चोरी नहीं थी. उसमें किसी की चाल थी.
चिक्की ने तय किया कि वह इस रहस्य को जरूर सुलझाएगी. वह सबसे पहले अपने दोस्त मीठू तोते के पास गई. मीठू तेज़ दिमाग का और बातूनी था. चिक्की ने कहा, मीठू, तुमने कुछ देखा हो तो बता दो. मेरा खज़ाना चोरी हो गया है.
मीठू ने थोड़ी देर सोचा और बोला, मैंने कल रात पेड़ों के बीच कुछ सरसराहट तो सुनी थी. लेकिन मैं समझ नहीं पाया कि कौन था. शायद कोई छोटा जानवर था.
चिक्की को यह बात महत्वपूर्ण लगी. सरसराहट का मतलब था कि कोई आसपास घूम रहा था. उसने तुरंत मीठू का शुक्रिया किया और अगले सुराग की तलाश में आगे बढ़ गई.
अब वह गई भालू भोंदू के पास. भोंदू बड़ा सा, गोलमटोल भालू था, पर दिल का बहुत अच्छा. चिक्की ने उससे पूछा कि क्या उसने कुछ देखा है. भोंदू ने कहा, मैं तो सोया हुआ था. लेकिन सुबह जब उठा तो मुझे अखरोटों की हल्की सी महक आई थी. जैसे कोई पास से अखरोट लेकर गुजरा हो.
यह सुराग भी कम महत्वपूर्ण नहीं था. चिक्की अब और चौकन्नी हो गई. अखरोटों की खुशबू उसके खज़ाने से ही आती थी. इसका मतलब चोर ज़्यादा दूर नहीं गया था.
वह आगे बढ़ती हुई कछुआ धीमीराम के पास पहुंची. धीमीराम बहुत धीमा था, पर उसकी नज़रें तेज थीं. चिक्की ने जब उससे पूछा, तो उसने कहा, मैंने कल रात किसी को भागते देखा था. एक छोटा सा जानवर था, जिसकी पूंछ बहुत लंबी थी. मुझे लगा शायद कोई चूहा हो.
चिक्की ने सोचा, लंबी पूंछ वाला छोटा जानवर. यह तो मूसू चूहा हो सकता है. मूसू जंगल में सबसे शरारती चूहा माना जाता था. वह अक्सर खाने की चीजें इधर उधर छुपाया करता था.
चिक्की तुरंत मूसू की गुफा की ओर निकल गई. गुफा के पास पहुंचते ही उसे अखरोटों की महक तेज़ महसूस हुई. उसका दिल जोर से धड़कने लगा. उसने धीरे से झांककर अंदर देखा. और जैसे ही उसने देखा, वह चौंक गई.
गुफा के अंदर मूसू बैठा था और उसके सामने चिक्की के अखरोटों का बड़ा सा ढेर रखा था. मूसू उन्हें चमकती आंखों से गिन रहा था. चिक्की ने गुस्से में कहा, मूसू, यह सब मेरे अखरोट हैं. इन्हें तुरंत वापस दो.
मूसू एक पल के लिए घबरा गया, पर फिर बोला, मैं तो बस उन्हें उधार ले गया था. मुझे लगा तुम बाद में ले जाओगी.
चिक्की ने सख्त आवाज में कहा, यह उधार नहीं, चोरी है. तुमने मेरा पूरा खज़ाना चुरा लिया. अगर तुम्हें अखरोट चाहिए थे तो मुझसे मांग सकते थे.
मूसू को अपनी गलती समझ आ गई. वह बोला, माफ करना चिक्की, मुझे भूख लगी थी और मैंने जल्दी में गलत काम कर दिया. मैं सारे अखरोट वापस कर दूंगा.
चिक्की ने कहा, ठीक है. लेकिन आगे से मदद मांगना, चोरी करना नहीं.
मूसू ने सिर झुकाकर हां कहा और सभी अखरोट बाहर लाकर रख दिए. चिक्की ने राहत की सांस ली. लेकिन उसने महसूस किया कि इतनी मेहनत से ढूंढने के बाद यह खज़ाना अब उसके लिए और भी खास हो गया है.
वह वापस अपने पेड़ के पास पहुंची और अखरोटों को एक नई, ज्यादा सुरक्षित जगह छुपा दिया. इस बार उसने खज़ाना छुपाते समय मीठू, भोंदू और धीमीराम को भी बता दिया ताकि अगर फिर कभी कोई मुसीबत आए तो वे उसकी मदद कर सकें.
उस शाम जब सूरज ढल रहा था, जंगल में खुशियों की आवाज़ें गूंज रही थीं. सबको पता चल चुका था कि चिक्की का अखरोट का खज़ाना मिल गया है. चिक्की ने सोचते हुए कहा, असली खज़ाना दोस्त होते हैं, अखरोट तो आते जाते रहते हैं.
जंगल के सभी जानवर खुश थे. चिक्की अपनी पूंछ हिलाते हुए पेड़ पर चढ़ गई और अगले दिन की तैयारियों में लग गई. अब उसे पता था कि जीवन में सबसे जरूरी चीज भरोसा और दोस्ती है. अगर दोस्त साथ हों तो कोई भी खोया खज़ाना वापस मिल सकता है.
कहानी यहीं खत्म नहीं होती. अगले दिन चिक्की ने एक और अच्छा काम किया. उसने मूसू के लिए कुछ अखरोट अलग रख दिए. उसने सोचा कि गलती करने पर भी कोई मौका तो मिलना चाहिए. मूसू ने उन अखरोटों को बड़े प्यार से लिया और वादा किया कि वह आगे से कभी किसी की चीज़ नहीं चुराएगा.
धीरे धीरे जंगल में सब कुछ पहले जैसा होने लगा. लेकिन चिक्की की कहानी जंगल में हर जगह सुनाई जाने लगी. चिड़ियाँ अपने बच्चों को बतातीं कि मेहनत से इकट्ठा किया खज़ाना कितना कीमती होता है. बंदर अपने बच्चों को बताते कि दोस्ती सबसे बड़ा सहारा है. और भोंदू तो हर किसी को बताता कि खुशबू से भी सुराग मिल सकते हैं.
समय बीतता गया. लेकिन चिक्की की समझदारी की कहानी जंगल की हवा में हमेशा गूंजती रही. यह कहानी बच्चों को यह भी सिखाती है कि गलती करना बुरा नहीं, लेकिन गलती मानना और सुधार करना सबसे बड़ा काम है.
अब चिक्की पहले से ज्यादा सावधान हो गई थी. वह अपने खज़ाने को समय समय पर देखती और जरूरत पड़ने पर दोस्तों से मदद भी मांगती. मीठू ऊपर से निगरानी करता, भोंदू आसपास सुगंध का ध्यान रखता और धीमीराम अपनी धीमी चाल में भी हर कोने पर नज़र रखता.
इस तरह जंगल में फिर से शांति और सहयोग का माहौल बन गया. और चिक्की, जो कभी अकेले अखरोट छुपाती थी, अब समझ चुकी थी कि मिलजुलकर रहने में ही असली खुशी है.
यह कहानी बताती है कि जीवन में चीजें चाहे खो जाएं, लेकिन विश्वास और अच्छे दोस्त हों तो सब वापस पाया जा सकता है. मेहनत, समझदारी, और अपनेपन से हर मुश्किल हल हो जाती है.
और यही सीख जंगल के हर छोटे बड़े जानवर ने याद रखी