लोमड़ी-और-अंगूर-की-बेल-–-The-Fox-and-the-Grapevine

लोमड़ी और अंगूर की बेल – The Fox and the Grapevine

जानवरों की कहानियाँ

लोमड़ी और अंगूर की बेल 

घने जंगल के बीचोंबीच एक शांत खुली जगह थी, जहाँ सूरज की रोशनी इतनी सुंदर तरीके से गिरती थी कि वह जगह हमेशा गर्म और सुखद महसूस होती थी। वहाँ एक पुरानी लकड़ी की बाड़ के सहारे एक लंबी अंगूर की बेल फैली हुई थी। बेल इतनी ऊपर चढ़ चुकी थी कि उसके हरे पत्ते हवा के साथ ऐसे झूमते थे जैसे किसी गाने पर नाच रहे हों। जब फल पकते थे तो उन पर हल्की चमक दिखाई देती, और जंगल के कई जानवर दूर से आकर उन्हें देखते थे, लेकिन बेल इतनी ऊपर थी कि सिर्फ कुछ खास पक्षी ही उसे आसानी से खा सकते थे।

एक दिन सुबह के समय जब जंगल में हल्की हवा बह रही थी और पत्ते सौम्य आवाज़ करते हुए हिल रहे थे, एक लोमड़ी वहाँ से गुज़री। वह अपने दिन का खाना ढूंढ रही थी। उसकी आँखें तेज थीं और उसकी चाल फुर्तीली। जंगल में उसकी गिनती चतुर जानवरों में होती थी और वह हमेशा सोचती थी कि वह किसी भी मुश्किल को आसानी से हल कर सकती है। लेकिन उस दिन वह काफी भूखी थी। उसने सुबह से कुछ नहीं खाया था और उसे लग रहा था कि अगर जल्द ही खाना नहीं मिला तो उसकी हालत खराब हो जाएगी।

तभी उसकी नजर अंगूर की बेल पर पड़ी। ऊँचे पर लटकते चमकदार, बैंगनी अंगूर उसके लिए किसी खजाने से कम नहीं लग रहे थे। वे इतने ताज़ा और रसीले दिखाई दे रहे थे कि उसे लगा जैसे उनसे मीठी सुगंध हवा में तैर रही हो। लोमड़ी का मुँह पानी से भर गया। उसने सोचा कि यदि वह इन अंगूरों को पा ले, तो उसका दिन बन जाएगा। उसकी भूख भी मिटेगी और मन भी खुश हो जाएगा।

लोमड़ी बेल के नीचे खड़ी होकर ऊपर देखने लगी। अंगूर उसकी पहुँच से काफी दूर थे। उसने चारों ओर देखा कि कहीं कोई पत्थर, लकड़ी या कुछ और मिले जिससे वह ऊपर पहुँच सके, लेकिन वहाँ सिर्फ मुलायम मिट्टी थी और बाड़ की लकड़ी इतनी कमजोर कि उस पर चढ़ा भी नहीं जा सकता था। लोमड़ी ने सोचा कि वह अपनी लंबाई और कूद का इस्तेमाल करके अंगूर छू सकती है। आखिर वह हल्की और फुर्तीली थी, और उसे अपनी तेजी और चतुराई पर पूरा भरोसा था।

वह थोड़ी दूरी तक पीछे गई और फिर तेजी से दौड़कर ऊँची छलाँग लगाई। उसकी कूच इतनी तेज़ थी कि कुछ पल के लिए लगा कि वह अंगूर को छू लेगी। लेकिन जैसे ही वह हवा में ऊपर उठी, उसे एहसास हुआ कि वह अभी भी काफी नीचे है। वह अंगूर के गुच्छे से कुछ इंच दूर रहकर जमीन पर वापस आ गिरी। उसने धूल झाड़ी और फिर ऊपर देखा। अंगूर अब भी अपनी जगह पर थे, हल्की हवा में झूलते हुए।

लोमड़ी ने यह सोचकर दोबारा कोशिश की कि पहली छलाँग vielleicht कमजोर थी। उसने फिर पीछे जाकर और ताकत लगाकर एक और लंबी छलाँग मारी। इस बार वह थोड़ा और ऊपर पहुँची, लेकिन फिर भी अंगूरों को छू नहीं पाई। वह फिर जमीन पर आ गिरी और थोड़ी देर तक हाँफती रही। उसकी सांसें तेज चल रही थीं, लेकिन उसके अंदर अभी भी उम्मीद थी कि वह तीसरी बार पूरी ताकत से कूदे तो शायद काम हो जाए।

उसने तीसरी बार दौड़ लगाई। उसकी आँखें अंगूरों पर टिकी थीं, जैसे वह उन्हें जीत लेना चाहती हो। वह फिर कूदी। हवा में एकदम सीधी, उसके पंजे फैले हुए, लेकिन जब वह सबसे ऊपर पहुँची, तब भी अंगूर उससे काफी दूर थे। इस बार वह पहले की तुलना में ज्यादा ज़ोर से जमीन पर गिरी। उसके पैरों में हल्का दर्द हुआ, और उसकी भूख उसे और भी कमजोर कर रही थी।

अब लोमड़ी थक चुकी थी। उसने बेचैन होकर चारों ओर देखा और फिर आकर बाड़ के पास बैठ गई। उसकी नजर अंगूरों पर ही थी, लेकिन अब उनमें उसे पहले जैसा आकर्षण महसूस नहीं हो रहा था। उसकी सांस धीमी हो चुकी थी, और वह अपने मन में यह सोच रही थी कि इतनी मेहनत के बावजूद वह अंगूरों तक क्यों नहीं पहुँच पाई। उसे अपने अंदर थोड़ी झुंझलाहट महसूस हुई और थोड़ा सा दुख भी।

कुछ देर शांत बैठकर उसने खुद को संभाला। लेकिन फिर उसके मन में एक नई सोच आई। उसने खुद से कहा, “ये अंगूर इतने ऊपर लगे हुए हैं। अगर ये सच में मीठे और अच्छे होते, तो शायद नीचे की तरफ भी कुछ गिरते। ये शायद कच्चे होंगे। यही वजह है कि इन्हें कोई और जानवर नहीं खा रहा। अगर ये स्वादिष्ट होते, तो इतने अकेले क्यों होते?”

उसकी आवाज में धीरे-धीरे आत्म-सांत्वना का सुर आने लगा। उसे लगा कि खुद को यह समझा लेना जरूरी है, वरना उसकी असफलता उसे परेशान करती रहती। उसने आगे कहा, “हाँ, बिल्कुल। ये अंगूर वैसे भी खट्टे होंगे। मैं क्यों इतनी मेहनत कर रही थी? मुझे ऐसे अंगूरों की जरूरत ही नहीं।” वह उठी, अपनी पूंछ झटकी और दूसरी दिशा में चलने लगी।

लेकिन उसकी चाल में जो पहले आत्मविश्वास था, वह अब नहीं था। वह जानती थी कि वह अंगूर चाहती थी और वह उन्हें हासिल नहीं कर पाई। अंगूर उसके लिए बहुत ऊपर थे, और उसकी सारी कोशिशें नाकाम रहीं। लेकिन अपने आप से यह मान लेना उसके लिए आसान नहीं था। इसलिए उसने बहाना बनाया, ताकि उसे अपनी असफलता का सामना न करना पड़े।

जंगल में आगे जाते हुए उसने एक खरगोश को देखा। खरगोश ने पूछा कि वह इतनी थकी क्यों है। लोमड़ी ने बड़े गर्व से कहा, “मैं अंगूरों के पास गई थी, लेकिन वे तो कच्चे और खट्टे थे। मैं उन्हें खाना चाहती भी नहीं थी।” खरगोश ने उसे देखा, लेकिन कुछ कहा नहीं। उसने समझ लिया कि लोमड़ी अंगूर नहीं पा सकी।

अब लोमड़ी धीरे-धीरे जंगल की गहराई में खो गई, लेकिन उसके मन में वह बेल और अंगूरों की तस्वीर बनी रही। कभी-कभी वह खुद से पूछती कि अगर वह एक बार और कोशिश करती तो शायद सफल हो जाती। लेकिन वह सवाल उसके मन में ही रहा। उसने कभी उस जगह वापस जाने की हिम्मत नहीं की, क्योंकि उसे इस बात का डर था कि उसकी कोशिश फिर नाकाम हो सकती है।

इस कहानी की असली सीख यही थी कि लोमड़ी ने अपनी असफलता स्वीकारने की जगह बहाने बना लिए। वह यह नहीं मान पाई कि वह अंगूरों तक पहुँच नहीं सकी। उसने अपनी कमी को समझने और उससे सीखने के बजाय खुद को सांत्वना दे दी। लेकिन सच्चाई यही थी कि अंगूर खट्टे नहीं थे। बस वह उन्हें पाने में असफल हुई थी। अगर वह मान लेती कि शायद उसे और मेहनत करनी चाहिए थी, या कोई और तरीका सोचती, तो वह अगली बार बेहतर कर सकती थी। लेकिन उसने अपने मन को झूठ से भर लिया, और यही उसकी सबसे बड़ी गलती थी।

शिक्षा: असफलता को स्वीकारना सीखो, बहाने मत बनाओ।

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