भेड़िया और मेमने का बहाना
एक शांत पहाड़ी इलाके में एक साफ बहती छोटी नदी थी जिसके किनारे हर सुबह नरम धूप चमकती थी और घास पर ओस मोती जैसी टिमटिमाती थी। उसी नदी के पास एक चरवाहे का टोल चलता था लेकिन कभी-कभी कुछ मेमने अकेले चरने चले जाते थे क्योंकि वहाँ का वातावरण सौम्य था। इसी इलाके में एक चालाक भेड़िया भी रहता था जो हमेशा आसान शिकार की तलाश में घूमता था लेकिन कई बार उसे कुछ न कुछ मुश्किलें आ जाती थीं। एक दिन सुबह का समय था जब चरवाहे के झुंड से थोड़ा दूर एक छोटा, भोला सा मेमना नदी किनारे आकर पानी पीने लगा। उसे नहीं पता था कि पास ही झाड़ियों के पीछे एक भेड़िया उसे घूर रहा है और मन ही मन सोच रहा है कि आज का नाश्ता आसान होगा।
भेड़िया मन ही मन बोला कि आज इसे पकड़ना मुश्किल नहीं होगा लेकिन अगर बिना किसी बात के हमला करूँगा तो यह सब भागेंगे और शोर मचाएँगे, इसलिए कोई बहाना बनाना अच्छा रहेगा। वह धीरे से बाहर निकलकर मेमने के सामने पहुँचा और जोर से गरजकर बोला कि तुम मेरी नदी का पानी क्यों गंदा कर रहे हो, मैं यही पानी पीने आया था। मेमना डर तो गया लेकिन उसने हिम्मत जुटाई और शांत स्वर में बोला कि मैं नीचे की ओर खड़ा हूँ और आप ऊपर हैं, मैं पानी कैसे गंदा कर सकता हूँ। भेड़िया उसकी बात से थोड़ा चिढ़ गया क्योंकि उसका बहाना काम नहीं आया। उसने जल्दी से दूसरा आरोप लगाया कि तुम वही हो जिसने पिछले साल मुझे बुरा कहा था। मेमने ने सीधा तर्क दिया कि पिछले साल तो मेरा जन्म ही नहीं हुआ था, मैं इतना बड़ा भी नहीं हूँ कि किसी से झगड़ा करूँ। भेड़िया फिर असहज हुआ क्योंकि उसकी दूसरी कोशिश भी गलत साबित हो गई थी।
वह कुछ सोचकर बोला कि चलो मान लिया, लेकिन तुम्हारे परिवार ने मेरे साथ बुरा किया है इसलिए अब मैं तुम्हें छोड़ नहीं सकता। मेमना शांत रहा और बोला कि मैंने अपने परिवार को कभी किसी से झगड़ते नहीं देखा, वे तो चरवाहे के साथ रहते हैं और किसी जानवर को परेशान नहीं करते, आप झूठ बोल रहे हैं। भेड़िया अब पूरी तरह असफल हो चुका था क्योंकि वह हर बहाने में फँस रहा था। उसकी झूठी बातें मेमने की सादगी और तर्क के सामने टिक नहीं रहीं थीं। तभी दूर से चरवाहे के कुत्तों की आवाज सुनाई दी जो पास ही चर रहे झुंड को संभाल रहे थे। भेड़िया समझ गया कि अब ज्यादा देर रुका तो खुद मुश्किल में पड़ जाएगा।
उसने आखिरी बार मेमने पर गुर्राते हुए कहा कि भाग्य अच्छा है जो मैं जल्दी में हूँ, और घने जंगल की ओर भाग गया। मेमना राहत की साँस लेकर जल्दी से झुंड की ओर लौट गया ताकि दोबारा अकेला न रहे। उसने सोचा कि डर के समय भी समझदारी से काम लिया जाए तो कई बार बड़े से बड़ा खतरा भी टल सकता है। शाम को जब चरवाहे ने मेमने को सुरक्षित देखा तो वह मुस्कुराया और बाकी झुंड के साथ उसे पास ही चरने लगा। उस दिन मेमने ने एक बात अच्छे से समझ ली थी कि गलत आरोप लगाने वाला हमेशा खुद ही हारता है, क्योंकि सच्चाई की ताकत कहीं ज्यादा मजबूत होती है। वह मन ही मन बोला कि आज भले ही मैं छोटा हूँ, लेकिन सच्चाई की शक्ति हमेशा बड़ी होती है और झूठ की कोई नींव नहीं होती। वह रात को अपनी माँ के पास लेटते हुए यह सोचता रहा कि किसी भी समस्या में शांत रहकर तर्क देना ही सबसे सही रास्ता होता है।
शिक्षा: झूठे आरोप कभी टिक नहीं पाते, सच्चाई हमेशा जीतती है।