मोर और कौवों की सभा
एक बड़े और शांत से जंगल के बीचोंबीच एक पुराना सा बरगद का पेड़ था, जिसकी फैली हुई शाखाओं पर हर तरह के पक्षी बैठते थे। उसी पेड़ के नीचे रोज सुबह एक छोटी सी सभा लगती थी। इस सभा में जंगल के कई पक्षी आते थे, पर सबसे ज्यादा चर्चा का विषय हमेशा मोर और कौवे होते थे। मोर अपनी खूबसूरत पंखों वाली शान से सबका ध्यान खींचता था और कौवे अपनी सादगी और काम में तेज होने के कारण पहचाने जाते थे। एक दिन सुबह मोर बेहद गर्व से पेड़ के नीचे उतरा और सभा की ओर बड़े अंदाज में चलकर आया।
उसकी पूंछ के रंग-बिरंगे पंख हवा में लहरा रहे थे, और उसे लग रहा था कि सारी दुनिया सिर्फ उसी को देख रही है। कौवों ने हमेशा की तरह उसे सम्मान से देखा, पर मोर के मन में उस दिन अलग ही घमंड था। सभा शुरू हुई और सभी पक्षी अपनी-अपनी बातें कर रहे थे, तभी मोर ने ऊँची आवाज में कहा, “तुम सब मेरी सुंदरता देखो, ऐसा रूप किसी और के पास नहीं है। मेरे जैसे पंख किसके पास है?” कौवे शांत रहे, पर मोर की बातों में थोड़ा तीखापन था जैसे वह खुद को बाकी सब से ऊपर समझने लगा हो। उसने आगे कहा, “तुम कौवों के पंख तो काले और साधारण हैं।
कोई रंग नहीं, कोई चमक नहीं, कोई खूबसूरती नहीं। कैसे उड़ते हो तुम ऐसे पंखों के साथ?” कौवों में से एक अनुभवी कौवा आगे आया और बोला, “सुंदरता अच्छी है, पर असली उपयोगिता ज्यादा मायने रखती है। हमारे साधारण पंख हमें हल्का रखते हैं और हम आसानी से उड़ पाते हैं। उड़ान ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है।” मोर ने हँसकर कहा, “उड़ान? उड़ान तो मैं भी भर सकता हूँ। पर मेरे जैसे खूबसूरत पंख कौन दिखा सकता है? तुम सब मुझसे सीखो कि असली शान कैसी होती है।” कौवे जानते थे कि मोर कुछ ज्यादा ही घमंड में है, इसलिए उन्होंने बात बढ़ाना सही नहीं समझा। सभा खत्म हुई और सब अपने-अपने कामों में लग गए। मोर अपने पंखों को चमकाता रहा और उन्हें हवा में फैलाकर इतराता रहा। उसे लगता था कि वह जंगल का सबसे खास पक्षी है। अगले दिन सुबह मौसम बदलने लगा।
आसमान में बादल घिर आए और हवा में ठंडक भरने लगी। कौवों ने तुरंत ऊँची जगह ढूंढ ली ताकि बारिश में उन्हें मुश्किल न हो। कुछ देर बाद तेज हवा चलने लगी और फिर बरसात शुरू हो गई। पानी की बूंदें बड़ी थीं और लगातार गिर रही थीं। कौवे हल्के पंखों की वजह से जल्दी से ऊपर उड़ गए और सुरक्षित टहनियों पर जाकर बैठ गए। मोर ने भी उड़ने की कोशिश की, पर बारिश का असर सबसे ज्यादा उसके पंखों पर हुआ। उसके भारी पंख पानी की वजह से और भी भारी हो गए और वह हवा में उठ ही नहीं पा रहा था। हर बार जब वह पंख फैलाता तो पानी टपककर उसके शरीर पर गिरता और पंख जमीन की ओर झुक जाते। उसने फिर कोशिश की, पर बेकार। वह ज्यादा दूर नहीं जा पाया और उसे मजबूरी में एक झाड़ी के नीचे जाकर खड़ा होना पड़ा। बारिश तेज हो चुकी थी और मोर भीगकर परेशान हो गया था।
उसे लगा कि उसके चमकीले पंख अब उतने उपयोगी नहीं रहे। कौवे ऊपर से यह सब देख रहे थे। उनमें से वही अनुभवी कौवा बोला, “हमारी सादगी ने हमें बचा लिया। हमारे हल्के पंख बारिश में भी हमें उड़ने देते हैं।” मोर शर्मिंदा होकर चुप रहा। बारिश खत्म होने पर कौवे नीचे आए और मोर की ओर देखा। मोर अब पहले जैसा गर्व वाला नहीं था। उसने धीमी आवाज में कहा, “आज समझ आया कि सिर्फ सुंदर होना ही काफी नहीं। काम की चीजें ही असली ताकत होती हैं। मेरे पंख खूबसूरत जरूर हैं, पर मुश्किल समय में उन्होंने मेरी मदद नहीं की।”
अनुभवी कौवा बोला, “हर चीज की अपनी खासियत होती है, पर घमंड कभी सही नहीं होता। हमने अपने पंखों को हमेशा उपयोगी समझा है, इसलिए हम बारिश में भी उड़ पाए।
शिक्षा: सौंदर्य से ज्यादा उपयोगिता जरूरी है।