इच्छाओं का झरना
पर्वतों के बीच बसा एक छोटा सा गाँव था जिसका नाम था सूरजपुरा, यहाँ लोग मेहनती थे लेकिन प्रकृति की एक कमी उन्हें हमेशा परेशान करती थी। गाँव में पानी बहुत कम था, कुएँ सूखे पड़े थे और बारिश भी कब की बंद हो जाती थी। लोग हर रोज कई कोस दूर जाकर पानी लाते थे और फिर भी उनका घड़ा कभी पूरा नहीं भर पाता था। इसी कठिनाई के बीच गाँव वाले एक पुराने किस्से पर भरोसा करते थे, कहा जाता था कि पहाड़ों के बीच एक इच्छाओं का झरना है जो साल में सिर्फ एक बार किसी एक व्यक्ति की सच्ची इच्छा पूरी करता है। कोई नहीं जानता था कि वह झरना कहाँ है या किसकी इच्छा मानेगा, लेकिन यह कहानी हर बच्चे के दिल में उम्मीद जगाती थी।
सूरजपुरा में एक छोटी लड़की रहती थी जिसका नाम था लीना। वह अपनी माँ के साथ रहती थी और दोनों का जीवन मुश्किलों से भरा था। लीना की माँ खेतों में काम करती थी और लीना घर संभालती, पानी भरकर लाती और पढ़ाई भी करती। लीना ने बचपन से ही उस झरने की कहानी सुनी थी और वह मन ही मन सोचती कि काश उसका गाँव कभी पानी की परेशानी से मुक्त हो जाता। वह न अपनी इच्छा अपने लिए चाहती थी और न किसी चीज का लालच करती थी। उसका दिल साफ था और वह सिर्फ यही चाहती थी कि लोग रोज पानी के लिए तरसे नहीं।
एक दिन गाँव का बुजुर्ग सबको इकट्ठा करके बोला कि आज साल का वही दिन है जब झरना इच्छा सुनता है। सबके मन में उत्साह था लेकिन साथ ही डर भी। कौन जाएगा इतनी दूर पहाड़ों में और कौनसी इच्छा चुनी जाएगी यह अँधेरे में था। कई लोग अपनी-अपनी इच्छाएँ सोच रहे थे, किसी को धन चाहिए था, किसी को अपने खेतों में ज्यादा फसल, किसी को अपना घर ठीक कराना था। लीना चुप बैठी सब सुन रही थी। उसकी माँ ने उससे कहा कि वह घर रहे, क्योंकि पहाड़ी रास्ते कठिन हैं, लेकिन लीना ने दृढ़ होकर कहा कि वह जरूर जाएगी क्योंकि उसकी इच्छा सिर्फ उसके लिए नहीं थी।
अगली सुबह लीना अपने छोटे से थैले में थोड़ा सा खाना और पानी लेकर निकल पड़ी। सूरज उग ही रहा था और पहाड़ियों की हवा ठंडी थी। रास्ते में झाड़ियाँ, पत्थर और संकरी पगडंडियाँ थीं। लीना कई बार फिसली, कई बार रुकी, लेकिन उसके मन में एक ही बात थी कि अगर वह उस झरने तक पहुँच गई तो उसका गाँव हमेशा के लिए बदल सकता है। पहाड़ी पर चढ़ते हुए उसे पुराने वृक्षों की सरसराहट सुनाई देती, ऐसा लगता था जैसे वे उसे रास्ता दिखा रहे हों। थोड़ी दूर चलते ही उसे एक चमकती रोशनी दिखाई दी जो पत्थरों के पीछे से आ रही थी, उसने वही दिशा पकड़ी और आगे बढ़ी।
काफी देर बाद जब लीना एक बड़ी चट्टान के पास पहुँची तो उसने पहली बार अपना सपना सच होते देखा। सामने एक छोटा लेकिन बेहद खूबसूरत झरना था, उसकी धार हल्की नीली चमक में बह रही थी और उसके आस-पास फूल उस चमक में जैसे जीवित हो उठे थे। यही था इच्छाओं का झरना। लीना ने झरने के पास जाकर आँखें बंद कीं और अपनी इच्छा कही। उसने कहा कि वह कोई चीज, कोई धन-दौलत नहीं चाहती। उसने कहा कि वह चाहती है कि उसका गाँव हमेशा पानी से भरा रहे, लोग खुश रहें और किसी को पानी के लिए परेशान न होना पड़े। उसकी आवाज में डर नहीं था, सिर्फ सच्ची भावना थी।
झरना अचानक शांत हो गया, जैसे उसकी बात सुन रहा हो। फिर उसकी धारा और तेज हुई और हल्की गूंज हवा में फैल गई। ऐसा लगा जैसे वह उसकी इच्छा को अपने भीतर समा रहा है। लीना ने यह सब देखा और धीरे से पीछे हट गई। उसने सोचा कि बस अब सब झरने की मर्जी पर है, वह सिर्फ इतना चाहती थी कि उसकी प्रार्थना सुनी जाए। उसने झरने को धन्यवाद किया और वापसी के लिए चल पड़ी क्योंकि शाम अब दूर नहीं थी।
शिक्षा: नीयत साफ हो और इच्छा सबके हित में हो तो प्रकृति भी साथ देती है।