सात रंग वाली सात परियाँ
समुद्र के बीचोंबीच एक शांत टापू था जिसे लोग रंग टापू कहते थे। इस टापू की खासियत यह थी कि हर पेड़, हर फूल और हर घास का तिनका हल्की सी चमक लिए रहता था। कहा जाता था कि इस टापू की रक्षा सात खास परियाँ करती हैं, जिनके पास सातों रंगों की शक्ति है। परियाँ टापू की खुशहाली की रखवाली करती थीं, लेकिन कई सालों से उन्होंने अपनी जादू की शक्ति का उपयोग नहीं किया था क्योंकि टापू शांत था और किसी खतरे की कोई खबर नहीं थी। सातों परियाँ अलग-अलग जगह रहती थीं, पर जब भी ज़रूरत होती, वे हवा में चमकते संकेत देखकर एक जगह इकट्ठा हो जातीं।
एक सुबह टापू की चमक अचानक फीकी पड़ने लगी। नीले तालाब का पानी धुंधला हो गया, फूलों की खुशबू कम हो गई और आकाश में हल्की सी परछाईं फैलने लगी। टापू के बुजुर्गों ने कहा कि यह टापू की जादुई शक्ति कमजोर होने का संकेत है। सभी का ध्यान आसमान की तरफ गया जहाँ से हल्की परत जैसा धुआँ नीचे उतर रहा था। यह साधारण धुआँ नहीं था, बल्कि एक पुरानी छाया थी जो वर्षों पहले टापू से बाहर कर दी गई थी। अब वह वापस लौट रही थी और टापू की चमक को सोख रही थी।
लोग डर गए, लेकिन उन्हें उम्मीद थी कि परियाँ मदद करेंगी। तभी आसमान में सात चमकें एक साथ जगमगाईं। लाल परी आग की गर्माहट जैसी चमक के साथ आई। नारंगी परी मुस्कुराती हुई हवा में घूमी। पीली परी के पंख सूरज जैसा उजाला बिखेर रहे थे। हरी परी पेड़ों की खुशबू लाती हुई उतरी। नीली परी के पंखों से पानी की ठंडक महसूस होती थी। जामुनी परी गहरे रंग की सुंदर रोशनी लिए हुए थी और गुलाबी परी के पंख हल्की महक से भरे थे। सातों परियाँ टापू के बीचोंबीच इकट्ठा हुईं और लोगों ने राहत की सांस ली।
लाल परी ने सबको बताया कि टापू का जादू कम होने की वजह यह है कि सातों रंग लंबे समय से एक साथ नहीं आए। उनकी शक्ति तभी पूरी होती है जब वे मिलकर जादू करती हैं। टापू में फैल रही छाया को रोकने के लिए उन्हें एक खास जगह पर जाना होगा जिसे लोग चमक घाटी कहते थे। यह घाटी टापू का सबसे ताकतवर जादुई इलाका था, जहाँ सातों रंगों का मिलन होता था।
परियाँ उड़कर घाटी की ओर निकल गईं। रास्ते में उन्हें कई चुनौतियाँ मिलीं। काले धुंध के गोले उनके सामने आए और उनका रास्ता रोकने लगे। नीली और हरी परी ने मिलकर पानी और हवा की शक्ति से धुंध को हटाया। फिर ऊँचे पत्थरों की दीवार सामने आई जो लगातार हिल रही थी। लाल और नारंगी परी ने गर्म रोशनी से रास्ता साफ किया, जिससे पत्थरों ने अपनी गति रोक दी। अंत में छाया की गहरी परत उनके चारों तरफ फैली, लेकिन पीली, गुलाबी और जामुनी परी की संयुक्त चमक ने छाया को पीछे धकेल दिया। उनकी टीमवर्क टापू की उम्मीद थी।
इंद्रधनुष बनते ही टापू का जादू फिर से सक्रिय हो गया। घाटी चमक उठी और रंगों की लहरें पूरे टापू में फैल गईं। सातों परियों ने महसूस किया कि उनकी शक्ति पहले से ज्यादा मजबूत हो गई है। उन्होंने एक-दूसरे को देखा और मुस्कुराईं। वे समझ गईं कि टापू की रक्षा करने के लिए हमेशा एकता की जरूरत होती है। टापू के लोग खुशी से झूम उठे क्योंकि उनका घर फिर से सुरक्षित था। बच्चों ने परियों के चारों तरफ नाचना शुरू किया, और हवा में सात रंगों की चमक तैरने लगी।
सात रंगों वाली सातों परियाँ आसमान की तरफ उठीं और वहाँ एक बार फिर इंद्रधनुष फैल गया। इससे टापू का नाम फिर सच हो उठा। टापू अब पहले से ज्यादा खूबसूरत लग रहा था और लोगों में नई उम्मीद जाग उठी। सातों परियों ने टापू के ऊपर एक आखिरी चक्कर लगाया, फिर धीरे-धीरे अपनी-अपनी जगह लौट गईं। वे जानती थीं कि जब भी टापू को जरूरत होगी, वे फिर एक होंगी और अपनी संयुक्त शक्ति से उसे सुरक्षित रखेंगी।