चतुर गौरैया और लालची कौआ
हरे पेड़ों और शांत हवा वाले एक छोटे से गाँव के पास एक लंबा-सा बरगद का पेड़ खड़ा था। उसी पेड़ पर रहती थी चतुर गौरैया चिनी, जो मेहनती, शांत स्वभाव वाली और हमेशा दूसरों की मदद करने वाली थी। पेड़ की सबसे ऊपरी डाल पर रहता था कौआ काला, जो चालाक तो था लेकिन उससे भी ज्यादा लालची था। चिनी हर सुबह सूरज की पहली किरण के साथ उड़ जाती और खेतों, बगीचों और पगडंडियों में छोटे-छोटे दाने ढूंढकर वापस आती। उसकी आदत थी कि जितना खाना उसे जरूरत से ज्यादा मिलता, वह बाँट देती, चाहे वह कोई पक्षी हो, गिलहरी हो या पेड़ के नीचे बैठा कोई छोटा चूहा। काला गौरैया की इस आदत को जानता था और हर दिन उसे दाना इकट्ठा करते हुए देखता रहता था। शुरू-शुरू में काला अक्सर सिर्फ एक छोटा-सा दाना मांगता था और चिनी खुशी-खुशी उसे दे देती थी। उसे लगता था कि बाँटने से कभी भी किसी का भला ही होता है। लेकिन धीरे-धीरे काला का लालच बढ़ता गया और वह हर दिन कुछ और ज्यादा मांगने लगा।
पहले वह एक दाना मांगता था, फिर दो, फिर पाँच और फिर पूछता ही रहता कि चिनी ने कितना इकट्ठा किया। चिनी उसे समझाती कि “काला, जितना मिलता है उतने में खुश रहना सीखो, वरना हम खुद ही दुखी हो जाते हैं,” लेकिन काला को तो बस ज्यादा चाहिए था। उसके मन में यह बात और गहराई से बैठने लगी कि चिनी को इतने दाने मिलते हैं, तो क्यों न जितना हो सके उससे ले लिया जाए। एक दिन काला ने सोचा कि आज वह देखेगा कि चिनी आखिर दाने कहाँ से लाती है और कितना इकट्ठा करती है। उसने मन में तय कर लिया कि अगर उसे चिनी का राज मिल गया तो वह पूरी जगह पर अपना अधिकार जमा लेगा। अगले दिन सुबह जैसे ही चिनी उड़कर दाना खोजने निकली, काला भी चुपचाप उसके पीछे उड़ पड़ा। चिनी को भनक भी नहीं लगी कि कोई उसे देख रहा है।
वह खेतों में, झाड़ियों के पास और कच्चे रास्तों पर घूम-घूमकर दाने बटोर रही थी और काला हर जगह पेड़ों या छतों पर छिपकर उसे देखता जा रहा था। काला को लगा कि अगर वह चिनी के पंख जितनी मेहनत नहीं कर सकता, तो धोखे से ही सही, दाने कब्जा कर लेगा। काला की निगाह अचानक एक जगह पर गई जहाँ जमीन में छोटे-छोटे जाल बिछे हुए थे। गाँव के लोग अक्सर चूहों और छोटी चिड़ियों को पकड़ने के लिए ऐसे जाल लगा देते थे। चिनी को इन जालों का पता था, इसलिए वह हमेशा सावधानी से उड़कर दूसरी दिशा में चली जाती थी, लेकिन काला ने इन जालों को ध्यान नहीं दिया। उसकी नजर सिर्फ इस बात पर थी कि चिनी आगे कहाँ जा रही है और क्या उठा रही है। चिनी एक पुराने पेड़ के पास पहुँची जहाँ जमीन पर कई छोटे बीज गिरे हुए थे।
उसने खुशी से उन्हें उठाना शुरू किया। वह हमेशा जानती थी कि किस रास्ते पर जाल होते हैं और किस तरफ सुरक्षित बीज मिल जाते हैं। काला को लगा कि चिनी ये बीज अपने खजाने में जमा करती है, और अगर वह उसका पीछा करता रहा तो वह उसका पूरा स्टॉक ढूंढ लेगा। काला लालच में इतना अंधा हो चुका था कि उसने सोचा कि चिनी शायद किसी बड़ी जगह पर दानों का ढेर जमा कर रही है और वह भी उसे हथिया सकता है। उसने तय किया कि जब चिनी अपने घर लौटेगी तो वह उसका पीछा करेगा और उसकी सारी मेहनत का फायदा लेगा।
लेकिन जैसे ही काला नीचे उड़कर पहुंचा, उसके पैर एक छिपे हुए जाल में फँस गए। जाल अचानक ऊपर उठ गया और काला घबराकर जोर से चीखने लगा। उसके पंख उलझ गए थे और वह बाहर निकलने की कोशिश में खुद को और ज्यादा जकड़ रहा था। चिनी ने उसकी आवाज सुनी और तुरंत उधर उड़कर आई। उसने देखा कि काला जाल में बुरी तरह फँसा हुआ था। चिनी ने कहा, “काला, तुमने पहले कभी इतने अंदर तक दाने खोजने की कोशिश नहीं की। तुम यहाँ कैसे फँस गए?” काला शर्मिंदा हो गया लेकिन दर्द और डर से उसकी आवाज कांपने लगी। उसने कहा, “मैं… मैं तुम्हारा पीछा कर रहा था ताकि पता कर सकूँ कि तुम इतने दाने कहाँ से लाती हो… मुझे लगा अगर मैं तुम्हारी तरह कई जगह से उठा लूँ तो मुझे ज्यादा मिलेगा… मैं लालच में तुम्हारे पीछे आता रहा और यह जाल नहीं देख पाया।” चिनी ने धीरे से कहा, “काला, मैंने हमेशा तुम्हें दाना दिया है, तुमने मांगा भी नहीं था तब भी दिया, फिर भी तुम्हें और चाहिए था। यही लालच मुसीबत बन जाता है।”
काला ने पछतावे से सिर झुका लिया। वह बोला, “मुझे माफ कर दो चिनी, मुझे लगा जितना ज्यादा मिलेगा उतना अच्छा होगा। लेकिन अब समझ आया कि लालच हमें फँसा देता है, बिल्कुल इस जाल की तरह।” चिनी को काला पर तरस आ गया। उसने जितना हो सका, अपनी चोंच से जाल को काटने की कोशिश की। वह बार-बार रस्सी खींचती, फिर उड़कर एक-दो गाँठों को अलग से चोंच से खोलती। कई मिनटों की मेहनत के बाद आखिरकार काला को थोड़ी जगह मिली और वह पंख फड़फड़ाकर बाहर निकलने में सफल हुआ। वह आज़ाद होते ही थककर एक पत्ते वाली डाल पर बैठ गया। चिनी ने कहा, “देखो काला, ये दुनिया सिर्फ अपने लिए नहीं है। अगर हम जरूरत से ज्यादा लेने की कोशिश करते हैं तो अंत में खुद ही फँस जाते हैं।” काला ने सिर हिलाते हुए कहा, “तुम सही कहती हो।
अब से मैं सिर्फ उतना ही लूंगा जितनी जरूरत हो। और किसी का पीछा नहीं करूंगा।” चिनी मुस्कुराई और बोली, “और सबसे जरूरी बात, किसी को धोखा देने से तुम्हें जो मिलता है, वह कभी टिकता नहीं है।” उस दिन से काला पूरी तरह बदल गया। वह अब चिनी से दाने नहीं मांगता था, बल्कि खुद थोड़ा-थोड़ा मेहनत करके खाने की आदत डालने लगा। कभी-कभी चिनी फिर भी उसे दाना दे देती, लेकिन अब काला कहता, “बस जितनी जरूरत है उतना ही काफी है।” धीरे-धीरे जंगल के बाकी पक्षियों को भी पता चला कि काला अब पहले जैसा लालची नहीं रहा। चिनी और काला की दोस्ती फिर से मजबूत हो गई लेकिन इस बार बराबरी और समझदारी के साथ।
और जहाँ पहले लोग काला को लेकर सावधान रहते थे, अब उन्हें उस पर भरोसा होने लगा। चिनी ने एक दिन उससे कहा, “देखो काला, अगर इच्छा सिर्फ सही सीमा में रहे, तो इंसान खुश रहता है। लेकिन जरूरत से ज्यादा पाने की इच्छा दिल में छेद कर देती है।” काला ने कहा, “मैंने सीख लिया है कि दोस्ती में भरोसा सबसे जरूरी है। लालच सब कुछ बिगाड़ देता है।” और इसी सीख के साथ दोनों पेड़ की उस बड़ी डाल पर साथ बैठे, हवा में पत्तों की सरसराहट सुनते हुए। उन्होंने अपने आसपास की दुनिया को देखा और महसूस किया कि सच्ची खुशी बराबरी और संतोष में होती है, न कि ज्यादा पाने की चाहत में।
शिक्षा: लालच दोस्ती को तोड़ देता है, इसलिए जितना जरूरी हो उतना ही पाना सीखना चाहिए।