गधे का काम और कुत्ते की चुप्पी
एक समय की बात है, एक धोबी रहता था। वह एक छोटे से कस्बे के लोगों के गंदे कपड़े धोया करता था। उसके पास एक गधा और एक कुत्ता था। गधे का काम था कस्बे के सभी लोगों का गंदे कपड़ों का बोझ शहर के बाहर बहती नदी तक ले जाना।
वहाँ, नदी के किनारे, धोबी साबुन लगाकर कपड़े धोता और फिर उन्हें सुखाता। कपड़े कुछ सूखने के बाद, वह फिर से सारे कपड़े गधे की पीठ पर लादकर शहर में अपने घर ले आता।
कपड़े धोबी के घर पहुँचने के बाद, उन्हें रस्सियों पर एक-दो दिन और सुखाने के लिए टांग दिया जाता, तब जाकर उन्हें मोड़कर मालिकों को लौटाया जाता। कुत्ते का कर्तव्य था कि वह इस बात का ध्यान रखे कि कपड़े या तो नदी किनारे सुख रहे हों या घर की रस्सियों पर, कोई चोरी न कर ले जाए।
धोबी का कर्तव्य था न केवल स्वयं को, बल्कि गधे और कुत्ते को भी भोजन देना। धोबी ने सोचा कि वह तीनों में सबसे अधिक मेहनत करता है, क्योंकि वह हर कपड़े को साबुन और पानी से रगड़-रगड़कर धोता है। इसलिए उसने सबसे अधिक खाना स्वयं खाया। फिर उसने सोचा कि गधा भी काफी मेहनत करता है, क्योंकि वह कपड़ों के भारी बोझ को इधर-उधर ढोता है। इसलिए उसने गधे को उसकी मेहनत के अनुसार ही भोजन दिया। अंत में, धोबी ने तय किया कि कुत्ता सबसे कम काम करता है, क्योंकि उसे तो केवल चोर के आने पर भौंकना होता था, जो कि बहुत कम होता था। इसलिए उसने कुत्ते को सबसे कम भोजन दिया। इससे कुत्ता चिढ़ गया और उसे लगा कि उसके साथ अन्याय हो रहा है।
कुछ ही समय बाद, एक रात एक चोर आया। वह कई कपड़े ले जा रहा था। कुत्ते और गधे ने यह देख लिया। कुत्ते ने फैसला किया कि चूँकि उसे पर्याप्त खाना नहीं दिया जाता, इसलिए वह भौंकेगा नहीं। परन्तु गधे ने अपने मालिक को आगाह करने के लिए रेंगने (चिल्लाने) लगा। चोर कपड़े लेकर भाग गया, लेकिन गधे के लगातार रेंगने से जगा हुआ मालिक बाहर आया और उसने गधे की खूब पिटाई कर दी। पिटाई इतनी जोरदार थी कि गधे की मौत हो गई।
अगली सुबह धोबी को अपनी गलती का अहसास हुआ। उसने न केवल कपड़े और अपने ग्राहकों का विश्वास खोया था, बल्कि अपना गधा भी खो दिया था, और अब उसके पास सिर्फ एक अधखाया कुत्ता बचा था। उसे समझ आया कि उसे अपने कुत्ते को भी उचित भोजन देना चाहिए था, तो वह भौंककर उसे चोरी के बारे में जगा देता।
क्या यह सत्य नहीं है कि गधे को केवल गधे का काम करना चाहिए, और कुत्ते को केवल कुत्ते का? जब भूमिकाएँ और ज़िम्मेदारियाँ आपस में बदल जाती हैं, तो हमारे दैनिक जीवन में भी गंभीर दुर्घटनाएँ हो जाती हैं। हर एक को उसके योगदान और विशेषज्ञता का सम्मान करना चाहिए। छोटा काम समझकर किसी की उपेक्षा करना, बड़े नुकसान का कारण बन सकता है।
शिक्षा: प्रत्येक व्यक्ति या प्राणी की अपनी एक विशेष भूमिका और योग्यता होती है। उसके महत्व को समझकर उचित सम्मान और पुरस्कार देना ही बुद्धिमानी है। किसी के कार्य को ‘छोटा’ समझकर उसकी उपेक्षा करना, संपूर्ण व्यवस्था को खतरे में डाल सकता है।