परियों-की-रसोई-Fairy-Kitchen

परियों की रसोई – Fairy Kitchen

परी कथाएँ

परियों की रसोई

जंगल के उस कोने में एक पुरानी लकड़ी की झोपड़ी थी जिसे हर कोई सिर्फ एक साधारण घर समझता था, लेकिन असल में वह झोपड़ी एक जादुई रसोई थी जिसे परियाँ चलाती थीं और इस रसोई का एक नियम था कि यहाँ से खाना सिर्फ उन्हें मिलता था जो किसी की मदद करते थे, कोई अच्छा काम करते थे या कहीं किसी तकलीफ में फंसे को राहत देते थे। गाँव वाले अक्सर इसके बारे में बातें करते थे लेकिन किसी ने इसे देखने की कोशिश नहीं की क्योंकि रसोई खुद को उन लोगों के लिए छिपा लेती थी जिनका इरादा अच्छा न हो
गाँव में एक लड़का रहता था जिसका नाम कबीर था, वह बहुत साधारण था पर दिल से बेहद दयालु था, वह हर काम में अपना पूरा मन लगाता था। उसकी माँ अक्सर कहती थी कि जो दिल साफ रखता है, दुनिया की हर राह उसके लिए आसान हो जाती है। एक दिन जब कबीर जंगल में लकड़ियाँ लेने गया तो उसने दूर से एक हल्की खुशबू महसूस की जैसे किसी ने गरमा गरम रोटी बनाई हो, उसका मन उस सुगंध की तरफ खिंचता गया
कुछ कदम बाद उसे झोपड़ी दिखी, दरवाजा हल्का खुला हुआ था और अंदर से एक चमकीली रोशनी झलक रही थी। कबीर ने डरते डरते अंदर झाँका। भीतर छोटी छोटी परियाँ उड़ रही थीं और हवा में चमकते बर्तनों में खाना खुद बन रहा था। किसी बर्तन में सूप तैयार हो रहा था, किसी में मिठाई बन रही थी, परियाँ अपने छोटे चम्मचों से स्वाद चख रही थीं और खुश होती जा रही थीं
कबीर ने सोचा कि उसे यहाँ से कुछ लेने की जरूरत नहीं है, वह सिर्फ देखना चाहता था। तभी एक परी ने उसे देखा और मुस्कराकर बोली कि यह रसोई सिर्फ उनके लिए है जो दूसरों का भला करते हैं। वह बोली कि रसोई इच्छा पूरी करती है लेकिन बिना किसी स्वार्थ के। कबीर ने सिर हिलाया और बोला कि वह बस यह जगह देख कर ही खुश है
उसी दिन लौटते समय उसने देखा कि जंगल में कुछ छोटे जानवर डरे हुए बैठे थे। उनकी आँखों में भूख और बेबसपन साफ दिख रहा था। शायद वे कई दिनों से कुछ नहीं खाए थे। कबीर के पास सिर्फ दो रोटियाँ थीं जो माँ ने उसे दी थीं लेकिन उसके मन में एक ही बात आई कि जिन्हें ज्यादा जरूरत है उन्हें मिलनी चाहिए। उसने अपनी रोटियाँ छोटे जानवरों में बाँट दीं। जानवर धीरे धीरे उसके पास आए और छोटे छोटे निवालों से खाना खाने लगे। उनके चेहरे पर राहत थी, यह देखकर कबीर खुश हो गया
अगले दिन जब वह फिर से उसी रास्ते पर गया तो वही खुशबू फिर हवा में घुल गई। इस बार झोपड़ी का दरवाजा अपने आप खुल गया। वह अंदर गया तो देखा कि आज रसोई पहले से ज्यादा चमक रही थी। दीवारों पर सोने जैसी रोशनी थी और बर्तन खुद उसकी तरफ बढ़ रहे थे जैसे उसे पहचान रहे हों
एक परी उसके पास आई और बोली कि रसोई ने उसका कल का काम देख लिया है। उसने कहा कि दयालु काम हमेशा लौटकर आता है, बस समय का इंतजार करना पड़ता है। परियों ने मिलकर एक बड़ा सा डिब्बा उसके सामने रखा जो हल्की रोशनी कर रहा था। कबीर ने डरते डरते उसे खोला

अंदर स्वादिष्ट खाने से भरी थाली थी, लेकिन वह साधारण खाना नहीं था, वह ऐसा भोजन था जो कभी खत्म नहीं होता था। वह जितना खाते जाओ, थाली खुद भरती जाती थी। परी बोली कि यह उपहार सिर्फ उसे दिया जाता है जो बिना किसी चाह के दूसरों की भूख मिटाता है। यह थाली सिर्फ किसी जरूरतमंद के साथ बाँटने पर ही काम करेगी

कबीर ने थाली उठाई और घर की ओर चल पड़ा। रास्ते में उसे वही छोटे जानवर मिले। उसने थाली आगे बढ़ाई और उसमें से कुछ खाने को दिया, और जैसे ही उसने जानवरों को खिलाया थाली फिर से भर गई। कबीर को समझ आ गया कि यह सिर्फ खाना नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है

कहानी यहाँ खत्म नहीं हुई क्योंकि कबीर की दयालुता रोज किसी नई जगह अपना असर दिखाती रही, और परियों की रसोई उसी तरह चमकती रही जैसे कबीर के दिल की सच्चाई।

शिक्षा: अच्छा काम हमेशा लौटकर आता है, बस बिना स्वार्थ के किया जाए

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