लोमड़ी और मूर्ख भेड़िया
घने जंगल के बीच एक शांत सा इलाका था जहाँ पेड़ों की कतारें दूर तक फैली थीं और चारों ओर पत्तों की सरसराहट गूँजती रहती थी। उसी इलाके में एक चालाक लोमड़ी रहती थी जो अपनी तेजी और समझदारी के लिए पूरे जंगल में जानी जाती थी। जंगल के जानवर उसकी चतुराई से इतने वाकिफ थे कि कोई भी उसके सामने बहस करने की कोशिश नहीं करता था, क्योंकि लोमड़ी हमेशा अपनी बात ऐसे मोड़ देती कि वह ही सही साबित हो जाती। दूसरी तरफ उसी जंगल में एक मूर्ख भेड़िया भी रहता था। वह तगड़ा था, ताकतवर भी था, लेकिन उसमें अक्ल की बहुत कमी थी। उसे जो भी बात कोई कह देता, वह बिना सोचे मान लेता।
इस भेड़िये को लोमड़ी से खास चिढ़ थी, क्योंकि वह अक्सर उसके सामने खुद को कम समझता था। लोमड़ी उसकी इस कमजोरी को जानती थी और अक्सर उसे बेवकूफ बनाने में मजा लेती थी। पर इस बार लोमड़ी का मन था कि भेड़िये को एक ऐसा सबक दे जो वो कभी न भूले।
एक दिन दोपहर के समय जब सूरज पेड़ों के ऊपर बिखरा हुआ था और भेड़िया पानी की तलाश में घूम रहा था, तभी लोमड़ी उसकी तरफ उछलती-कूदती आई और बोली, “अरे भेड़िया भाई, तुम बड़े परेशान लग रहे हो। क्या हुआ?”
भेड़िया उसकी तरफ देख कर बोला, “मैं प्यासा हूँ। और वैसे भी आज किसी जानवर का शिकार भी नहीं मिला। लगता है दिन खराब है।”
लोमड़ी ने चालाकी भरी मुस्कान छुपाते हुए कहा, “पानी की बात कर रहे हो तो पास में पुराना कुआँ है। पर वहाँ से पानी लेने में थोड़ा डर लगता है।”
भेड़िया चौंक गया, “डर? क्यों डर लगता है? कुएँ में क्या है?”
लोमड़ी ने नकली डर दिखाते हुए कहा, “वहाँ तुम्हें देखकर डराना नहीं चाहती थी, लेकिन चूँकि तुम बहादुर हो इसलिए बता देती हूँ। कुएँ में तुम्हारे जैसा ही एक और भेड़िया रहता है। बिल्कुल तुम्हारी तरह ताकतवर। और उसकी आँखें तो तुम्हारी तुलना में ज्यादा चमकदार लगती हैं।”
भेड़िया पहले तो चिढ़ गया, फिर बोला, “ये कैसे हो सकता है? मेरे जैसा कोई और कैसे हो सकता है? मैं जंगल का सबसे तगड़ा हूँ।”
लोमड़ी ने मौके पर वार करते हुए कहा, “अगर तुम चाहो तो खुद जाकर देख लो। पर ध्यान रहे, वो बहुत गुस्सैल है। जब भी कोई उसका पानी लेने की कोशिश करता है, वो गुर्राता है।”
भेड़िये ने अपने भीतर की जलन और अहम को हवा देते हुए कहा, “मैं डरूँगा? बिलकुल नहीं। चलो, अभी जाकर देखता हूँ।”
दोनों कुएँ की तरफ चल पड़े। रास्ते भर लोमड़ी मुस्कुराती रही, क्योंकि उसे पता था कि भेड़िया अपनी मूर्खता में फँसने वाला है। जैसे ही वे कुएँ के पास पहुँचे, लोमड़ी ने भेड़िये से कहा, “तुम अंदर झाँकोगे तो देख पाओगे कि वो तुम्हें घूर रहा है।”
भेड़िया झुककर कुएँ में देखने लगा। पानी बहुत साफ था, इसलिए उसकी अपनी परछाई बिल्कुल स्पष्ट दिख रही थी। पर वह अपनी अक्ल की कमी के कारण समझ ही नहीं पाया कि वह उसका प्रतिबिंब है। उसे लगा सच में कुएँ में दूसरा भेड़िया है। वह भेड़िये की आँखें देख कर बोला, “अरे ये तो सच में मुझे घूर रहा है।”
लोमड़ी ने पीछे से कहा, “मैंने कहा था न। और देखो, वो तुम्हारी तरह ही दाँत दिखा रहा है।”
पानी पर हल्की हवा चली, जिससे लहरें बनीं और भेड़िये का प्रतिबिंब हिल गया। भेड़िये को लगा कि दूसरा भेड़िया उस पर हमला करने वाला है। गुस्से में भेड़िया दहाड़ते हुए बोला, “मैं तुम्हें दिखाता हूँ कि असली भेड़िया कौन है।”
लोमड़ी को पता था कि अब आगे क्या होगा, इसलिए वह सुरक्षित दूरी पर हट गई।
भेड़िया पूरी ताकत से कुएँ में छलाँग लगा बैठा ताकि वह दूसरे भेड़िये को पकड़ सके। लेकिन जैसे ही वह नीचे पहुँचा, उसे कुछ नहीं मिला। बस ठंडा पानी और अंधेरा था। वह ऊपर चढ़ नहीं पा रहा था। फिसलन इतनी थी कि हर कोशिश बेकार हो रही थी।
शिक्षा: अक्लहीन व्यक्ति दूसरों की बातों में फँस जाता है।