राम नाम का मोक्षदायी प्रभाव
काशी या वाराणसी भारत की एक महान पुण्य स्थली है, जहाँ पवित्र गंगा नदी में स्नान कर मनुष्य अपने पापों को धोता है। अपने पूर्व जन्मों के कुछ पापों के प्रभाव से मुक्ति पाने के लिए काशी के राजा भगवान नारायण की आराधना कर रहे थे।
तब महर्षि नारद प्रकट हुए और उन्होंने राजा को मार्गदर्शन दिया कि केवल श्री राम ही उनके पुराने बुरे कर्मों को नष्ट कर उन्हें एक नया और पवित्र जीवन दे सकते हैं। उन्होंने राजा को श्री राम के दरबार में जाकर वहाँ उपस्थित सभी महर्षियों को प्रणाम करने को कहा। किन्तु, नारद जी ने सलाह दी कि राजा को ऋषि विश्वामित्र को सर्वथा अनदेखा कर देना चाहिए।
अपने पिछले कर्मों से मुक्ति पाने के लिए उत्सुक राजा श्री राम के दरबार में गए और ठीक वैसा ही किया जैसा नारद ने कहा था। उन्होंने विश्वामित्र ऋषि की उपेक्षा की और सभा में उपस्थित अन्य सभी ऋषि-मुनियों को प्रणाम किया। उनके इस कृत्य से क्रोधित विश्वामित्र ने श्री राम से शिकायत की। ऋषि को इतना क्रोधित देख राजा श्री राम के दरबार से भाग निकले और पुनः भगवान नारायण से प्रार्थना करने लगे।
नारद जी पुनः प्रकट हुए और काशी नरेश को हनुमान जी की माता अंजनी देवी के पास जाकर सहायता माँगने को कहा। राजा अंजनी देवी के पास गए, जिन्होंने हनुमान जी को बुलाया और राजा की रक्षा करने को कहा। इस बीच, श्री राम ने विश्वामित्र से वचन दे दिया था कि वे उस व्यक्ति पर आक्रमण कर उसे मार डालेंगे जिसने ऋषि का अपमान किया है। हनुमान जी ने यह जानकर काशी नरेश से पास की एक धारा में प्रवेश कर पूर्व की ओर मुख करके निरंतर राम नाम का जाप करने को कहा।
शीघ्र ही श्री राम, विश्वामित्र और अन्य ऋषियों के साथ वहाँ पहुँचे और हनुमान तथा काशी नरेश को नदी तट पर पाया। भगवान राम ने राजा पर एक बाण चलाया, किंतु वह बाण राजा को न मारकर वापस तूणीर में आ लौटा। बाण इसलिए लौट आया क्योंकि राजा लगातार राम नाम का उच्चारण कर रहा था, जिससे बाण निष्प्रभावी हो गया था। हनुमान जी ने उचित अवसर पाकर प्रभु श्री राम के समक्ष नम्रतापूर्वक स्मरण कराया कि उन्होंने अपने नाम लेने वाले की रक्षा का वचन दिया है, भले ही उसने अतीत में पाप क्यों न किए हों।
तब महर्षि वशिष्ठ ने बीच-बचाव करते हुए विश्वामित्र से राजा को क्षमा करने और उनके वध के अनुरोध को वापस लेने का आग्रह किया। राजा के राम नाम जपते रहने से विश्वामित्र शांत हुए और उन्होंने श्री राम से राजा को मुक्त करने का अनुरोध किया। इस प्रकार, काशी नरेश अपने सभी पूर्व पापों से मुक्त हो गए और उसके बाद एक पवित्र एवं ईश्वरीय जीवन व्यतीत करने लगे।
शिक्षा: निरंतर और नियमित रूप से राम नाम का जप हमें हमारे पूर्वजन्म के पापों से मुक्ति दिलाकर जीवन्मुक्ति की अवस्था प्रदान कर सकता है।