जादुई बांसुरी की रात
पहाड़ियों के पास बसे एक शांत से गाँव में लखन नाम का एक छोटा चरवाहा रहता था। वह भोर होते ही अपनी भेड़ों को लेकर चराई पर निकल जाता और शाम ढलते ही घर लौट आता। लखन की सबसे खास बात उसका साफ दिल था। वह किसी को दुखी नहीं देख सकता था और हमेशा मदद करने को तैयार रहता था। गाँव के लोग भी कहते थे कि लखन में कुछ अलग चमक है, जैसे उसके मन में हमेशा एक छोटी सी रोशनी जलती रहती हो। एक शाम जब सूरज पहाड़ियों के पीछे उतर रहा था, आसमान में बैंगनी रंग फैल रहा था और पक्षी अपने घोंसलों की ओर लौट रहे थे, तभी लखन को एक अजीब सी चीज दिखाई दी। घास के झुरमुट के बीच कुछ चमक रहा था।
पहले तो उसे लगा कोई जुगनू होगा, लेकिन जब वह पास गया तो देखा कि एक पुरानी लेकिन खूबसूरत बांसुरी पड़ी थी। जैसे ही उसने उसे हाथ में उठाया, बांसुरी से हल्की सी सुनहरी रोशनी निकलने लगी। लखन चौंक गया। उसने बांसुरी को धीरे से बजाने की कोशिश की, और जैसे ही पहली धुन निकली, चारों ओर की हवा चमक उठी। पेड़ों के बीच से रोशन बिंदु उड़ते हुए दिखाई देने लगे। वह समझ नहीं पा रहा था कि यह क्या हो रहा है। तभी उसके सामने एक छोटी सी जुगनू-रानी प्रकट हुई, जिसकी परियों जैसी पंखों से हल्की हरी चमक फूट रही थी।
वह लखन के कंधे जितनी ही ऊँची थी। उसने मुस्कुराकर कहा, “यह बांसुरी सिर्फ उन्हीं को मिलती है जिनका दिल बहुत नेक होता है। तुमने इसे ढूंढा है, इसलिए इसका जादू अब तुम्हारे साथ है।” लखन ने हैरानी से पूछा कि यह बांसुरी क्या कर सकती है। जुगनू-रानी ने बताया कि इसे बजाते ही जहाँ भी अंधेरा होगा, वहाँ उजाला फैल जाएगा। लेकिन इसके जादू की एक खास शर्त थी—
यह सिर्फ सच्चे और अच्छे मन वालों के हाथ में ही काम करती है। लखन को यह सुनकर खुशी हुई, लेकिन उसे नहीं पता था कि इस बांसुरी का जादू उसके लिए आगे कैसी मुश्किलें भी लाएगा। उसी जंगल में एक चालाक लोमड़ी रहती थी। वह हमेशा कुछ ना कुछ चोरी करने की सोचती रहती थी। दूर एक झाड़ी के पीछे छिपकर उसने लखन और बांसुरी की चमक देखी। लोमड़ी के मन में लालच आया कि अगर उसके पास ऐसी बांसुरी हो, तो वह पूरे जंगल को अपने हिसाब से चला सकती है। रात गहराती जा रही थी और लखन धीरे-धीरे गाँव की ओर लौट रहा था।
उसने सोचा कि आज बांसुरी की रोशनी से रास्ता कितना आसान हो गया है। उसने कभी इतना सुरक्षित महसूस नहीं किया था। लेकिन उसी समय लोमड़ी उसके पीछे-पीछे चल रही थी, सही मौका तलाशते हुए। जैसे ही लखन गाँव के पास पहुँचा और पानी पीने के लिए अपना घड़ा रखने झुका, लोमड़ी झट से आगे बढ़ी और बांसुरी छीन ली। लखन घबरा गया, लेकिन उसे उम्मीद थी कि कोई उसे वापस मिल जाएगी। लोमड़ी खुशी से कूदती हुई एक बड़े पत्थर पर चढ़ी और बांसुरी बजाने की कोशिश करने लगी। पहले उसने बांसुरी को जोर से फूँका, फिर धीरे से बजाने की कोशिश की, लेकिन न एक भी सुर निकला, न ही कोई चमक। बांसुरी बिल्कुल शांत पड़ी रही। लोमड़ी को गुस्सा आया और वह चिल्लाई, “यह क्यों नहीं बजती? जादू कहाँ है?” तभी पीछे से जुगनू-रानी की आवाज आई।
वह हवा में तैर रही थी और उसके आसपास की जगह हल्की रोशनी से चमक रही थी। उसने कहा, “यह बांसुरी चोरी से काम नहीं करती। इसके लिए सच्चाई और दया चाहिए, और यह तुम्हारे अंदर नहीं है।” लोमड़ी को अपनी चालाकी नाकाम होते देख डर लगने लगा। उसने बांसुरी जमीन पर रख दी और जंगल में दौड़कर गायब हो गई। जैसे ही लखन ने बांसुरी उठाई, वह फिर से जगमगा उठी। रोशनी बढ़ती गई और रात के अँधेरे में एक साफ रास्ता दिखने लगा। जुगनू-रानी ने लखन की ओर देख कहा, “याद रखना, यह बांसुरी तुम्हारे दिल की तरह है।