तोता और वृद्ध व्यापारी
एक समय की बात है, एक छोटे से कस्बे में एक वृद्ध व्यापारी रहता था। वह मेहनती था, पर उसकी उम्र अब इतनी हो चुकी थी कि दुकान संभालना उसके लिए पहले जैसा आसान नहीं रहा था। उसके घर के आंगन में एक सुंदर सा तोता रहता था, जिसकी हरी चमकदार पंख और तेज नजरें सबका ध्यान खींच लेती थीं। तोता बहुत समझदार था और हमेशा व्यापारी की बातें ध्यान से सुनता था, मानो सब समझ रहा हो। व्यापारी उसे फल खिलाता, पानी बदलता और अक्सर उससे बातें भी करता। धीरे धीरे दोनों के बीच एक मौन दोस्ती बन गई, जिसे शब्दों की जरूरत नहीं थी।
एक दिन व्यापारी को लगा कि पक्षी को पिंजरे में रखना ठीक नहीं है। वह बोला, “मैं बुजुर्ग हो चुका हूँ और मुझे मालूम है कि हर किसी को आजादी की जरूरत होती है।” उसने पिंजरा खोला और तोते को खुली हवा में उड़ने दिया। तोते ने पंख फड़फड़ाए और आसमान में चक्कर लगाया, पर जाने से पहले वह व्यापारी के कंधे पर बैठ गया, जैसे उसे धन्यवाद कहना चाहता हो। उस दिन से आंगन खाली सा लगने लगा पर व्यापारी खुश था कि उसने सही काम किया।
कुछ हफ्तों बाद व्यापारी पर बुरा समय आ गया। उसका एक व्यापारी दल शहर से लौटते समय कहीं खो गया था और उसके साथ उसका बहुत सारा धन भी चला गया। वृद्ध व्यापारी परेशान हो गया। उसने हर जगह लोगों से पूछा, पहाड़ी रास्तों की जांच करवाई, पुलिस में सूचना दी, पर कोई सुराग नहीं मिला। उसकी नींद उड़ गई थी। दुकान का काम लगभग बंद हो गया था। लोग उससे मिलने आते और सहानुभूति जताते पर किसी के पास समाधान नहीं था। व्यापारी को लगता था कि उसकी पूरी जिंदगी की मेहनत खत्म हो चुकी है।
एक शाम जब वह आंगन में अकेला बैठा अपने खोए धन की चिंता कर रहा था, तभी ऊपर पेड़ की डाली पर हल्की सी हरकत हुई। उसने देखा कि उसका पुराना साथी तोता लौट आया था। व्यापारी की आँखें चमक उठीं। तोता उड़कर नीचे आया और उसके पास बैठ गया। व्यापारी ने मुस्कुराते हुए कहा, “तू वापस आ गया? तूने तो आज मेरी उदासी थोड़ी कम कर दी।” तोता कुछ क्षण व्यापारी को देखता रहा, फिर उसने अपने पंख फैलाए, जैसे वह कुछ बताने की कोशिश कर रहा हो।
थोड़ी देर बाद तोता उड़कर घर के पीछे वाले जंगल की ओर गया, फिर वापस व्यापारी के पास आया, फिर से उसी दिशा में उड़ गया। वह बार बार यही दोहरा रहा था। व्यापारी ने सोचा कि शायद तोता उसे किसी संकेत की तरफ ले जाना चाहता है। उसने अपनी लाठी उठाई और तोते के पीछे चल पड़ा। रास्ता मुश्किल था, पर व्यापारी धीमे कदमों पर भी आगे बढ़ता रहा। जंगल घना था, पर तोते की आवाज उसे दिशा देती रही। वह हर कुछ दूरी पर रुककर व्यापारी का इंतजार करता और फिर आगे उड़ जाता।
करीब आधा घंटा चलने के बाद वे एक पुराने पत्थर के पुल के पास पहुंचे। इस जगह पर व्यापारी कई बार आया था, पर आज उसे लगा कि तोता किसी खास तरफ इशारा कर रहा है। पुल के नीचे एक संकरी सी दरार थी, जिसमें सुनने में आता था कि पहले चोर गिरोह छिपते थे। अचानक व्यापारी को याद आया कि उसके कारवां ने इसी रास्ते से गुजरने की योजना बनाई थी। व्यापारी ने ध्यान से देखने की कोशिश की, पर अंधेरा बढ़ रहा था। तोते ने अपनी तेज आवाज में पुकार लगाई, मानो उसे नीचे झांकने के लिए कह रहा हो।
व्यापारी ने हिम्मत करके पुल के नीचे वाली जगह की जांच की। वहां मिट्टी में कुछ गहरे निशान थे। उसने थोड़ी खुदाई की और अचानक एक भारी थैला उसके हाथ लगा। उसने उसे खोला तो उसकी आंखें फैल गईं। यह वही गुम हुआ धन था। शायद कारवां डरकर या किसी खतरे से बचने के लिए इसे यहां छिपाकर आगे बढ़ा होगा, लेकिन किसी कारण वापस नहीं आ पाए। व्यापारी की खुशी का ठिकाना नहीं था। उसने तुरंत तोते की ओर देखा। तोता पास की शाखा पर बैठा था जैसे कह रहा हो कि उसका उपकार उसने लौटा दिया है।
व्यापारी ने थैला उठाया और धीरे धीरे घर की ओर लौटने लगा। रास्ते भर उसकी नजरें तोते से हट नहीं रही थीं, जिसने मुश्किल समय में उसका साथ दिया था। घर पहुंचकर उसने तोते के लिए फल रखे और बोला, “तुमने मेरी उम्मीद बचा ली। मैं आज जो भी हूं, तुम्हारी वजह से हूं।” तोता उसके पास आकर बैठ गया और व्यापारी के हाथ पर अपनी चोंच से हल्का स्पर्श किया।
अगले दिनों में व्यापारी पहले से भी अधिक दयालु हो गया। वह समझ चुका था कि उपकार हमेशा लौटता है और नेकी कभी व्यर्थ नहीं जाती। उसने तोते के लिए आंगन में एक बड़ा खुला स्थान बनाया, जहां वह आजाद होकर उड़ सके। लोग दूर दूर से उसके घर आने लगे कि कैसे एक पक्षी ने उसका खोया धन खोजने में मदद की। व्यापारी हर किसी को यही कहता कि अगर तुम किसी के साथ भला करोगे तो जिंदगी खुद उस भलाई को वापस तुम्हारे सामने लाकर खड़ी कर देगी।
तोता अब हमेशा उसके आंगन में आता, कभी पेड़ पर बैठता, कभी छत पर, और जब चाहे उड़ जाता। व्यापारी हर बार उसे देखकर मुस्कुराता। दोनों के बीच एक भरोसे का रिश्ता था जिसे किसी शब्द की जरूरत नहीं थी। व्यापारी ने अपने अनुभव से सीख लिया था कि दुनिया में विश्वास और दया सबसे बड़ी शक्ति हैं। समय बीतता गया, दोनों की उम्र बढ़ती गई, पर उनकी कहानी कस्बे में फैल गई। लोग अपने बच्चों को बताते कि एक व्यापारी ने एक पक्षी को आजादी दी और बदले में उस पक्षी ने उसकी सबसे बड़ी मुश्किल आसान कर दी।
एक दिन व्यापारी कसमसाते हुए बोला, “अगर मैंने कभी तुम्हें आजाद न किया होता, तो शायद मैं आज यह सब वापस नहीं पा पाता।” वह जान गया था कि अच्छा काम कभी खाली नहीं जाता। उसका मन हल्का था और उसकी जिंदगी में फिर से खुशियां लौट आई थीं। कस्बे में लोग इस घटना का उदाहरण देकर बच्चों को समझाने लगे कि किसी पर किया गया उपकार हमेशा किसी न किसी रूप में वापस लौटता है।
शिक्षा: उपकार हमेशा लौटता है।