लगन और सूक्ष्म अवलोकन का फल
कर्नाटक के एक प्रतिष्ठित सरकारी इंजीनियरिंग कॉलेज में केशव नाम का एक छात्र यांत्रिक इंजीनियरिंग पढ़ रहा था। केशव एक मेधावी छात्र था। वह आठ सेमेस्टर के इंजीनियरिंग पाठ्यक्रम के छठे सेमेस्टर में पढ़ रहा था। पिछले पांचों सेमेस्टर में केशव ने डिस्टिंक्शन के साथ उत्तीर्णता प्राप्त की थी। उसका प्रतिशत हमेशा 75% से अधिक रहता था।
छठे सेमेस्टर की परीक्षाओं में केशव ने हमेशा की तरह बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। उसे फिर से डिस्टिंक्शन मिलने की उम्मीद थी। हालाँकि, जब परिणाम घोषित हुए तो उसे एहसास हुआ कि उसे डिस्टिंक्शन नहीं, बल्कि केवल प्रथम श्रेणी मिली है। जब उसने मार्कशीट देखी, तो उसने पाया कि एक विशेष विषय ने उसके अंक नीचे खींच दिए थे। अन्य सभी विषयों में उसे 75% से अधिक अंक मिले थे। उसे यकीन था कि उसने उस विशेष विषय में भी अच्छा प्रदर्शन किया था। निश्चित ही उसके प्राप्त अंकों में कोई त्रुटि रह गई थी।
केशव ईश्वर में आस्था रखता था, इसलिए उसने प्रार्थना की। प्रार्थना के बाद, उसे एहसास हुआ कि उसके पास दो विकल्प हैं। पहला विकल्प था उत्तर पुस्तिका का पुनर्मूल्यांकन और दूसरा विकल्प था उस विशेष विषय की उत्तर पुस्तिका के अंकों का पुनर्गणना।
प्रक्रिया यह थी कि विश्वविद्यालय को पुनर्मूल्यांकन या पुनर्गणना के लिए आवेदन करना होता था। केशव ने अपने मित्रों से दोनों विकल्पों पर चर्चा की। उसके मित्रों ने उसे पुनर्मूल्यांकन कराने से हतोत्साहित किया। उनके तर्क थे कि यदि पुनर्मूल्यांकन करने वाले प्रोफेसर बहुत सख्त हुए तो उसके अंक और भी कम हो सकते हैं। केशव ने अपने मित्रों से सहमति जताई कि पुनर्मूल्यांकन उपयुक्त विकल्प नहीं था।
केशव ने फिर ध्यान लगाया और ईश्वर से प्रार्थना की। इस बार उसे एक शानदार विचार आया। उसके ध्यान और प्रार्थना ने उसे याद दिलाया कि उसने उस विषय में 11 अतिरिक्त उत्तर पुस्तिकाएं जमा की थीं।
उसने पुनर्गणना कराने का निर्णय लिया, लेकिन साथ ही यह भी तय किया कि वह पुनर्गणना आवेदन पत्र पर इस बात का उल्लेख अवश्य करेगा कि उसने 11 अतिरिक्त उत्तर पुस्तिकाएं जमा की थीं। जल्द ही, विश्वविद्यालय के अधिकारियों द्वारा पुनर्गणना की गई और केशव को संबंधित विषय में 85% से अधिक अंक प्राप्त हुए। इस प्रकार, उसे न केवल अपना डिस्टिंक्शन ग्रेड वापस मिल गया, बल्कि उसे पूरे विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले छात्र के रूप में भी घोषित किया गया।
इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम सभी को “दृढ़ रहना” चाहिए और “विवरण पर ध्यान” देना चाहिए। केशव ने केवल इस बारीकी पर ध्यान दिया कि उसने 11 अतिरिक्त पृष्ठ जोड़े थे, इसी के कारण उसे नया, बहुत अधिक कुल स्कोर मिला। साथ ही, पुनर्मूल्यांकन के लिए अपने प्रोफेसरों को परेशान न करके, केशव ने अनजाने में ही सही, उनके प्रति “सम्मान” प्रदर्शित किया और विश्वविद्यालय के “अलिखित नियमों के भीतर” रहा। उसकी सूझबूझ, धैर्य और विवेक ने उसकी मेहनत को सार्थक रंग दिया।
शिक्षा: यह कहानी सिखाती है कि असफलता या अप्रत्याशित परिणाम आने पर घबराने या हार मानने के बजाय धैर्य और सूझबूझ से काम लेना चाहिए। स्थिति का विश्लेषण करके उचित विकल्प चुनना, छोटी से छोटी बारीकी को याद रखना और प्रक्रियाओं का सम्मान करते हुए आगे बढ़ना सफलता की कुंजी है। ईमानदारी और मेहनत के साथ-साथ विवेकपूर्ण निर्णय भी महत्वपूर्ण होते हैं।