रामन की चतुराई और पुरोहित की हार
राजा महल के बरामदे में टहल रहे थे। उन्होंने एक विचित्र दृश्य देखा। सम्मानित पुरोहित गधे की तरह रामन को अपने कंधों पर लेकर चल रहे थे। रामन शोर मचा रहे थे। सड़क के दोनों ओर एकत्र लोग इस अद्भुत नज़ारे पर हंस रहे थे। राजा यह सब सहन नहीं कर पाए। उन्होंने कहा कि ताताचार्य जैसे सम्मानित पुरोहित के साथ ऐसा व्यवहार नहीं हो सकता। राजा ने अपने दो सैनिकों को बुलाया और आदेश दिया कि देखो एक व्यक्ति दूसरे को कंधों पर लेकर चल रहा है। तुम ऊपर वाले व्यक्ति को नीचे उतारकर पीटो और नीचे वाले व्यक्ति को यहां ले आओ।
रामन ने सैनिकों की ओर राजा के इशारे देख लिए। उन्हें लगा कि कुछ गड़बड़ है। उन्होंने दूर से आते हुए सैनिकों को देखा। अचानक रामन ताताचार्य के कंधों से उतर गए और सम्मान के प्रतीक के रूप में उनके पैर छुए। रामन बोले कि आपने अब तक मुझे अपने कंधों पर लेकर चला। क्षमा करें, मैं भी अपनी पश्चाताप की भावना से आपको इसी प्रकार उठाकर ले चलूंगा।
मूर्ख पुरोहित को गर्व हुआ और उन्होंने तुरंत सहमति दे दी तथा रामन के कंधों पर चढ़ गए। रामन चलने लगे। वहां पहुंचे दोनों सैनिकों ने पुरोहित को नीचे उतारा और उनकी पिटाई की। ताताचार्य समझ नहीं पाए कि क्या हो रहा है। पुरोहित को वह दृश्य याद आया जब उनके नौकरों ने रामन की पिटाई की थी जब वह उनके घर गए थे।