सिंहासन बत्तीसी कथा 20
बीसवें दिन जब राजा भोज पुनः सिंहासन पर बैठने के लिए आगे बढ़े, तभी बीसवीं गुड़िया ज्ञानवती उनके मार्ग में आ गई। उसने अपना परिचय दिया और राजा से कहा कि पहले वह राजा विक्रमादित्य की एक कथा सुने, फिर स्वयं निर्णय करे कि वह इस अद्भुत सिंहासन पर बैठने योग्य है या नहीं। इतना कहकर ज्ञानवती ने कहानी आरंभ की।
जब भी राजा विक्रमादित्य दरबार के कार्यों से थोड़े समय के लिए मुक्त होते, वे मन को शांत करने और ध्यान के लिए वन में चले जाते। एक दिन जब वे वन में ध्यान में लीन थे, उन्होंने दो व्यक्तियों को बातचीत करते हुए देखा। उनकी बात समझने के लिए राजा ने अपने मस्तक पर दिव्य लेप लगाया और अदृश्य हो गए। अब वे उन दोनों के समीप खड़े होकर उनकी बात सुन सकते थे। वे दोनों ब्राह्मण थे।
पहले ब्राह्मण को यह विद्या प्राप्त थी कि वह किसी मृत प्राणी की हड्डियों को देखकर यह बता सकता है कि वह किस जानवर की हैं और उसकी मृत्यु कब हुई। उसने पास पड़े कुछ हड्डियों के ढेर की ओर इशारा करते हुए कहा कि ये हड्डियाँ एक हिरण की हैं और उसकी मृत्यु चार वर्ष पूर्व हुई थी।
दूसरे ब्राह्मण ने उसकी बात सुनकर हँसते हुए कहा कि यह कैसे सिद्ध हो कि तुम्हारी बात सही है। न तो उस हिरण को बुलाया जा सकता है, न उसकी पुष्टि की कोई व्यवस्था है। ज्ञान तभी सार्थक है जब वह सबको विश्वास दिला सके।
पहला ब्राह्मण बोला कि वह केवल यही विद्या नहीं जानता, बल्कि ज्योतिष में भी निपुण है। किसी व्यक्ति के पैर और हाथ देखकर वह उसका अतीत, वर्तमान और भविष्य तक बता सकता है। तभी उसने ज़मीन पर पड़े कुछ पदचिन्ह देखे और अपने साथी से कहा कि ये किसी साधारण व्यक्ति के कदमों के निशान नहीं हैं। ये किसी महान राजा के पदचिन्ह हैं।
दोनों ब्राह्मण उन पदचिन्हों का पीछा करते हुए आगे बढ़े। कुछ दूरी पर उन्हें एक लकड़हारा दिखाई दिया, जो वृक्ष के नीचे विश्राम कर रहा था। ज्योतिष ज्ञान वाला ब्राह्मण उसके पास पहुँचा और पूछा कि क्या उसने किसी पुरुष को यहाँ से जाते देखा है। लकड़हारे ने बताया कि वह प्रातः से काम कर रहा है और उसने किसी को नहीं देखा।
ब्राह्मण ने विनम्रता से कहा कि वह ज्योतिष शास्त्र जानता है और लकड़हारे के पैर देखना चाहता है। लकड़हारा बोला कि वह अपना अतीत याद नहीं करना चाहता और अपने वर्तमान से संतुष्ट है, उसके भविष्य की चिंता भी उसे नहीं है। ब्राह्मण ने कहा कि उसे केवल यह जानना है कि जो पदचिन्ह उसने देखे हैं, क्या वे उसी के हैं। तब लकड़हारे ने अपने पैर दिखाए। ब्राह्मण यह देखकर दंग रह गया कि लकड़हारे के पैरों के तलवों में वही कमल के चिन्ह थे जो किसी महान राजा के होते हैं।
यह देखकर ब्राह्मण को अपने ज्ञान पर संदेह होने लगा। दूसरे ब्राह्मण ने उसका उपहास किया कि वह पहली परीक्षा में ही असफल हो गया। ज्योतिषी ब्राह्मण बोला कि ऐसा होना असंभव है, क्योंकि कमल चिह्न के बारे में उसके ग्रंथों में स्पष्ट वर्णन है। वह अपने ज्ञान पर विश्वास रखता था, परंतु यह स्थिति उसके लिए रहस्य थी।
दूसरे ब्राह्मण ने कहा कि यदि उसका ज्ञान सही है तो उसे यह भी समझना चाहिए कि गणना कहाँ गलत हुई। ज्योतिषी ब्राह्मण बोला कि यदि यह सिद्ध हो गया कि उसका अनुमान गलत है, तो वह अपने सारे ज्योतिष ग्रंथ जला देगा, पर उसे इस बात की जाँच करने के लिए कुछ समय चाहिए। उसने कहा कि वे दोनों उज्जैन चलकर यह देखेंगे कि क्या ये पदचिन्ह वास्तव में राजा विक्रमादित्य के पैरों से मेल खाते हैं या नहीं।
दोनों ब्राह्मण उज्जैन पहुँचे और राजा विक्रमादित्य से मिलने का अवसर मिला। ज्योतिषी ब्राह्मण ने राजा से उनके चरण देखने का अनुरोध किया। राजा मुस्कुराए और उन्होंने अपने चरणों के तलवे दिखाए, जिनमें कोई कमल चिह्न नहीं था। ब्राह्मण निराश हो गया और बोला कि वह अपने सारे पुस्तकों को जला देगा क्योंकि उसका ज्ञान गलत सिद्ध हुआ।
तभी राजा ने उससे कहा कि पुस्तकों का ज्ञान कभी गलत नहीं होता, लेकिन ज्ञान का अहंकार मनुष्य को भ्रमित कर देता है। यह कहते हुए राजा ने अपने तलवों पर लगी नकली परत को चाकू से खुरचकर हटा दिया। उसके नीचे वही कमल चिह्न थे। ब्राह्मण आश्चर्यचकित रह गया।
राजा बोले कि वह वही लकड़हारा था, जिससे वे दोनों वन में मिले थे। उन्होंने अदृश्य होकर उनकी बातचीत सुनी और यह भी जान लिया कि वे उनसे मिलने अवश्य आएँगे। इसलिए उन्होंने अपने चरणों को नकली परत से ढक दिया, ताकि यह सिद्ध हो सके कि केवल पुस्तकों का ज्ञान पर्याप्त नहीं होता। वास्तविक ज्ञान तभी पूर्ण होता है जब उसे व्यवहार में उतारा जाए और अनुभव के माध्यम से परखा जाए।
ब्राह्मण अत्यंत लज्जित हुआ। राजा ने उसे सांत्वना दी और दोनों ब्राह्मणों को पुरस्कृत किया।
कहानी समाप्त करने के बाद ज्ञानवती ने राजा भोज से पूछा कि क्या उन्होंने भी कभी ऐसा कार्य किया है जिससे किसी विद्वान को वास्तविक ज्ञान प्राप्त हुआ हो। यदि हाँ, तो वे सिंहासन पर बैठने योग्य हैं, अन्यथा उन्हें वापस लौट जाना चाहिए। राजा भोज के पास कोई उत्तर न था, और वे पुनः अपने महल लौट गए।