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सिंहासन बत्तीसी कथा 22 – अनुरोधवती की कथा

सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ

सिंहासन बत्तीसी कथा 22

जब राजा भोज सिंहासन पर बैठने हेतु अग्रसर हुए, तो बाईसवीं गुड़िया उनके सामने आई और विनम्र स्वर में बोली कि वह उन्हें राजा विक्रमादित्य के एक विशिष्ट गुण का प्रसंग सुनाएगी। उसने अपना परिचय देते हुए कहा कि उसका नाम अनुरोधवती है और वह जानना चाहती है कि क्या राजा भोज भी उतने ही योग्य हैं कि इस चमत्कारी सिंहासन पर बैठ सकें।

अनुरोधवती ने अपनी कथा आरम्भ की और बताया कि राजा विक्रमादित्य केवल न्यायप्रिय और प्रजावत्सल ही नहीं थे, बल्कि कला, संगीत और ज्ञान के अत्यंत संरक्षक थे। उनके राज्य में माधव नामक एक युवा रहता था, जो अत्यंत विद्वान, बुद्धिमान और हर विषय में दक्ष था। किंतु उसकी स्पष्टवादिता और असत्य से असहिष्णुता के कारण उसे कहीं नौकरी नहीं मिल पाती थी। उसने राजा विक्रमादित्य की उदारता और कला-प्रेम के बारे में बहुत सुना था, अतः वह उनसे मिलने उनके दरबार पहुँचा।

महल के द्वार पर उसने अपना परिचय दिया और राजा से मिलने की इच्छा प्रकट की। उस समय राजा दरबार में नृत्य-गान का आस्वादन कर रहे थे। इसलिए पहरेदार ने माधव से कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा। तभी माधव ने अचानक कहा कि दरबार में बैठे लोग संगीत की समझ नहीं रखते, क्योंकि एक संगीतकार गलत सुर बजा रहा है और किसी को पता भी नहीं चला। यह सुनकर पहरेदार चौंक गया और उसे डाँटते हुए कहा कि वह स्वयं राजा का भी अपमान कर रहा है। पर माधव ने शांत स्वर में कहा कि वह केवल सत्य कह रहा है।

उसने आगे बताया कि कुल सोलह वादक चार-चार के समूह में बैठे हैं और पूर्व दिशा की ओर बैठे वादक समूह में एक वादक गलत सुर बजा रहा है। यह बात सुनकर पहरेदार अचंभित रह गया क्योंकि दरबार भीतर से दिखाई नहीं देता था। उसने तुरंत राजा को सारी बात बताई। राजा ने संगीत रुकवाया और माधव को दरबार में बुलवाया।

माधव ने राजा को बताया कि एक तबला वादक का अंगूठा दोषपूर्ण है और वह उसे कृत्रिम आवरण से छिपाए हुए है, इसीलिए उसके वादन में सुर बिगड़ रहा है। जब सभी तबला वादकों को दिखाया गया तो माधव की बात सही निकली। राजा विक्रमादित्य उसकी प्रखर बुद्धि से प्रसन्न हुए और उससे उसका परिचय पूछा। माधव ने सब बताया। राजा ने उसे तुरन्त अपने दरबार में स्थान दिया। समय-समय पर माधव अपनी अद्भुत दृष्टि और ज्ञान से राजा को आश्चर्यचकित करता रहा।

एक दिन एक प्रसिद्ध नर्तकी दरबार में नृत्य प्रस्तुत करने आई। नृत्य के दौरान एक भिनभिनाती मधुमक्खी उसके समीप आ गई। नर्तकी नृत्य रोके बिना ही एक तेज श्वास से उसे उड़ाने में सफल रही। यह सब इतना शीघ्र घटित हुआ कि किसी ने नहीं देखा, पर माधव ने पूरी घटना ध्यानपूर्वक देख ली। नृत्य समाप्त होने पर उसने नर्तकी की सराहना की और उसे अपना मोती का हार भेंट कर दिया। यह देखकर सब हैरान रह गए। राजा ने कारण पूछा, तो माधव ने पूरी घटना बताकर कहा कि ऐसी दक्षता का सम्मान होना चाहिए। नर्तकी ने भी उस घटना की पुष्टि की। राजा ने प्रसन्न होकर दोनों को पुरस्कार दिए।

एक दिन विद्वानों के बीच पुनर्जन्म और पूर्वजन्म के संस्कारों पर चर्चा हो रही थी। माधव ने कहा कि मनुष्य की बुद्धि और tendencies उसके पूर्वजन्म के कर्मों पर निर्भर करते हैं। राजा तो यह बात समझ गए, पर दरबारी भ्रमित थे। राजा विक्रमादित्य ने उन्हें समझाने का उपाय सोचा। उन्होंने जंगल में एक महल बनवाया और एक ब्राह्मण, एक पुजारी, एक प्रमुख पहरेदार तथा स्वयं के बच्चों को उन बधिर और मूक दासियों की देखरेख में भेज दिया, जो किसी प्रकार कोई शिक्षा नहीं दे सकती थीं।

बारह वर्ष बाद उन चारों बच्चों को दरबार में बुलाया गया। राजा ने अपने पुत्र से पूछा कि वह कैसा है। उसने शिष्टता से कहा कि सब कुशल है। फिर वही प्रश्न अन्य तीन बच्चों से पूछा गया। पुजारी का पुत्र बोला कि संसार नश्वर है, जन्म लेने वाला अवश्य मरेगा, इसलिए कुछ भी स्थाई नहीं है। पहरेदार का पुत्र बोला कि कुछ भी ठीक नहीं, क्योंकि चोरों की गलती का दोष पहरेदारों पर लगाया जाता है। ब्राह्मण का पुत्र बोला कि प्रत्येक दिन आयु घटती जाती है, फिर कैसे कहा जाए कि सब ठीक है।

राजा ने दरबारियों से पूछा कि क्या अब उन्हें माधव की बात समझ आई। उन्होंने सिर हिलाकर ना कहा। तब राजा ने समझाया कि बारह वर्षों तक उन बच्चों को किसी ने कुछ नहीं सिखाया, फिर भी उनके उत्तर भिन्न हैं क्योंकि उनके स्वभाव और बुद्धि उनके पूर्वजन्मों के संस्कारों से प्रभावित हैं। दरबारी इस सत्य को समझ गए और माधव की गहरी दृष्टि की प्रशंसा करने लगे।

कथा समाप्त कर गुड़िया ने राजा भोज से पूछा कि क्या उन्होंने किसी विद्वान का वैसा सम्मान किया है जैसा विक्रमादित्य करते थे। यदि नहीं, तो वे इस अद्भुत सिंहासन के योग्य नहीं। यह सुनकर राजा भोज लज्जित होकर अपने महल लौट गए।

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