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सिंहासन बत्तीसी कथा 4 – कम कांडला की कथा

सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ

सिंहासन बत्तीसी कथा 4

अगले दिन सुबह राजा भोज फिर से उसी दिव्य सिंहासन पर बैठने पहुँचे। जैसे ही उन्होंने आसन पर बैठने का प्रयास किया, सिंहासन से चौथी गुड़िया निकलकर उनके सामने खड़ी हो गई। उसने कहा मेरा नाम कम कांडला है। पहले मेरी कहानी सुनो और उसके बाद तय करो कि क्या तुम राजा विक्रमादित्य की तरह निडर, साहसी और निष्काम हो। इतना कहकर वह गुड़िया अपने दिव्य रूप में चमक उठी और राजा भोज के लिए कथा सुनाने लगी।

एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार में राज्यकार्यों पर चर्चा कर रहे थे कि अचानक एक ब्राह्मण वहाँ पहुँचा। वह अत्यंत थका दिख रहा था किंतु उसकी आँखों में तेज था। उसने राजा को प्रणाम किया और बोला हे राजन, मैं कैलाश मानसरोवर से एक महत्वपूर्ण उद्देश्य लेकर आया हूँ। वहाँ मुझे एक अद्भुत घटना देखने को मिली जिसने मुझे चकित कर दिया। राजा ने उसे विस्तार से बताने को कहा।

ब्राह्मण बोला महाराज, मैं एक सुबह कैलाश मानसरोवर के तट पर ध्यानमग्न था। तभी सूर्य के उदय होते ही झील में एक दिव्य स्तंभ प्रकट हुआ। वह स्तंभ सूर्य की किरणों के साथ प्रकट होता था और जैसे ही सूर्य अस्त हो जाता था वह स्तंभ भी जल में समा जाता था। यह दृश्य प्रतिदिन दोहराया जाता था। यह देखकर मैं स्वयं आश्चर्यचकित रह गया।

दरबार में सभी लोग इस वर्णन को सुनकर सोच में पड़ गए। ब्राह्मण ने आगे कहा आप सब यह सोच रहे होंगे कि मैं यह घटना क्यों सुना रहा हूँ। कुछ समय पहले देवताओं के बीच विवाद उत्पन्न हुआ था कि सूर्यदेव की प्रखर किरणों को कोई सहन नहीं कर सकता। सूर्यदेव ने कहा कि जो भी उनके समीप जाने का प्रयत्न करेगा वह तुरंत भस्म हो जाएगा। इस पर इंद्रदेव ने कहा कि पृथ्वी पर एक मनुष्य ऐसा है जो सूर्यदेव की प्रचंड किरणों को भी सहन कर सकता है और वह मनुष्य और कोई नहीं बल्कि राजा विक्रमादित्य हैं। सूर्यदेव को यह बात स्वीकार नहीं हुई और उन्होंने स्वयं परीक्षा लेने का निश्चय किया। इसलिए इंद्रदेव ने मुझे आपका संदेश लाने भेजा है। सूर्यदेव चाहते हैं कि आप मानसरोवर के उस स्तंभ तक जाएँ और उनकी किरणों को सहन करने की क्षमता सिद्ध करें।

पूरा दरबार मौन हो गया। ऐसा कार्य असंभव प्रतीत होता था। परंतु राजा विक्रमादित्य शांत स्वर में बोले यदि इंद्रदेव ने मुझ पर विश्वास दिखाया है तो मैं उनके विश्वास को कभी टूटने नहीं दूँगा। मैं अवश्य मानसरोवर जाऊँगा और सूर्यदेव की कृपा प्राप्त करूँगा।

विक्रमादित्य ने अपने दोनों वेतालों को बुलाया और उन्हें पूरी बात बताई। उन्होंने पूछा क्या तुम दोनों मुझे मानसरोवर पहुँचा सकते हो। दोनों वेतालों ने तुरंत सहमति दी और राजन्, हम अभी ले चलते हैं, यह कहकर राजा को अपने साथ ले गए।

रात होते-होते वे मानसरोवर पहुँच गए। सुबह होते ही सूर्य की पहली किरणें झील पर पड़ीं और जैसा ब्राह्मण ने बताया था वैसा ही हुआ। जल से एक चमकदार स्तंभ ऊपर उठने लगा। राजा विक्रमादित्य ने बिना पल गंवाए जल में छलाँग लगा दी और तैरते हुए स्तंभ के पास पहुँच गए। जैसे-जैसे सूर्य ऊपर जाता गया स्तंभ और ऊँचा उठता गया। विक्रमादित्य उस पर खड़े होकर सूर्यदेव की तप्त किरणों को सहन करते रहे। परंतु जब सूर्य अपने पूर्ण तेज पर पहुँचे तो राजा का शरीर गर्मी से झुलसने लगा और कुछ ही क्षणों में वह भस्म हो गए।

सूर्यदेव अपने रथ सहित जब उस स्तंभ के निकट पहुँचे तो उनकी दृष्टि नीचे गिरे हुए राख के ढेर पर पड़ी। वे उसके मनुष्य होने पर विस्मित हुए। उन्होंने अमृत छिड़का और वह राख दोबारा जीवित होकर राजा विक्रमादित्य के रूप में खड़ी हो गई। विक्रमादित्य folded hands में सूर्यदेव के सामने खड़े थे। सूर्यदेव ने कहा हे राजन, तुमने अपार धैर्य और अद्भुत साहस का परिचय दिया है। मैं तुम्हें एक वरदान देना चाहता हूँ। राजा बोले प्रभु, आपका आशीर्वाद ही मेरे लिए पर्याप्त है। पर सूर्यदेव बोले नहीं, मैं तुम्हें कुछ अवश्य दूँगा। उन्होंने अपने कानों के दो दिव्य कुण्डल उतारकर राजा को भेंट किए। उन्होंने कहा इन कुण्डलों में यह शक्ति है कि जो भी इच्छा तुम इनके माध्यम से करोगे वह पूरी होगी।

सूर्यास्त हुआ और स्तंभ जल में समा गया। वेतालों ने राजा को वापस उज्जैन पहुँचा दिया। रास्ते में उन्हें वही ब्राह्मण मिला जिसने संदेश लाया था। उसने राजा की यात्रा के बारे में पूछा और फिर उन दिव्य कुण्डलों की मांग की। विक्रमादित्य ने बिना किसी संदेह के वे कुण्डल उसे सौंप दिए और अपने महल की ओर बढ़ गए।

कहानी सुनाने के बाद कम कांडला ने राजा भोज से पूछा क्या तुम भी इतने साहसी हो कि अपने प्राणों की परवाह किए बिना कर्तव्य का पालन कर सको। क्या तुमने कभी ऐसा साहस दिखाया है जैसा विक्रमादित्य ने दिखाया। यदि हाँ तो इस सिंहासन पर बैठो, अन्यथा अपने महल लौट जाओ। यह कहकर कम कांडला फिर सिंहासन में विलीन हो गई।

यह सुनकर राजा भोज गहरे विचारों में पड़ गए। उन्हें लगा कि क्या वे सच में इतने योग्य हैं। यह प्रश्न उनके मन में पूरी रात बना रहा और वे सो नहीं सके।

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