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सिंहासन बत्तीसी कथा 8 – पुष्पवती की कथा

सिंहासन बत्तीसी की कहानियाँ

सिंहासन बत्तीसी कथा 8

सिंहासन बत्तीसी की आठवीं गुड़िया पुष्पवती की कहानी एक अद्भुत प्रसंग है जिसमें पराक्रम, करुणा, धर्म और त्याग का संदेश छिपा हुआ है। आठवें दिन जब राजा भोज सिंहासन के निकट पहुँचे तो आठवीं गुड़िया पुष्पवती प्रकट हुई। उसने राजा भोज से कहा कि उसका नाम पुष्पवती है और वह उन्हें विक्रमादित्य की एक कथा सुनाएगी। यदि राजा भोज स्वयं को उस महान राजा के समान पाएँ तब ही वे इस सिंहासन पर बैठने के योग्य होंगे। इतना कहकर उसने कथा आरंभ की।

राजा विक्रमादित्य न केवल पराक्रमी और न्यायप्रिय थे बल्कि कला और संस्कृति के बड़े संरक्षक भी थे। उनके दरबार में अनेक कलाकार अद्वितीय और सुंदर रचनाएँ प्रस्तुत करते थे। एक दिन एक वृद्ध व्यक्ति दरबार में आया। उसने वर्षों की मेहनत से बनाए गए एक लकड़ी के घोड़े को राजा के सामने प्रस्तुत किया और कहा कि यह घोड़ा न केवल धरती पर तेज गति से दौड़ सकता है बल्कि जल पर चल सकता है और आकाश में उड़ सकता है। उस वृद्ध ने घोड़े को चलाने का तरीका भी बताया। विक्रमादित्य उस अद्भुत घोड़े को देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए और उसे दो लाख स्वर्ण मुद्राओं में खरीद लिया। वृद्ध प्रसन्न होकर अपने घर लौट गया।

अगली सुबह राजा विक्रमादित्य शिकार पर जाने के उद्देश्य से उसी लकड़ी के घोड़े पर सवार हुए। कुछ दूरी तय करने के बाद उन्होंने घोड़े की गति बढ़ा दी और धीरे-धीरे उनके साथ चल रहे सैनिक बहुत पीछे छूट गए। राजा ने घोड़े को उड़ाने का विचार किया और यंत्र को संचालित किया। घोड़ा तीव्र वेग से आकाश में उड़ चला। उसकी गति इतनी तेज थी कि राजा इसे नियंत्रित नहीं कर पाए। उतरने के लिए बटन दबाया लेकिन घोड़ा एक पेड़ से टकरा गया और टूटकर बिखर गया। राजा किसी तरह बच गए लेकिन घने जंगल में भटक गए।

वह रास्ता ढूँढ़ते-ढूँढ़ते एक छोटे से मकान के पास पहुँचे। तभी एक बंदर पेड़ से कूदकर उनके सामने आ खड़ा हुआ और कुछ संकेतों के माध्यम से कुछ बताने की कोशिश करने लगा। राजा उसके संकेत नहीं समझ सके और उस झोपड़ी में प्रवेश न करने का निश्चय कर आगे बढ़ गए। थककर उन्होंने कुछ फल खाए और एक पेड़ के नीचे विश्राम किया।

नींद खुलने पर उन्होंने देखा कि एक वृद्ध ऋषि उसी पेड़ की ओर आ रहे थे और बंदर उनसे मिलने नीचे उतर गया। दोनों झोपड़ी के अंदर गए। उत्सुकतावश राजा भी चुपके से खिड़की से देखने लगे। झोपड़ी के भीतर दो मिट्टी के घड़े रखे थे। बंदर उनके बीच बैठा था। ऋषि ने पहले घड़े से कुछ पानी लिया और बंदर पर छिड़क दिया। देखते ही देखते बंदर एक सुंदर राजकुमारी में बदल गया। वह राजकुमारी ऋषि के लिए भोजन तैयार करने लगी। भोजन के बाद ऋषि सो गए। राजा पूरी रात इस रहस्य को सोचते हुए जागते रहे।

सुबह ऋषि ने दूसरे घड़े से पानी लेकर राजकुमारी पर छिड़का और वह फिर से बंदर बन गई। ऋषि वहाँ से चले गए। बंदर ने बाहर आकर राजा को सहायता के लिए पुकारा। राजा को उस पर दया आ गई। वे झोपड़ी में गए और पहले घड़े का पानी बंदर पर छिड़का। फिर से वह सुंदर राजकुमारी बन गई। उसने हाथ जोड़कर राजा को प्रणाम किया और धन्यवाद दिया।

राजा ने पूछा कि वह कैसे जानती है कि वे विक्रमादित्य हैं। राजकुमारी ने बताया कि उसका नाम कामिनी है और उसके माता-पिता कामदेव और पुष्पवती हैं। एक बार शिकार के दौरान उसने अनजाने में एक ऋषि को बाण लगा दिया था। क्रोधित होकर ऋषि ने उसे दिन का आधा समय बंदर और आधा समय मनुष्य बने रहने का श्राप दिया और कहा कि उसे एक अन्य ऋषि की सेवा करनी होगी। उसकी विनती पर ऋषि ने कहा था कि यह श्राप तो नहीं कटेगा लेकिन भविष्य में राजा विक्रमादित्य उसे मुक्त करेंगे और वह उन्हें पति रूप में स्वीकार करेंगे। इसीलिए वह उन्हें पहचान सकी।

राजा ने कहा कि वे उससे विवाह करने को तैयार हैं परंतु उसकी सेवा से प्रसन्न होकर ऋषि उसे कोई उपहार अवश्य दें। राजकुमारी ने सहमति जताई। संध्या को जब ऋषि आए और उसने भोजन बनाया तो उसने उनसे उपहार माँगा। ऋषि ने उसे एक जादुई कमल दिया जो प्रतिदिन एक मोती प्रदान करता था और साथ ही यह आशीर्वाद दिया कि वह अब श्राप से मुक्त है और राजा विक्रमादित्य के साथ सुखपूर्वक जीवन बिताए।

राजकुमारी बाहर आई और राजा उसे देखकर प्रसन्न हुए। राजा ने अपने दो बेटाल बुलाए और वे दोनों राजा और राजकुमारी को उड़ाकर उज्जैन ले चले। रास्ते में उन्हें एक सुन्दर बालक मिला। राजा ने वह कमल उस बालक को दे दिया। उज्जैन पहुँचकर राजा ने राजकुमारी कामिनी से विवाह किया।

कुछ समय बाद सैनिक एक गरीब व्यक्ति को मोतियों से भरी पोटली के साथ दरबार में लाए। पूछने पर उसने बताया कि उसे ये मोती एक कमल से मिलते हैं। राजा ने समझ लिया कि यह वही कमल है। उन्होंने मोतियों को भारी धनराशि देकर उससे खरीद लिया और गरीब व्यक्ति कृतज्ञता से चला गया।

कथा सुनाकर गुड़िया पुष्पवती ने राजा भोज से पूछा कि क्या वे भी विक्रमादित्य इतने उदार और साहसी बन सकते हैं। क्या वे किसी श्रापित कन्या से विवाह कर सकते हैं और क्या वे एक अनमोल वस्तु किसी साधारण बालक को दे सकते हैं। यदि हाँ, तभी वे सिंहासन पर बैठने योग्य होंगे। यह कहकर गुड़िया अपने स्थान पर लौट गई और राजा भोज अपने महल वापस चले गए।

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