गौरैया और बड़े-बड़े दाने
गाँव के एक शांत कोने में एक पुराना सा खेत था जहाँ सुबह की हल्की धूप मिट्टी पर चमकती थी और चारों ओर हल्की हवा बहती रहती थी। उसी खेत के किनारे एक पेड़ था जिसमें एक छोटी गौरैया रहती थी। वह नन्ही थी, चंचल थी और हर दिन सूरज निकलते ही भोजन की तलाश में निकल जाती थी। उसके पंख हल्के भूरे थे और उसकी आँखों में नई दुनिया को समझने की चमक थी।
वह हमेशा मेहनत करती थी और छोटी-छोटी चीजें भी उसके लिए खुशी का कारण बन जाती थीं, लेकिन एक बात उसे हमेशा अंदर से परेशान करती थी। खेत में जितनी चिड़ियों को वह देखती, उनमें से कई बड़ी थीं और आसानी से भारी दाने उठाकर ले जाती थीं। गौरैया को लगता था कि अगर वह भी बड़े दाने उठाए तो शायद वह भी दूसरों की तरह मजबूत लगेंगी। इसी सोच के साथ वह रोज बड़े दाने उठाने की कोशिश करती, लेकिन हर बार उसकी चोंच से दाना फिसल जाता या उसके पंखों में वह वजन सहने की ताकत नहीं होती थी।
धीरे-धीरे इस नाकामी से उसके मन में निराशा आने लगी, लेकिन वह मानने को तैयार नहीं थी कि छोटे दाने भी काफी हो सकते हैं। उसे लगता था कि अगर उसने छोटे दाने चुन लिए तो लोग समझेंगे कि वह कमजोर है और मेहनत नहीं करती।
एक सुबह जब खेत में नए दाने बिखेरे गए तो सारे पक्षी उन्हें खाने पहुँच गए। गौरैया की नजर सबसे पहले बड़े और मोटे दानों पर पड़ी। वह दौड़कर पहुँची और अपनी पूरी ताकत लगाकर दाना उठाने लगी। उसने चोंच कसकर बंद की और पंखों को तेजी से हिलाया लेकिन दाना उठते ही नीचे गिर गया। उसने फिर कोशिश की और फिर दाना छूट गया। उसने तीसरी बार कोशिश की और इस बार तो वह खुद ही उलट कर नीचे गिर पड़ी। आस-पास की चिड़ियाँ उसे देख रही थीं, लेकिन वह किसी की परवाह किए बिना बार-बार कोशिश कर रही थी। वह थकने लगी, उसकी साँसे भारी होने लगीं, फिर भी वह खुद को रोक नहीं पा रही थी। उसे लगता था कि अगर आज उसने दाने उठा लिए तो सब जान जाएँगे कि वह कमजोर नहीं है।
कुछ समय बाद एक बुज़ुर्ग कबूतर वहीं आया। वह हमेशा गौरैया को कोशिश करते देखता था। उसने गौरैया के पास आकर पूछा कि वह इतने बड़े दाने क्यों चुनती है जबकि छोटे दानों से भी पेट भर सकता है। गौरैया ने सिर नीचे कर लिया और धीमे से कहा कि उसे लगता है कि छोटे दाने लेने का मतलब है कि वह कमजोर बन रही है और बाकी पक्षियों से कम है। कबूतर मुस्कुराया और बोला, “ताकत दाने के आकार से नहीं होती, ताकत समझदारी से चुने गए भोजन और अपनी सीमाओं को समझने से होती है।” गौरैया ने उसकी बात सुनी, लेकिन फिर भी उसके मन में अजीब सी असहमति थी। उसे लग रहा था कि शायद कबूतर उसे समझ नहीं रहा।
दोपहर हुई और धूप थोड़ी तेज हो गई। गौरैया भूख से परेशान होने लगी। वह सुबह से एक भी दाना नहीं खा पाई थी, क्योंकि उसने केवल बड़े दाने उठाने की कोशिश की थी। अब उसकी ऊर्जा कम हो गई थी। उसकी आँखें भारी हो रही थीं, और पंख थक चुके थे। वह सोच रही थी कि शायद आज उसे भूखे ही सोना पड़ेगा। तभी हवा के झोंके से कुछ छोटे दाने उसकी तरफ लुढ़ककर आए। गौरैया ने उन्हें देखा, लेकिन मन में फिर वही विचार आया कि वह छोटे दाने नहीं खाएगी। पर जब उसने पास के दानों को उठाने की कोशिश की और फिर दाना गिर गया, तो उसे समझ आया कि उसके पास अब ज्यादा ऊर्जा नहीं बची।
थोड़ी देर बाद वह चुपचाप बैठी रही और फिर उसने अपने मन की ज़िद छोड़कर एक छोटा दाना उठाया। वह दाना उसके लिए बहुत हल्का था और आसानी से उसकी चोंच में आ गया। उसने उसे खा लिया और कुछ ही क्षणों में उसकी भूख थोड़ी कम हुई।
शिक्षा : छोटी चीजें भी बड़ा लाभ देती हैं और समझदारी इसी में है कि हम अपने लिए सही चीज चुनें।