भालू और मधुमक्खियाँ
घने जंगल के बीचोंबीच एक लंबा और मजबूत पेड़ खड़ा था। उसकी ऊपरी शाखा पर मधुमक्खियों का बड़ा छत्ता लटका था, जिसमें सैकड़ों मधुमक्खियाँ रहती थीं। जंगल के सभी जानवर जानते थे कि मधुमक्खियाँ मेहनती होती हैं। वे सुबह से शाम तक फूलों से रस लाकर उसे शहद में बदलती हैं और अपने छत्ते को सुरक्षित रखती हैं। इस छत्ते के पास कोई भी जानवर बेवजह नहीं जाता था, क्योंकि सभी जानते थे कि मधुमक्खियाँ अपने घर की रक्षा के लिए हमेशा तैयार रहती हैं।
जंगल में एक बड़ा और ताकतवर भालू भी रहता था। उसे मीठा बहुत पसंद था, खासकर शहद। जब भी वह जंगल में घूमता, उसे फूलों की महक और पेड़ों की ठंडी छाया भाती, लेकिन सबसे ज्यादा उसकी नजर शहद पर होती। भालू जानता था कि जंगल के किसी भी कोने में शहद मिलेगा तो वह मधुमक्खियों के छत्ते में ही मिलेगा।
एक दिन दोपहर के समय भालू उस बड़े पेड़ के पास आया। उसकी नजर ऊपर छत्ते पर पड़ी और उसके मन में तुरंत मीठा शहद पाने का लालच भर गया। उसने सोचा कि अगर वह आज यह छत्ता तोड़ ले, तो उसे कई दिनों का मीठा स्वाद मिल सकता है। लेकिन उसे यह भी पता था कि मधुमक्खियाँ बहुत साहसी रक्षक होती हैं। फिर भी लालच उसके मन में इतनी तेजी से बढ़ा कि उसने खतरे को नजरअंदाज कर दिया।
भालू पेड़ के पास बैठा और उन मधुमक्खियों को देखने लगा, जो फूलों से लौटकर छत्ते में घुस रही थीं। उसे लगा कि वे ज्यादा ध्यान नहीं दे रही हैं। उसने मन में कहा, “थोड़ा सा इंतजार करूँगा, फिर छत्ता खींचकर भाग जाऊँगा।” भालू को लगा कि वह बहुत चालाकी कर रहा है, लेकिन असल में वह मधुमक्खियों की शक्ति को कम समझ रहा था।
कुछ देर इंतजार करने के बाद भालू पेड़ पर चढ़ने लगा। उसकी भारी शरीर से पेड़ की शाखाएँ हिलने लगीं। मधुमक्खियों ने यह कंपन महसूस किया, लेकिन शुरुआत में सोचा कि शायद हवा चल रही है। भालू धीरे-धीरे ऊपर पहुँचा और छत्ते तक पहुँच गया। अब लालच उसे और बढ़ाने लगा। उसने अपने बड़े पंजे से छत्ते को पकड़ लिया और जोर से खींचा।
जैसे ही छत्ता हल्का सा भी हिला, मधुमक्खियाँ चौकन्नी हो गईं। उन्होंने देखा कि एक बड़ा भालू उनके घर को छू रहा है। उनके छत्ते के अंदर उनकी मेहनत की शहद भरी थी। उन्हें पता था कि अगर उन्होंने अपने घर की रक्षा नहीं की, तो उनकी सारी मेहनत बर्बाद हो जाएगी।
भालू ने एक और जोर का झटका देकर छत्ते को तोड़ने की कोशिश की। बस फिर क्या था। मधुमक्खियों का पूरा दल भिनभिनाता हुआ बाहर निकला। उनकी गूंजती आवाज जंगल में फैल गई। भालू ने यह आवाज सुनी, पर अब बहुत देर हो चुकी थी। उसने छत्ते का एक हिस्सा खींच लिया था, और इससे मधुमक्खियाँ पूरी तरह नाराज हो गईं।
सैकड़ों मधुमक्खियाँ एक साथ भालू पर टूट पड़ीं। वे उसके चेहरे, नाक और पंजों के आसपास मंडराने लगीं। भालू घबरा गया। उसे लगा था कि वह आसानी से छत्ता लेकर भाग जाएगा, लेकिन मधुमक्खियों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि वह खुद को बचा भी नहीं पा रहा था। मधुमक्खियों ने उसे कई जगह डंक मारे। भालू दर्द से कराहने लगा। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और पेड़ की शाखा से नीचे कूद गया।
जमीन पर गिरते ही वह बिना पीछे देखे जंगल की तरफ दौड़ पड़ा। वह बार-बार हाथों से अपने चेहरे को बचाने की कोशिश करता, लेकिन मधुमक्खियों का झुंड उसका पीछा कर रहा था। आखिरकार वह एक बड़ी झाड़ी के पीछे छिप गया और वहीं मिट्टी में लोटने लगा ताकि मधुमक्खियाँ हट जाएँ। थोड़ी देर बाद मधुमक्खियाँ अपने छत्ते की ओर लौट गईं।
भालू हाँफते हुए बैठ गया। उसका शरीर दर्द से भर गया था। उसे समझ आ चुका था कि लालच ने उसे मुसीबत में डाल दिया। जिस शहद के लिए उसने इतना जोखिम उठाया, उसका एक भी कतरा उसे नहीं मिला। उल्टा उसे चोटें मिल गईं।
दूसरी ओर मधुमक्खियाँ छत्ते की मरम्मत में लग गईं। वे जानती थीं कि किसी भी खतरे का जवाब एकता से ही दिया जा सकता है। उन्होंने अपने घर को फिर से ठीक करना शुरू किया और अगले ही दिन छत्ता पहले जैसा मजबूत हो गया। जंगल के कई पक्षियों ने यह देखा और उन्होंने चर्चा की कि मेहनत करने वालों को कोई आसानी से नहीं हराता।
भालू कई दिनों तक पेड़ के पास नहीं आया। उसका शरीर धीरे-धीरे ठीक होने लगा, लेकिन उसे अब भी दर्द याद था। हर बार जब वह दूर से उस पेड़ को देखता, उसे मधुमक्खियों का झुंड दिखाई देता। भालू ने सोचा, “अगर मैंने लालच न किया होता, तो आज मुझे दर्द न सहना पड़ता।”
कुछ दिनों बाद भालू को जंगल का एक बूढ़ा कछुआ मिला। कछुए ने उसकी सूजी हुई आँख देखकर पूछा, “क्या हुआ?”
भालू ने शर्माते हुए सारी बात बताई। कछुए ने शांत होकर कहा, “जो भी लालच में अंधा होता है, उसे अंत में केवल दुख ही मिलता है। मेहनत से पाओ, लेकिन चोरी या जबरदस्ती से नहीं।”
भालू ने यह बात दिल से समझ ली। वह अब जानता था कि जंगल में हर किसी का एक घर है और हर किसी को उसकी मेहनत की कीमत देनी चाहिए। उसने तय किया कि अब वह शहद तभी खाएगा जब मधुमक्खियाँ खुद छत्ता छोड़ दें या शहद गिरकर उसे मिल जाए। वह अब सीधे छत्ते को नहीं छुएगा।
धीरे-धीरे भालू ने अपनी गलती को पूरी तरह स्वीकार किया। वह अब केवल उन फलों को खाता जो पेड़ों से खुद गिरते। जंगल के जानवरों ने उसकी बदली आदतों को देखा और उसे पसंद करना शुरू किया। भालू भी समझदार बन गया और दूसरों की मेहनत का सम्मान करने लगा। मधुमक्खियाँ भी बिना डर के अपना काम करती रहीं।
एक सुबह जब भालू पेड़ के पास से गुजरा, तो उसने छत्ते की दिशा में देखा और मन ही मन कहा, “आज के बाद मैं तुम्हारा घर नहीं छेडूँगा। तुम्हारी मेहनत तुम ही रखो।”
शिक्षा: लालच का फल हमेशा दुख होता है। जो मेहनत नहीं करता और दूसरों का हक छीनना चाहता है, उसे अंत में पछताना ही पड़ता है।