चिड़िया-और-आँधी-–-The-Bird-and-the-Storm

चिड़िया और आँधी – The Bird and the Storm

जानवरों की कहानियाँ

चिड़िया और आँधी 

एक छोटा सा गाँव था जो पहाड़ियों और खेतों से घिरा हुआ था। उस गाँव के किनारे एक पुराना सा पीपल का पेड़ खड़ा था जो कई बरसों से मौसमों को आते और जाते देखता रहा था। उसी पेड़ की एक ऊँची टहनी पर एक नन्ही चिड़िया रहती थी। वह कोई खास बड़ी या रंग-बिरंगी नहीं थी, पर उसकी आँखों में जिज्ञासा और दिल में हिम्मत भरी रहती थी। वह सुबह-सुबह खेतों पर उड़कर जाती, दाने चुगती, बच्चों को खिलौनों की तरह उसे देखते देखती और शाम तक वापस लौट आती थी। गाँव के लोग उसे पहचानते थे और कहते थे कि यह चिड़िया बड़ी होशियार है, क्योंकि वह हमेशा अपने लिए सही जगह चुन लेती है।

एक दिन दोपहर ढलते समय आसमान अचानक गहराने लगा। हवा की रफ्तार बढ़ने लगी। खेतों में खड़े पेड़ों की पत्तियाँ तेज सरसराहट से हिलने लगीं। गाँव के लोग समझ गए कि आज तेज आँधी आने वाली है। कुछ ही देर में आसमान जैसे गुस्से से भर गया। दूर से अजीब-सी घरघराहट सुनाई देने लगी। बादल एक-दूसरे से टकराकर आवाज़ें निकाल रहे थे और हवा की गति बढ़ती जा रही थी।

पेड़ पर रहने वाले पक्षी यह सब देखकर घबरा गए। कुछ कौवे जोर-जोर से काँव-काँव करने लगे, कुछ गौरैया इधर-उधर उड़ीं, लेकिन उन्हें कहीं भी सुरक्षित जगह नहीं मिल रही थी। आसमान में उड़ना अब खतरे से खाली नहीं था क्योंकि हवा धक्का देकर उन्हें नीचे गिरा सकती थी। सारे पंखों-वाले जीव अपनी-अपनी जगह ढूँढने के लिए दौड़ पड़े। किसी ने झाड़ियों में छिपने की कोशिश की, किसी ने झोपड़ी के छप्पर के नीचे शरण ली, कुछ बड़े पक्षी अपने पंख फैलाकर बच्चों को ढाल देने लगे।

लेकिन वह नन्ही चिड़िया शांत खड़ी सब देख रही थी। उसका दिल जरूर तेज धड़क रहा था, पर घबराहट में फैसले लेने की आदत उसे कभी नहीं थी। उसे याद आया कि उसकी दादी चिड़िया कहा करती थीं कि जब भी कोई बड़ी आँधी आए, तो खुद को फैलाकर नहीं, बल्कि सिकोड़कर सुरक्षित रखना चाहिए। किसी बड़ी जगह में नहीं, बल्कि किसी मिले हुए छोटे कोने में टिककर रहना चाहिए, क्योंकि बड़ी शक्तियाँ कभी-कभी छोटी जगहों को छोड़कर सब कुछ उखाड़ ले जाती हैं।

आँधी अब और करीब आ चुकी थी। हवा पेड़ की शाखाओं को जोर से झकझोर रही थी। दूसरे पक्षी डर के कारण इधर-उधर टकरा रहे थे। कई पत्तियाँ हवा में उड़ गईं, और कुछ टहनियाँ टूटकर जमीन पर गिरने लगीं। तभी नन्ही चिड़िया ने चारों ओर नजर घुमाई और अपनी शाखा के पास तने में एक बहुत छोटी दरार देखी। वह दरार इतनी छोटी थी कि कोई बड़ा पक्षी उसमें घुस भी नहीं सकता था। लेकिन चिड़िया को समझ आ गया कि यही उसकी सबसे सुरक्षित जगह बन सकती है।

बिना समय गंवाए वह उस दरार तक पहुँची और खुद को अंदर धीरे से समा लिया। शुरू में जगह इतनी तंग लगी कि वह हिल भी नहीं पा रही थी, पर थोड़ी देर बाद उसे महसूस हुआ कि यह तंग जगह ही उसे हवा के झोंकों से बचा रही है। बाहर हवा की आवाज़ और बादलों की गड़गड़ाहट बढ़ रही थी। पेड़ हिलकर चरमराने लगा था। कई बड़े पक्षी तेज हवा में संतुलन बनाए रखने के लिए पंख फड़फड़ा रहे थे। कुछ तो नीचे गिरने से बाल-बाल बचे।

लेकिन उस छोटी दरार में चिड़िया को हवा की ताकत महसूस ही नहीं हो रही थी। वह अंधेरा छोटा-सा कोना उसके लिए दीवार की तरह था, जो आँधी को रोक रहा था। वह केवल बाहर की आवाज़ सुन पा रही थी, लेकिन हवा का कोई झोंका उसे छू भी नहीं रहा था। उसके दिल में एक तरह की शांति उतर आई। उसे लगने लगा कि कभी-कभी दुनिया हमें बताती है कि बड़ी चीजें ही ताकत देती हैं, पर सच यह है कि कई बार छोटी जगहें भी बड़े सहारे बन जाती हैं।

आँधी देर तक चली। पेड़ यहाँ-वहाँ से टूटे, पत्तियाँ जमीन पर बिखर गईं। गाँव के लोग अपने घरों के दरवाजे कसकर बंद करके बैठे रहे। बहुत देर बाद हवा शांत पड़ने लगी। बादलों की गड़गड़ाहट भी धीरे-धीरे कम हो गई।

शिक्षा: छोटी जगह भी बड़ी सुरक्षा देती है, इसलिए मुश्किल समय में घबराकर बड़ा फैसला लेने से बेहतर है कि सही छोटा सहारा ढूँढा जाए।

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