गाय और दो साँप
हरे भरे खेतों से घिरे एक शांत गाँव के बाहर एक पुराना बरगद का पेड़ था, जिसकी छाया में एक दयालु गाय रहती थी। उसका स्वभाव शांत था और वह किसी को भी दुख नहीं देती थी। हर सुबह जब सूरज की हल्की किरणें फैलतीं, गाय अपने छोटे से घास के मैदान में आराम से चरती और फिर उसी बरगद के पेड़ के पास जाकर दिन बिताती। उसकी आँखों में हमेशा अपनापन दिखता था और उसे देखकर लोगों को सुकून मिलता था। गाँव के बच्चे भी उसे प्यार से छूते और वह उनकी बातें बड़े धैर्य से सुनती। उसके जीवन में कोई छल नहीं था, न कोई शक्कीपन, क्योंकि वह खुद सीधी और भरोसेमंद थी।
लेकिन उसी बरगद के पेड़ की जड़ों के पास दो साँप रहते थे। दोनों आकार में अलग थे और स्वभाव में भी एक-दूसरे से बिल्कुल भिन्न। पहला साँप पतला और चालाक था। उसकी जुबान पर हमेशा मीठे शब्द होते थे। वह हमेशा मुस्कुराता हुआ दिखता, जैसे वह किसी का भी साथी बन सकता हो। दूसरा साँप मोटा और कठोर था। उसकी आँखों में हमेशा डरावनी चमक रहती थी, और वह अक्सर फुफकारते हुए किसी को भी डराता, चाहे ज़रूरत हो या नहीं।
एक दिन दोपहर में जब धूप थोड़ा तेज़ हो गई थी, पहली बार पतला साँप गाय के पास आया। वह बड़ी विनम्रता से बोला, “गौ माता, आप कितनी दयालु हो। हर रोज़ ताज़ा दूध देती हो और सबको पोषण देती हो। मैं तो बस एक छोटा सा जीव हूँ, मेरा पेट भी भर नहीं पाता। क्या आप मुझे थोड़ा सा दूध दे सकती हो? आपके दूध से मुझे ताकत मिल जाएगी और मैं स्वस्थ रहूँगा।”
गाय ने उसकी बात ध्यान से सुनी। उसे वह साँप ईमानदार और गरीब लगा। उसका स्वर इतना शांत और नरम था कि गाय को उसमें कोई बुराई नहीं दिखी। उसने सिर झुकाकर सहमति दी और अपने दूध का थोड़ा हिस्सा साँप को दे दिया। साँप ने सिर झुकाकर धन्यवाद कहा और धीरे-धीरे वापस अपनी जगह चला गया। गाय को लगा कि उसने किसी जरूरतमंद की मदद की है, और यह उसे अच्छा लगा।
अगले कुछ दिनों तक यही होता रहा। पतला साँप धीरे-धीरे आता, विनम्रता से थोड़े दूध की मांग करता और गाय उसे शांति से दे देती। गाय को उसके व्यवहार में अपनापन दिखा और उसने सोचा कि यदि थोड़े दूध से किसी का पेट भरता है, तो इसमें हर्ज क्या है।
लेकिन यह सब दूसरी तरफ से एकदम अलग हो रहा था। पेड़ की दूसरी जड़ के पास रहने वाला मोटा साँप हर दिन यह पूरी घटना देखता था। उसकी आँखों में ईर्ष्या थी। उसे बुरा लगा कि पतले साँप को दूध मिल रहा है और उसे नहीं। लेकिन वह दूध माँगना नहीं चाहता था, उसे डर दिखाने का तरीका पसंद था। वह मानता था कि जोर और भय से सबकुछ हासिल किया जा सकता है। उसके मन में लालच बढ़ता गया।
एक दिन रात के समय जब गाय सोने के लिए मिट्टी के ढेर के पास गई, मोटा साँप धीरे-धीरे उसकी ओर रेंगता हुआ आया। अंधेरा बढ़ रहा था और उसकी फुफकार हवा में गूंज रही थी। गाय उसकी ओर देख हड़बड़ा गई। मोटे साँप ने अपनी फूली हुई आवाज़ में कहा, “मैं तुमसे दूध चाहता हूँ। लेकिन मैं तुमसे पूछने नहीं आया। अगर तुमने मना किया, तो मैं तुम्हें और तुम्हारे बछड़े को डस सकता हूँ। इसलिए बेहतर है कि तुम चुपचाप मेरा पेट भर दो।”
गाय डर गई। वह आमतौर पर किसी से भयभीत नहीं होती थी, लेकिन साँप की फुफकार और उसकी आँखों की चमक ने उसे असहज कर दिया। डर में वह कुछ समझ नहीं पाई और मजबूरी में उसने कुछ दूध मोटे साँप की ओर बहा दिया। मोटा साँप तुरंत पी गया और बिना धन्यवाद किए वापस छिप गया।
गाय रातभर सो नहीं पाई। उसे लगा कि वह किसी मुसीबत में फँस गई है। उसे यह भी समझ नहीं आ रहा था कि वह दोनों साँपों को कैसे संभाले। एक मीठी बात करके दूध लेता है और दूसरा डर दिखाकर। उसकी दया और उसका डर दोनों उसे कहीं न कहीं परेशानी दे रहे थे।
अगली सुबह पतला साँप फिर आया। वह पहले जैसा ही नम्र था। बोला, “गौ माता, क्या आज थोड़ी मदद मिलेगी?” गाय उसे देखकर परेशान हो गई। उसने पूछा, “तुम दोनों यहाँ रहते हो? कल रात एक मोटा साँप आया था। वह मुझे डरा रहा था और दूध छीनकर ले गया।”
पतला साँप कुछ क्षण के लिए चौंक गया लेकिन अगले ही पल उसका व्यवहार शांत हो गया। “अरे, उसे भूल जाओ,” वह बोला। “वह थोड़ा परेशान करने वाला है। लेकिन मैं तो आपका सच्चा साथी हूँ। आप मुझे दूध देना बंद मत करना। वह कभी-कभी जोर से बोलता है, पर मैं तो आपका भला चाहता हूँ।”
गाय ने ध्यान से उसकी बात सुनी। उसे लगा कि पतला साँप भी अपने तरीके से बात घुमा रहा है। दोनों साँप एक ही जगह रहते थे, दोनों जानते थे कि क्या हो रहा है, फिर भी एक मीठी बातों से उसे बाँध रहा था और दूसरा भय से लूट रहा था। गाय को समझ आ गया कि यह कोई संयोग नहीं है। शायद दोनों एक ही खेल खेल रहे थे, बस तरीके अलग थे। एक मिठास से जीत रहा था और दूसरा डर से।
कुछ दिनों तक यही चलता रहा। पतला साँप धीरे-धीरे बहुत दूध मांगने लगा। वह हर बार अपनी दया की कहानी सुनाता और गाय को यह एहसास दिलाता कि वह उसकी मदद करने की जिम्मेदार है। दूसरी ओर मोटा साँप समय-समय पर आकर डर दिखाता और दूध ले जाता। गाय अब उनके बीच फँसी हुई महसूस कर रही थी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि यह सच में मदद है या कोई चाल।
एक दिन गाय ने सोचा कि वह पूरे मामले को ध्यान से परखेगी। वह देखेगी कि साँप कब आते हैं, कैसे व्यवहार करते हैं और उनका उद्देश्य क्या है। वह पूरे दिन सतर्क रही और शाम होते ही उसने दोनों साँपों को एक-दूसरे से बात करते सुन लिया। वे दोनों हँस रहे थे और कह रहे थे कि गाय कितनी आसानी से विश्वास कर लेती है और डर जाती है।
गाय को सब समझ आ गया। वे दोनों मिलकर उसे इस्तेमाल कर रहे थे। एक मीठी बातों से और दूसरा भय का सहारा लेकर। उनकी चालाकी और लालच अब साफ दिख रहा था। गाय ने तय किया कि वह अब न मीठी बातों से बहकेगी और न डर की वजह से झुकेगी। उसे खुद के लिए खड़ा होना होगा।
अगली सुबह जब पतला साँप दूध मांगने आया, गाय आगे नहीं बढ़ी। उसने शांत और दृढ़ स्वर में कहा, “आज से मैं किसी को दूध नहीं दूँगी। तुम मीठे शब्दों में अपनी बात छुपाते हो और दूसरा डर का सहारा लेकर मुझसे लेता है। तुम दोनों मेरी दया और कमजोरी का फायदा उठाने की कोशिश कर रहे थे। अब मैं तुम्हारी किसी भी बात में नहीं आने वाली।”
पतला साँप एक पल के लिए चकरा गया। उसने फिर कोशिश की, “लेकिन मैं तो आपका मित्र हूँ…”
गाय दृढ़ रही, “सच्चा मित्र इस्तेमाल नहीं करता। तुम दोनों जाओ। मैं अब अपनी सुरक्षा खुद करूँगी।”
कुछ देर बाद मोटा साँप भी आया, लेकिन गाय ने उसी आत्मविश्वास से उसे रोक दिया। उसने जमीन पर अपने खुर जोर से पटके और कहा, “ये मेरा दूध है और मैं इसे किसी को मजबूरी या डर में नहीं दूँगी। तुम दोनों दूर रहो और अपनी चालाकी कहीं और दिखाना।”
दोनों साँपों को गाय की हिम्मत का अंदाज़ा नहीं था। वे एक-दूसरे की ओर देखकर समझ गए कि गाय उनके जाल से निकल चुकी है। वे धीरे-धीरे वहाँ से दूर चले गए और फिर कभी उसे परेशान करने नहीं आए।
अब गाय फिर से शांत और सुरक्षित रहने लगी। उसने समझ लिया कि मीठी बात और डर दोनों ही जाल हो सकते हैं। उसने यह भी सीखा कि विश्वास करना अच्छा है, लेकिन समझदारी के बिना विश्वास नुकसान पहुँचा सकता है। और उस दिन से वह हर जीव को ध्यान से परखने लगी, चाहे वह कितना भी नम्र या डरावना क्यों न दिखे।
शिक्षा: मीठी बात और डर – दोनों से सावधान रहो।