कोयल-और-कठफोड़वा---The-Cuckoo-and-the-Woodpecker

कोयल और कठफोड़वा – The Cuckoo and the Woodpecker

जानवरों की कहानियाँ

कोयल और कठफोड़वा 

घने जंगल के बीच एक पुराना सा पेड़ खड़ा था जिसकी शाखाओं पर अलग-अलग पक्षियों के घर बसे थे। उसी पेड़ के एक ऊँचे हिस्से में कठफोड़वा का मजबूत और साफ-सुथरा घोंसला था। कठफोड़वा मेहनती था और सुबह से शाम तक अपनी चोंच से पेड़ को ठक-ठक करता रहता था, ताकि कीड़े बाहर आएँ और उसका पेट भरे। वह अपना घोंसला भी बहुत ध्यान से बनाता था। हर तिनका, हर लकड़ी का टुकड़ा, हर अंदरूनी दीवार ऐसे सजी रहती थी जैसे किसी ने बहुत बारीकी से घर तैयार किया हो। जंगल के दूसरे पक्षी भी उसकी मेहनत की इज़्ज़त करते थे।

जंगल में एक और पक्षी रहती थी, कोयल। वह अपनी मीठी आवाज़ के लिए मशहूर थी लेकिन एक आदत उसकी बड़ी अजीब थी। वह अपना अंडा खुद सेती नहीं थी। वह हमेशा किसी दूसरे पक्षी के घोंसले की तलाश में रहती कि वहाँ अपना अंडा डालकर आराम से घूमती रहे और किसी और पर जिम्मेदारी छोड़ दे। उसे यह तरीका आसान लगता था। एक तरफ उसकी मधुर आवाज़ सबको आकर्षित करती और दूसरी तरफ वह अपने काम से भागती रहती।

एक दिन सुबह-सुबह कोयल पेड़ के चारों तरफ उड़ती हुई जगह ढूंढ रही थी जहाँ वह अपना अंडा रख सके। उसे किसी भी पक्षी का ध्यान नज़र नहीं आ रहा था। तभी उसकी निगाह कठफोड़वा के घोंसले पर गई। वह पेड़ के तने पर अकेला ही कुछ काम कर रहा था और घोंसला खाली पड़ा था। कोयल ने सोचा यह उसके लिए सही मौका है।

लेकिन वह जानती थी कि कठफोड़वा बहुत समझदार होता है। वह अपने घोंसले में किसी भी बदलाव को पहचान लेता है। इसलिए उसने पहले दूर से ही घोंसले का निरीक्षण करना शुरू किया। पेड़ की एक ऊँची शाखा पर बैठकर उसने देखा कि कठफोड़वा अपने काम में इतना व्यस्त है कि शायद उसे घोंसले पर ध्यान देने का समय नहीं मिलेगा।

“अगर मैंने सही समय पर अंडा रख दिया, तो यह समझ नहीं पाएगा,” कोयल ने मन में सोचा। वह धीरे से नीचे उतरी, पत्तों के पीछे छिपकर देखती रही कि कहीं कोई उसे देख तो नहीं रहा। सारी जगह शांत थी। हल्की हवा चल रही थी और धूप पत्तों पर चमक रही थी।

कठफोड़वा थोड़ी देर के लिए उड़कर सामने वाले पेड़ की ओर चला गया। वह कीड़े निकालने गया था। कोयल तुरंत घोंसले में घुस गई। अंदर बहुत साफ-सुथरी जगह थी। तिनकों का बिछावन नरम था। यह देखकर उसके मन में एक और विचार आया कि मेहनत करके घोंसला बनाने वालों को बेवकूफ बनाना कितना आसान है। उसने अपना अंडा धीरे से रख दिया, एक बार चारों तरफ देखा और फिर जल्दी से बाहर निकल गई।

वह अपने पेड़ पर बैठ गई और मन ही मन खुश होने लगी कि अब उसकी जिम्मेदारी खत्म। अब कठफोड़वा ही इस अंडे की देखभाल करेगा।

कुछ देर बाद कठफोड़वा वापस आया। उसने घोंसले में झाँका और पहले तो सब ठीक लगा। लेकिन वह उस पक्षी में से था जो अपने घर की हर चीज़ को पहचानता था। उसने ध्यान से देखा तो उसे लगा कि घोंसले में तिनके थोड़े से हिले हुए हैं। फिर उसकी नजर अंडों पर गई। वह रोज जो अंडे देखता था, उनकी बनावट और रंग उसे याद थे। आज उसे एक अंडा अलग लगा।

“यह अंडा मेरा नहीं है,” उसने सोचा। उसने उस अंडे को ध्यान से देखा। उसका रंग थोड़ा अलग था और आकार भी।

कठफोड़वा ने तुरंत समझ लिया कि यह किसी दूसरे पक्षी की चाल है। उसने चारों तरफ नजर दौड़ाई और पेड़ पर बैठे पक्षियों से पूछा, “किसी ने मेरे घोंसले के पास किसी अजनबी को देखा है?”

फिर उसकी नजर ऊपर की शाखा पर बैठी कोयल पर पड़ी। कोयल घबरा गई। वह अपनी जगह से फड़फड़ाई, पर चुप रही। कठफोड़वा समझ गया कि यह काम उसी का है।

कठफोड़वा उड़कर कोयल के पास आया और बोला, “तुम्हें मेहनत नहीं करनी थी इसलिए तुमने मेरा घर चुना। लेकिन यह गलत है। कोई भी चोरी का रास्ता हमेशा नुकसान ही देता है।”

कोयल डर गई लेकिन वह अपनी आदत के कारण बहस करने लगी, “घोंसला तो किसी का भी हो सकता है। मैं भी तो पक्षी ही हूँ। अगर मेरे अंडे तुम्हारे पास रहेंगे, तो क्या बुरा है?”

कठफोड़वा ने शांत होकर कहा, “बुरा यह है कि तुम मेहनत नहीं करना चाहती। कोई भी घर जिम्मेदारी मांगता है। जो घोंसला बनाता है, उसकी पहचान और उसकी मेहनत अलग होती है। अपने अंडों की देखभाल करो, किसी और पर बोझ मत डालो।”

कठफोड़वा ने अपना घोंसला फिर से साफ किया और उस अजनबी अंडे को बाहर निकाल दिया। उसने हर तिनके को फिर से व्यवस्थित किया और अपनी मेहनत पूर्ववत जारी रखी।

कोयल को शर्म आई। उसे लगा कि वह जितनी बार भी ऐसे काम करे, हर बार उसे ही नुकसान उठाना पड़ेगा। जंगल के कई पक्षियों ने यह घटना देखी। उन्होंने कोयल की हरकत पर नजरें फेर लीं और उसकी आदतों पर बात करने लगे।

“अगर तुम इसी तरह कामचोरी करती रहोगी, तो कभी अपनी जिम्मेदारी नहीं निभा पाओगी,” एक बूढ़े तोते ने कहा।

कोयल को लगा कि आज उसे सबकी नजरों में गिरना पड़ा है। लेकिन उसने सोचा कि शायद अगली बार भी कोई और पक्षी उसे नहीं पकड़ पाएगा। यह सोचकर वह उड़ गई, लेकिन अंदर से उसे पता था कि चाहे कितनी बार कोशिश करे, मेहनत और ईमानदारी की जगह कोई तरकीब नहीं ले सकती।

दूसरी ओर कठफोड़वा अपने घोंसले में पूरी लगन से लगा रहा। उसने तय किया कि वह हमेशा अपने घर को सुरक्षित रखेगा और किसी भी चाल का जवाब समझदारी से देगा। उसकी मेहनत और सतर्कता ने उसे जंगल का सम्मानित पक्षी बना दिया। दूसरे पक्षी भी उससे सीख लेने लगे कि कोई भी जिम्मेदारी बिना मेहनत पूरी नहीं होती और किसी के भरोसे का गलत फायदा उठाना गलत है।

कुछ दिनों बाद जब कोयल फिर से किसी घोंसले की तलाश में निकली, तो उसे याद आया कि कठफोड़वा की दृढ़ता ने उसे रोक दिया था। उसने सोचा कि दूसरों का घर इस्तेमाल करने से अच्छा है कि वह खुद मेहनत करे। लेकिन उसके मन में यह आदत इतनी गहरी थी कि वह बार-बार पुराने तरीके अपनाने की सोचती। फिर भी कठफोड़वा के शब्द कहीं न कहीं उसे रोकते रहे।

कठफोड़वा की कहानी जंगल में फैल गई। इसकी वजह यह नहीं थी कि उसने कोयल का अंडा बाहर निकाला, बल्कि इसलिए कि उसने धोखे को पहचानकर बुद्धिमानी से काम किया। सभी पक्षियों ने उसकी समझ की तारीफ की।

धीरे-धीरे कोयल ने महसूस किया कि जंगल में उसकी जगह कम होती जा रही है। कोई उसके पास बैठना पसंद नहीं करता था। उसने महसूस किया कि गलती केवल उसकी आदत में थी। जिम्मेदारी से दूर भागकर कोई भी टिक नहीं पाता।

अंत में एक दिन कोयल ने तय किया कि वह अपना घोंसला खुद बनाएगी। उसने थोड़ी कोशिश की, तिनके इकट्ठे किए, लेकिन उसे यह काम कठिन लगा। फिर भी उसने मेहनत करना शुरू किया। जब जंगल के पक्षियों ने उसे मेहनत करते देखा, तो उन्हें भरोसा हुआ कि शायद वह सच में बदलने की कोशिश कर रही है।

कठफोड़वा ने दूर से यह सब देखा और मुस्कुराया। उसने सोचा कि अगर कोई बदलाव चाहता है, तो उसके लिए पहला कदम हमेशा मेहनत होता है। और जब कोयल ने अपना पहला अंडा अपने घोंसले में रखा, तो उसने महसूस किया कि दूसरों पर निर्भर रहने से अच्छा है कि इंसान अपनी जिम्मेदारी खुद निभाए।

शिक्षा: चोरी से कभी फायदा नहीं मिलता और जिम्मेदारी निभाना ही सच्ची जीत है।

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