लोमड़ी और तीन बकरियाँ
घने जंगल के पास एक खुला मैदान था जहाँ हर दिन तीन बकरियाँ घास खाने आया करती थीं। उनका नाम रुही, गुड़िया और बुलबुल था। तीनों अलग-अलग स्वभाव की थीं, लेकिन उनका इलाका एक ही था। वे आपस में बातें जरूर करती थीं, पर ज्यादातर समय अपनी-अपनी जगह घास खाती रहती थीं। मैदान शांत था, हवा हल्की-सी चलती थी और दूर नदी की आवाज सुनाई देती थी। लेकिन एक दिन उस शांति में एक चालाक लोमड़ी की नजर पड़ गई, जिसकी सोच हमेशा किसी आसान शिकार की तलाश में रहती थी। उसने देखा कि तीनों बकरियाँ अलग-अलग कोने में खड़ी हैं और किसी तरह की मदद के लिए पास नहीं। लोमड़ी के दिमाग में तुरंत एक धोखे भरी योजना आई। उसने सोचा कि अगर वो तीनों को अलग-अलग डराएगी, तो वे आसानी से उसके हाथ लग जाएँगी।
सबसे पहले लोमड़ी चुपके से रुही के पास पहुँची। रुही एक छोटी और मासूम बकरी थी, जो अक्सर डरने वाली थी। लोमड़ी ने झाड़ियों से सरसराहट की आवाज निकाली, फिर अचानक उछलकर बोली, मैं तुम्हें अभी पकड़ सकती हूँ। रुही घबरा गई और तुरंत मैदान के दूसरे कोने में भाग गई। लोमड़ी उसके पीछे नहीं गई। उसे पता था कि उसका असली मकसद केवल डर फैलाना है, ताकि बकरियाँ आपस में जुड़ न सकें। जब रुही भागी, लोमड़ी मुस्कुराई और दूसरे शिकार की ओर बढ़ी।
गुड़िया थोड़ी तेज और समझदार थी, लेकिन वह भी अकेली थी। लोमड़ी उसके पीछे पेड़ के तने के पास जाकर बोली, अगर तुमने आज घास ज्यादा खा ली है तो मैं तुम्हें अभी पकड़ लूँगी। उसकी आवाज में इतना चतुर छल था कि गुड़िया का दिल जोर से धड़कने लगा। उसने तुरंत ऊपर पहाड़ी की ओर भागते हुए कहा, मुझे यहाँ से दूर जाना चाहिए। लेकिन भागते-भागते उसके मन में एक बात आई कि क्या वही आवाज रुही को भी सुनाई दी थी। हालांकि उसे यकीन नहीं था।
तीसरी बकरी बुलबुल मैदान के बीच में खड़ी धूप सेंक रही थी। वह खुद पर भरोसा रखती थी, लेकिन वह भी दूसरों की तरह अकेली थी। लोमड़ी इस बार और भी चालाकी से उसके पास गई। उसने धीमी आवाज में कहा, क्या तुम जानती हो कि मैं तुम्हें कब चाहे पकड़ सकती हूँ, क्योंकि तुम अकेली हो। बुलबुल ने उसकी आँखों में देखा और एक पल को उसे भी डर लगा। वह समझ ही नहीं पाई कि आसपास बाकी बकरियाँ कहाँ हैं। लोमड़ी का मन खुश था। तीनों को उसने अलग-अलग डरा दिया था। अब उसे लगा कि कोई भी उसका सामना नहीं कर पाएगा।
रात हुई और तीनों बकरियाँ अपने-अपने ठिकानों पर डर के साथ घर पहुँचीं। उनमें से किसी ने रात का खाना ठीक से नहीं खाया। रुही ने अपनी माँ को बताया कि आज जंगल में एक खतरनाक आवाज आई थी। गुड़िया ने अपनी दादी को बताया कि कोई उसे धमका रहा था। बुलबुल ने अपने बड़े भाई को बताया कि कोई झाड़ियों से उसे देख रहा था। लेकिन किसी को अंदाजा नहीं था कि उनसे मिलने वाला खतरा एक ही था। तीनों बकरियाँ उस रात बेचैन रहीं। पर सुबह होते ही उन्होंने फैसला किया कि वे अकेले-दोस्त होकर मैदान नहीं जाएँगी। मजबूरी में तीनों एक ही रास्ते से मैदान की ओर चलीं।
तीनों ने एक-दूसरे को देखकर सोचा कि शायद आज अकेलापन कम लगेगा। वे पास-पास ही घास खाने लगीं। कुछ ही देर बाद लोमड़ी फिर वहाँ पहुँची। आज उसके चेहरे पर और ज्यादा खतरनाक घमंड था। उसने सोचा कि आज तीनों को बिना मेहनत के पकड़ लेगी। उसने पहले रुही को डराया, फिर गुड़िया को और फिर बुलबुल को। लेकिन इस बार कुछ अलग हुआ। बकरियों ने एक-दूसरे की आँखों में बात पढ़ ली। उन्हें समझ आ गया कि लोमड़ी की हर हरकत धोखे वाली है। वे किसी भी तरह अलग होने वाली नहीं थीं।
लोमड़ी ने उन्हें अलग करने की बहुत कोशिश की, लेकिन तीनों बकरियाँ बिल्कुल न हिलीं। जब चालाकी से काम नहीं बना तो लोमड़ी ने सीधा हमला करने की कोशिश की। उसी समय तीनों बकरियाँ एक साथ आगे बढ़ीं। रुही ने अपने छोटे सींगों से हल्का सा धक्का दिया, गुड़िया ने बीच से जोर लगाया और बुलबुल ने पूरी ताकत से आगे बढ़कर लोमड़ी को पछाड़ दिया। लोमड़ी इतनी ताकत की उम्मीद नहीं कर रही थी। वह जमीन पर गिरते ही चिल्लाई और भागती हुई जंगल की तरफ दौड़ पड़ी। उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसे समझ आ गया कि जो मिलकर रहते हैं उनसे जीतना मुश्किल है।
जैसे ही लोमड़ी भागी, तीनों बकरियाँ खुशी से एक-दूसरे को देखने लगीं। उनके डर का असर खत्म हो चुका था। रुही ने कहा, आज अगर हम अलग होतीं तो शायद फिर डर जातीं। गुड़िया ने जवाब दिया, अगर हम साथ रहें तो कोई हमें नुकसान नहीं पहुँचा सकता। बुलबुल ने दोनों को गले लगाया और कहा, आज हमने देख लिया कि एकता की शक्ति कितनी बड़ी होती है। उसके बाद तीनों ने तय किया कि वे हमेशा साथ रहेंगी और किसी खतरे को अकेले नहीं झेलेंगी। मैदान की हवा एक बार फिर शांत हो गई, पर अब तीनों बकरियाँ अपने आप में ज्यादा मजबूत थीं। उन्हें पता था कि उनका भरोसा और साथ उन्हें किसी भी चालाक जानवर से बचा सकता है।
शाम तक वे तीनों घास खाती रहीं। आज उनका मन बिल्कुल हल्का था। मैदान में खेलते हुए उन्होंने ठान लिया कि अगर लोमड़ी दोबारा आई तो वे उसे मिलकर दूर भगा देंगी। और सच में, उस दिन के बाद लोमड़ी ने कभी उनकी तरफ नजर नहीं उठाई। उस दिन से तीनों बकरियाँ न डरती थीं, न बिखरती थीं। वे हमेशा साथ रहतीं और हर छोटे-बड़े काम में एक-दूसरे का हाथ बंटाती थीं। उन्हें समझ आ गया था कि डर केवल तभी जीतता है जब इंसान या जानवर अकेला हो। लेकिन जब सब साथ हों तो कठिन से कठिन समस्या भी आसान हो सकती है।
शिक्षा: एकता में बल है।