लालची सुअर और चतुर बकरा
एक बड़े से गाँव के बाहर फैला हरा-भरा मैदान था जहाँ कई तरह के जानवर आराम से रहते थे। वहाँ एक सुअर और एक बकरा भी रहते थे। दोनों को खुली हवा, घास और ताज़ी खुशबू वाली जमीन बहुत पसंद थी, लेकिन दोनों की आदतें एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थीं। सुअर बहुत लालची था। उसे बस खाना चाहिए होता था, चाहे कितना भी हो। वह हर जगह पहले पहुँचकर सब खा जाने की कोशिश करता। दूसरी ओर बकरा समझदार था। वह कम खाता था लेकिन सोच-समझकर काम करता था। उसकी चाल में आत्मविश्वास और दिमाग में हमेशा कोई न कोई योजना रहती थी।
एक दिन सुबह मैदान में नए तरह के फलों की खुशबू फैली। पेड़ों से कुछ बड़े-बड़े मीठे फल नीचे गिरे हुए थे। सभी जानवर उत्साहित होकर वहाँ पहुँचे। सुअर जैसे ही पहुँचा, उसकी आँखें चमक उठीं। उसने देखा कि फल बहुत कम थे और स्वाद में सबसे अच्छे लग रहे थे। उसे डर हुआ कि कोई और उससे पहले खा न ले, इसलिए वह बिना सोचे-समझे उन पर टूट पड़ा। उसने जितने फल दिखे, सब एक ही बार में अपने पास खींच लिए। उसके सामने जो भी जानवर आया, वह उन्हें डाँटकर भगा देता। बकरा दूर खड़ा यह सब देख रहा था।
बकरा बोला, “इतना क्यों उठा लिया? सब मिलकर बाँट लेते तो भी काफी होता।”
सुअर ने चिढ़ते हुए कहा, “तुझे क्या? मैं जो चाहता हूँ खा सकता हूँ। जब मेरे हाथ में आया है तो अब मैं किसी को एक भी टुकड़ा नहीं दूँगा।”
बकरा शांत रहा। उसे पता था कि सुअर की लालच उसे कहीं न कहीं मुसीबत में जरूर डाल देगी। सुअर ने सारे फल एक कोने में जमा कर लिए और उन्हें खाने लगा। लेकिन जैसे ही वह खाने बैठा, अचानक मैदान में एक बड़ा लकड़ी का ठूंठ गिरा और उसके पास का रास्ता बंद हो गया। यह एक छोटा सा ढलान वाला हिस्सा था जहाँ गलत कदम रखते ही फिसलने की संभावना रहती थी। सुअर ने फल उठाते समय इस जगह का ध्यान नहीं रखा था। उसने जितना अधिक सामान खींचा, वह उतना ही अंदर की तरफ धँसता चला गया जहाँ जमीन नीचे की तरफ ढल रही थी।
बकरा यह देख रहा था कि सुअर धीरे-धीरे एक संकरे हिस्से में फँस रहा है। उसने सुअर को चेतावनी देने की कोशिश की, “रुक जा, आगे मत जा। जमीन नीचे जा रही है।”
लेकिन सुअर ने उसे अनदेखा कर दिया, “तू मुझे सिखाएगा? मेरे पास इतना खाना है कि मुझे किसी की जरूरत नहीं।”
कुछ देर बाद फलों को समेटते-समेटते सुअर एक ऐसे कोने में घुस गया जहाँ दोनों तरफ पत्थर थे और बीच में सूखी मिट्टी फिसलन भरी थी। जैसे ही उसने आगे कदम रखा, उसका पैर फिसल गया और वह गड्ढेनुमा खाईं में फँस गया। ऊपर से उसके फल भी चारों तरफ गिरकर दूर जा चुके थे। वह चिल्लाने लगा, “मदद करो! कोई तो मदद करो!”
किसी भी जानवर को उसकी हरकतें पसंद नहीं थीं, इसलिए कोई उसकी ओर बढ़ा नहीं। सब सोच रहे थे कि खाना छीनकर अकेला मज़ा लेने वाला अब खुद ही परेशानी में है। बकरा भी उसके पास नहीं गया। लेकिन वह यह भी नहीं चाहता था कि कोई जानवर अपने स्वार्थ की वजह से जान गंवा दे। उसने थोड़ी दूरी पर खड़े होकर सुअर से कहा, “देखा? जब तुमने रास्ता बंद कर लिया और सब कुछ अकेले खींच लिया, तब यही होना था।”
सुअर ने डरते हुए कहा, “मुझे बाहर निकालो, मैं वादा करता हूँ कि अब ऐसा नहीं करूँगा!”
बकरा थोड़ा आगे आया लेकिन वह जानता था कि अगर वह सीधा नीचे उतरेगा तो खुद भी फँस सकता है। इसलिए उसने अपने दिमाग से एक उपाय निकाला। उसने बाकी जानवरों को बुलाया और कहा, “सीधी मदद नहीं कर सकते, लेकिन हम ऊपर से कुछ मजबूत बेलें और पत्थर इकट्ठे कर सकते हैं जिनसे रास्ता बनाया जा सके।”
जानवरों ने मिलकर पेड़ों से लंबी बेलें काटीं। बकरा आगे बढ़कर बेलों को एक-एक करके पत्थरों के सहारे नीचे डाला। उसने बेलों को इस तरह बाँधा कि एक ढलान जैसा रास्ता बन जाए। सुअर बहुत डरा हुआ था, लेकिन अब उसके पास इसका पालन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। उसने धीरे-धीरे बेलों का सहारा लिया और ऊपर चढ़ने लगा। कई बार वह फिसला लेकिन बच गया। आखिरकार वह बाहर निकल आया।
बाहर आते ही वह हाँफने लगा और शर्मिंदा सा दिखाई देने लगा। उसके फल सब बिखर चुके थे। बकरा उसके पास आया और शांति से बोला, “अगर तुम सब कुछ अकेले लेना चाहोगे, तो रास्ते खुद ही बंद हो जाएँगे। कभी-कभी साझा करना ही असली समझदारी होती है।”
सुअर को अपनी गलती समझ आ गई। उसने बकरी और दूसरे जानवरों से माफी माँगी। उसे यह भी समझ आया कि स्वार्थ किसी का भला नहीं करता, बल्कि मुसीबत का कारण बन जाता है। उस दिन के बाद उसने कभी किसी चीज़ को जबरदस्ती या लालच में अपने लिए नहीं खींचा।
मैदान के जानवरों ने देखा कि सुअर का व्यवहार बदल रहा है। वह खाने में हिस्सा बाँटने लगा। अब वह पहले की तरह बहस नहीं करता था। धीरे-धीरे सबने उसे फिर से अपनाना शुरू किया। बकरा खुश हुआ कि उसकी बात ने असर किया।
कुछ समय बाद उसी जगह पर फिर वैसा मौसम आया जब फल पेड़ों से गिरते थे। इस बार सुअर ने सबसे पहले बकरी को बुलाया और बोला, “चलो, मिलकर उठाते हैं। सबके लिए काफी है।”
बकरा मुस्कुराया और दोनों ने बाकी जानवरों को भी बुलाया। अब फल उठाने की होड़ नहीं रहती थी। सब मिलकर काम करते और मज़े से बाँटते।
सुअर अब समझ चुका था कि मिल-जुलकर रहने में ही असली संतोष है और किसी भी चीज़ को अकेले हथियाने की कोशिश करना अंत में नुकसान ही देता है।
कई दिनों बाद जब वे दोनों मैदान की तरफ देख रहे थे, बकरा बोला, “देखा? जब समझदारी होती है तो मुश्किल भी हल हो जाती है।”
सुअर ने सिर झुकाकर कहा, “और जब लालच होता है तो इंसान खुद ही फँस जाता है।”
उसके बाद से दोनों अच्छे दोस्त बन गए और मैदान में शांति रहने लगी। जानवरों ने इस घटना को याद रखा और बच्चों को हमेशा बताते रहे कि किसी भी चीज़ को मजबूरी या लालच में अकेले लेने की कोशिश करना गलत होता है।
शिक्षा: स्वार्थी व्यक्ति खुद ही नुकसान करता है।