मेहनती चींटी और आलसी टिड्डा
हरे-भरे खेतों और पेड़ों से घिरे एक शांत मैदान में दो छोटे जीव रहते थे। एक थी छोटी पर मेहनती चींटी लीला, जो पूरे साल सर्दियों की तैयारी में लगी रहती थी। दूसरा था आलसी टिड्डा गिन्नू, जिसे बस गाना, कूदना और धूप में मस्ती करना पसंद था। दोनों एक ही जगह रहते थे, लेकिन उनकी सोच और आदतें एक-दूसरे से बिल्कुल अलग थीं। लीला सुबह सूरज उगते ही अपने छोटे पैरों के साथ काम पर निकल जाती। वह जमीन पर गिरे दाने इकट्ठा करती, पत्तियों के टुकड़े समेटती और अपने घर की तरफ लगातार चक्कर लगाती। उसके चेहरे पर कभी थकान नहीं दिखती थी, क्योंकि वह जानती थी कि सर्दियां इस मैदान में बहुत मुश्किल होती हैं। ठंड इतनी बढ़ जाती है कि बाहर निकलना भी कठिन हो जाता है और उस समय सिर्फ जमा किया हुआ खाना ही काम आता है। दूसरी ओर गिन्नू अपनी ही दुनिया में मगन था।
वह एक पत्ते पर बैठकर गाना गाता, उछल-कूद करता और हवा के झोंकों के साथ नाचता रहता। कभी-कभी वह लीला को काम करते देखता और हँसते हुए कहता कि “इतना काम करके तुम कर क्या लोगी, लीला? मौसम अभी कितना अच्छा है। आओ, थोड़ा मस्ती कर लो। सिर्फ सर्दियों के चक्कर में अपनी खुशियाँ खराब क्यों करती हो?” लीला हमेशा शांत रहकर जवाब देती कि “आज जो मेहनत करता है, वही कल सुरक्षित रहता है। सर्दियां मजाक नहीं हैं, और बिना तैयार हुए कोई भी नहीं बच सकता। तुम भी थोड़ा खाना जमा कर लो। आगे कठिन समय आने वाला है।” लेकिन गिन्नू हर बार उसकी बात को हल्के में लेकर टाल देता था। वह कहता कि “अरे, जब सर्दी आएगी, तब देखा जाएगा।
अभी मेरा समय नाचने का है।” दिन बीतते गए और मौसम धीरे-धीरे बदलने लगा। हवा में ठंडक बढ़ने लगी, पेड़ों पर पत्ते कम होने लगे और छोटे जीव अपने घरों को मजबूत बनाने लगे। पर गिन्नू को अभी भी फर्क नहीं पड़ा। वह उसी तरह गाता-कूदता रहा जैसे हमेशा करता था। एक दिन लीला ने देखा कि मैदान की घास सूखने लगी है और सर्दियों के संकेत साफ दिखाई दे रहे हैं। उसने और तेजी से काम करना शुरू किया। वह सुबह से शाम तक लगातार दाने उठाती और अपने घर में जमा करती। उसने अपने छोटे रास्तों को ठीक किया, घर की दीवारों को मजबूत किया और अपने परिवार के लिए हर जरूरी चीज तैयार की। उधर गिन्नू को लगा कि अभी भी काफी समय है। वह सोचता रहा कि “अगर जरूरत पड़ी, तो किसी से मदद ले लूँगा। अभी तो मौसम इतना भी खराब नहीं लगता।” लेकिन प्रकृति हमेशा चेतावनी नहीं देती। उसी रात मौसम अचानक बिगड़ गया। आसमान में काले बादल छा गए, तेज हवा चलने लगी और देखते ही देखते ठंड तेजी से बढ़ने लगी।
सुबह होते-होते मैदान पर हल्की बर्फ की परत जम चुकी थी। पेड़ कांप रहे थे, मिट्टी जम गई थी, और छोटे जीव अपने घरों में बंद थे। लीला अपने घर में सुरक्षित थी, उसके पास पर्याप्त खाना था और मौसम की ठंडक उससे ज्यादा नुकसान नहीं कर सकती थी। लेकिन गिन्नू की हालत खराब हो गई। उसके पास रहने की पक्की जगह नहीं थी। वह एक सूखे पत्ते के नीचे छिपने की कोशिश कर रहा था, पर ठंडी हवा अंदर आकर उसे कंपा रही थी। उसके गाने और नाचने की आवाजें जहां कभी मैदान में गूंजती थीं, अब वह मुश्किल से खड़ा भी हो पा रहा था। भूख से उसका शरीर कमजोर हो गया था और उसकी आंखों में डर साफ दिखाई दे रहा था। गिन्नू को तभी लीला की बातें याद आईं।
उसे एहसास हुआ कि उसने कितनी बड़ी गलती की है। जो समय उसने नाचने में बिताया, वही समय अगर उसने थोड़ा भी खाने जुटाने में लगाया होता, तो आज वह यूं कांप नहीं रहा होता। वह ठंडी हवा में हिम्मत जुटाते हुए लीला के घर की तरफ बढ़ा। हर कदम उसके लिए मुश्किल था, पर उसके पास कोई और चारा नहीं था। आखिरकार वह लीला के घर पहुँचा और धीरे से आवाज दी, “लीला… कृपया मेरी मदद करो। मैं बहुत परेशान हूँ।” लीला ने दरवाजा खोला और उसे देखकर हैरान हो गई। वह बोली, “गिन्नू, तुम इस हालत में कैसे?” गिन्नू ने कांपते हुए कहा, “मुझे माफ कर दो, लीला। मैंने कभी तुम्हारी बात नहीं मानी।
मुझे लगा मेहनत की जरूरत नहीं है। अब समझ गया हूँ कि मैंने कितना गलत सोचा। क्या मैं अंदर आ सकता हूँ?” लीला का दिल नरम था। उसने बिना देर किए गिन्नू को अंदर बुलाया, उसे सूखे पत्तों से ढका और थोड़ा खाना दिया। गिन्नू ने धीरे-धीरे खाना खाया और आराम किया। कुछ देर बाद वह बेहतर महसूस करने लगा। उसने लीला से कहा कि “तुमने मेरे साथ भलाई की, जबकि मैंने कभी तुम्हारी बात नहीं मानी। मैं तुम्हारा बहुत आभारी हूँ। अब कभी आलस नहीं करूँगा।” लीला मुस्कुराई और बोली, “गलतियाँ हर कोई करता है, लेकिन समझदार वही है जो उनसे सीख लेता है।” पूरी सर्दियों में गिन्नू लीला के घर में रहा। वह देखता रहा कि किस तरह लीला ने हर चीज पहले से तैयार करके रखी थी। उसे धीरे-धीरे मेहनत का महत्व समझ में आने लगा। जैसे ही मौसम गर्म हुआ और बर्फ पिघली, गिन्नू बाहर निकला। अब वह पहले वाला आलसी टिड्डा नहीं था। उसने लीला की तरह काम करना शुरू किया।
हर दिन सुबह उठता, दाने ढूंढता, घर ठीक करता और खुद को तैयार रखता। उसे एहसास हो चुका था कि मेहनत ही असली सहारा है। समय के साथ गिन्नू और लीला का घर पास-पास था और उनकी दोस्ती गहरी हो गई। लीला अक्सर नए-नए तरीके बताती कि खाना कैसे जमा किया जाता है, और गिन्नू उन तरीकों पर पूरी मेहनत से काम करता।
पूरे मैदान में अब गिन्नू की नई पहचान बन गई। छोटे जीव उसे देखकर सीखते कि कैसे मेहनत इंसान या जीव को बदल सकती है। जो पहले आलसी था और सोचता था कि जिंदगी सिर्फ खेलने के लिए है, वही अब दूसरों को समझाने लगा कि “कभी भी मौसम को हल्के में मत लो, और समय रहते तैयारी करना ही समझदारी है।” मैदान में रहने वाले सभी जीवों ने एक बात समझी कि मेहनत करने वालों को कभी डरने की जरूरत नहीं होती। लीला और गिन्नू दोनों अपने-अपने घरों में सुरक्षित और खुश रहते और उनकी दोस्ती पूरे मैदान में मशहूर हो गई।
शिक्षा: मेहनत हमेशा साथ देती है और आलस मुश्किलें लाता है। जो समय पर तैयारी करता है, वह हर मौसम में सुरक्षित रहता है।