नींद चुराने वाला उल्लू
जंगल के किनारे बसे छोटे से गाँव में कई दिनों से एक अजीब बात हो रही थी। बच्चे हों या बड़े, कोई ठीक से सो नहीं पा रहा था। रात होते ही सबकी आँखें खुली रह जातीं और उन्हें लगता जैसे किसी ने उनकी नींद चुरा ली हो। पहले लोगों ने इसे मौसम का असर समझा, फिर किसी ने कहा यह जादू है। लेकिन असल रहस्य किसी को पता नहीं था।
गाँव में एक छोटी, समझदार बिल्ली रहती थी जिसका नाम था मिन्नी। वह बहुत तेज दिमाग की थी और हर अजीब बात उसकी नजर से नहीं बच पाती थी। जब उसने देखा कि लगातार तीसरी रात भी गाँव में कोई नहीं सो पाया, तो उसने तय किया कि वह इसका कारण ढूंढकर ही रहेगी। वह रात को चुपचाप निकल गई, पेड़ों के बीच छुपती हुई, ताकि उसे कोई देख न ले। जंगल के पास पहुँचते ही उसने महसूस किया कि हवा में कुछ अलग है। एक गहरी सी आवाज सुनाई दे रही थी, जैसे कोई धीरे-धीरे कुछ बुदबुदा रहा हो। मिन्नी झाड़ियों के पीछे छुपी और ध्यान से देखने लगी।
उसी समय उसने एक बड़े पेड़ की सबसे ऊँची डाल पर बैठे हुए एक गोल-मटोल, भूरे रंग के उल्लू को देखा। वह था गुब्बू उल्लू, जो अपने पंखों में कुछ चमकती हुई धूल जैसी चीज़ इकट्ठी कर रहा था। वह उस पाउडर को आसमान में उछालता और जैसे ही वह हवा में फैलता, गाँव की तरफ एक ठंडी लहर जाती। तभी मिन्नी की समझ में आया कि यही वह जादू है जो सबकी नींद खींच कर ले जाता है। मिन्नी ने पेड़ पर चढ़कर जोर से कहा, गुब्बू, तुम क्या कर रहे हो?
गुब्बू की आँखें नम हो गईं। वह बोला, मुझे डर था कि कोई मुझे पसंद नहीं करेगा। सब सोचते होंगे कि मैं डरावना हूँ। इसलिए मैंने यह तरीका चुना। मिन्नी ने उसकी तरफ देखा और नरम आवाज में कहा, दोस्ती डर से नहीं बनती, भरोसे से बनती है। अगर तुम दोस्त की तरह पेश आओगे, तो तुम्हें दोस्त मिलेंगे।
गुब्बू ने धीरे से सिर हिलाया और कहा, अगर तुम सच में मेरी दोस्त बनोगी, तो मैं अभी सबकी नींद लौटा देता हूँ। वह अपने पंख फड़फड़ाता हुआ पेड़ के किनारे आया और उसने एक छोटी बोतल निकाली जो उसके घोंसले में छुपी थी। बोतल में वही सुनहरी नींद की धूल थी जो उसने गाँव से चुराई थी। उसने बोतल खोलकर हवा में उछाली, और वह धूल चाँदनी में चमकते हुए वापस गाँव की तरफ जाने लगी। कुछ ही पलों में गाँव के सभी लोग गहरी, मीठी नींद में चले गए।
जंगल में एक शांत महसूस होने लगी। मिन्नी ने मुस्कुराते हुए कहा, देखा, कितना आसान था। तुम्हें बस किसी से बात करनी थी। गुब्बू थोड़ा हल्का महसूस करने लगा और बोला, अब क्या मैं कभी-कभी तुम्हारे साथ बैठ सकता हूँ? मिन्नी ने सिर हिलाते हुए कहा, हाँ, तुम जब चाहो मिल सकते हो, लेकिन याद रखना कि दोस्ती की सबसे जरूरी बात है कि हम एक-दूसरे का ख्याल रखें।
उस रात गुब्बू पहली बार बिना किसी जादू के पेड़ पर बैठा और उसे डर नहीं लगा। अब उसे पता था कि वह अकेला नहीं है। अगले दिन जब गाँव वाले अच्छी नींद के बाद जागे, तो सब हैरान थे कि अचानक नींद क्यों लौट आई। मिन्नी ने उन्हें पूरी कहानी बताई लेकिन गुब्बू का नाम नहीं बताया ताकि कोई उससे नाराज न हो। गाँव वाले खुश हुए कि कोई रहस्य तो था लेकिन अब सब ठीक है।
रात होते ही गुब्बू फिर पेड़ पर बैठा लेकिन इस बार उसने कोई जादू नहीं किया। वह मिन्नी के साथ बातें करता रहा, हँसा और खुद को लंबे समय बाद हल्का महसूस किया। उसे समझ आ चुका था कि दोस्ती जादू से नहीं, बल्कि दिल से मिलती है।
अब रातें शांत थीं, गाँव मीठी नींद में था, और गुब्बू को हर रात एक नई खुशी मिलती थी क्योंकि उसे एक सच्चा दोस्त मिल गया था। और मिन्नी को भी खुशी थी कि उसने किसी को अकेलेपन से बाहर निकालकर एक नया रास्ता दिखा दिया।
शिक्षा: सच्ची दोस्ती दूसरों का ख्याल रखने से बनती है, न कि उन्हें परेशान करके।