धैर्यवान ऊँट और जल्दबाज़ हिरन
रेगिस्तान की गर्म रेत और दूर तक फैले सुनसान मैदानों के बीच एक लंबा रास्ता था जो दो छोटे क़स्बों को जोड़ता था। इस रास्ते से सुबह के वक्त कई जानवर पानी की तलाश में निकलते थे, क्योंकि दोपहर होते ही सूरज की तपिश इतनी तेज़ हो जाती कि चलना मुश्किल हो जाता। इन्हीं जानवरों में एक ऊँट भी था जो हर दिन शांति से, अपने स्वभाव की तरह, एक ही गति से चलता हुआ आगे बढ़ता था। वह न जल्दी करता था और न ही कहीं रुककर समय खराब। उसके कदम लंबे और संतुलित थे, और वह मानता था कि धीमी और समझदारी भरी चाल ही उसे सुरक्षित जगह तक ले जा सकती है।
उसी इलाके में एक हिरन भी रहता था। वह तेज़, फुर्तीला और हमेशा जल्दबाज़ी में रहने वाला था। उसकी चाल इतनी तेज़ थी कि वह पल भर में बड़ी दूरी तय कर सकता था। हिरन का एक ही विश्वास था कि दुनिया में तेज़ी से बड़ा कुछ नहीं। वह अक्सर हंसते हुए कहता कि जो धीरे चलता है, वह कभी आगे नहीं बढ़ पाता। वह खुद को हमेशा सबसे आगे, सबसे चतुर और हमेशा विजयी मानता था। ऊँट की धीमी चाल उसे मज़ाक जैसी लगती थी।
एक दिन सुबह के समय जब हवा थोड़ी ठंडी थी और सूरज धीरे-धीरे उग रहा था, ऊँट अपनी रोज़ की तरह पानी के लिए पास के कूएँ की ओर निकल पड़ा। उसी समय हिरन भी वहाँ पहुँच गया। उसने ऊँट को धीरे-धीरे कदम रखते देखा और मुस्कुराते हुए बोला, “तू अब भी अपनी यही पुरानी चाल चल रहा है। कब समझेगा कि जीवन में तेज़ी ही सब कुछ है? अगर मेरे जैसी दौड़ लगाना सीख ले, तो आधा रास्ता आधे समय में पूरा कर लेगा।”
ऊँट ने शांत स्वर में कहा, “तेज़ होना अच्छी बात है, लेकिन हर जगह तेज़ी काम नहीं आती। कई बार समझदारी और धैर्य ज्यादा जरूरी है। मैं अपने तरीके से चलता हूँ क्योंकि मुझे पता है कि रास्ते में कई जगह खतरे भी हो सकते हैं। धीरे चलना गलत नहीं, सुरक्षित है।”
हिरन ने हँसते हुए सिर हिलाया। “तू हमेशा की तरह अपनी बातें और अपनी सोच। देखना, आज फिर मैं तुझसे पहले पानी तक पहुँच जाऊँगा। और शायद तब तू समझेगा कि जीत किसकी होती है।”
ऊँट ने कोई जवाब नहीं दिया। वह बस धीरे-धीरे आगे बढ़ता रहा। रास्ता लंबा था और रेत कभी नरम होती, कभी कठोर। हवा कभी तीखी होती, कभी शांत। लेकिन ऊँट के कदम स्थिर थे। वह हर कदम सोच-समझकर रखता था, क्योंकि उसे पता था कि रेत के नीचे कई जगह गड्ढे छिपे हो सकते हैं जो ऊपर से दिखाई नहीं देते।
हिरन ने अपनी फुर्ती के साथ तेज़ दौड़ लगा दी। उसके लिए रास्ता कोई चुनौती नहीं था। वह कभी इधर मुड़ता, कभी उधर, कभी ऊँट की ओर देख हँसता, तो कभी आगे बढ़कर भविष्य की शक्ल का अंदाज़ लगाता। जल्दबाज़ी उसके स्वभाव में थी। उसे लगता था कि वह दुनिया का सबसे तेज़ और सबसे भाग्यशाली जीव है।
कुछ आगे जाकर रास्ता दो हिस्सों में बंटता था। दाईं ओर एक लंबा और समतल रास्ता था, जो सुरक्षित था और सब उसी से गुज़रते थे। बाईं ओर एक छोटा रास्ता था, जो दिखने में तो आसान लगता था, लेकिन उस तरफ कई पुराने गड्ढे और ढहे हुए बिल थे जिनमें पहले भी कई जानवर फँस चुके थे। लेकिन हिरन ने कभी उस ओर ध्यान नहीं दिया था। वह सिर्फ शॉर्ट-कट चाहता था, क्योंकि उसे लगता था कि छोटे रास्ते से वह ऊँट को और बड़ी दूरी से पीछे छोड़ देगा।
जब हिरन दोराहे पर पहुँचा, उसने दूर खड़े ऊँट को देखा जो अब भी धीरे-धीरे दाईं ओर बढ़ रहा था। हिरन ने तेज़ आवाज़ में कहा, “देखना ऊँट, मैं इस छोटे रास्ते से पहले पहुँच जाऊँगा। तू हमेशा की तरह पीछे ही रहेगा।” और बिना सोचे-समझे वह बाएँ रास्ते की ओर दौड़ पड़ा।
ऊँट ने उसे जाते देखा और एक पल को उसकी नजर में चिंता दिखी। वह सोच रहा था कि यह रास्ता सुरक्षित नहीं है। लेकिन हिरन की आवाज़ में इतनी जल्दी और विश्वास था कि ऊँट जानता था, उसे रोकना बेकार है। वह अपने रास्ते पर शांति से आगे बढ़ गया।
उधर हिरन तेजी से छोटे रास्ते पर भाग रहा था। शुरुआत में रास्ता बहुत आसान लग रहा था। उसे लगा कि उसने फिर सही फैसला किया है। वह अपने मन में खुश हुआ कि ऊँट कितनी बेवकूफी करता है, जो हमेशा लंबा रास्ता ही चुनता है। हिरन का माथा गर्व से ऊपर उठ गया। उसकी गति उतनी ही तेज़ थी जितनी हमेशा होती थी।
लेकिन जैसे-जैसे वह आगे बढ़ा, रास्ता बदलने लगा। रेत नरम हो गई और जमीन असमान। हिरन को भी यह फर्क महसूस हुआ, लेकिन वह रुका नहीं। उसे लग रहा था कि बस थोड़ी ही दूरी बची है। उसके कदम तेज़ थे और सांसें हाँफती जा रही थीं, लेकिन उसके दिमाग में सिर्फ जीत थी।
अचानक उसके आगे की रेत धँसने लगी। हिरन डर गया, उसने रुकने की कोशिश की लेकिन उसके पैर फिसल गए। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाता, वह एक गहरे गड्ढे में जा गिरा। गड्ढा इतना बड़ा था कि वह बाहर निकलने की कोशिश करता रहा, लेकिन रेत ढलती रही। हिरन का दिल घबरा गया। उसने आसपास देखा, लेकिन वहाँ कोई नहीं था। वह ऊँट को भी नहीं देख पा रहा था और न ही कोई और मदद।
हिरन ने समझा कि उसकी जल्दबाजी और उसका भरोसा सिर्फ खुद की तेज़ गति पर था। उसने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि रास्ता कितना सुरक्षित है या उसके परिणाम क्या होंगे। उसने हमेशा धैर्य को मज़ाक समझा था, लेकिन आज उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था।
उधर ऊँट अपनी धीमी और स्थिर चाल के साथ आगे बढ़ता रहा। आगे जाकर उसे हिरन की ओर से कोई आवाज़ सुनाई दी। ऊँट रुक गया। उसने ध्यान से सुना और फिर आवाज़ की दिशा में गया। कुछ दूर जाकर उसने देखा कि हिरन गहरे गड्ढे में फँसा हुआ है और बाहर निकलने की कोशिश कर रहा है। ऊँट ने अपने लंबे पैरों और ऊँची गर्दन की वजह से गड्ढे के किनारों को बेहतर तरह से देखा। उसने अपने शरीर को नीचे की ओर झुकाया, ताकि हिरन उसके शरीर का सहारा लेकर ऊपर आ सके।
हिरन ने घबराते हुए ऊँट को देखा और कहा, “मैं… मैं फँस गया। मुझे लगा था मैं सही हूँ। मैंने तुम्हें मज़ाक समझा, लेकिन अब मुझे समझ आया कि तुम्हारी बात सही थी।” ऊँट ने कोई व्यंग्य नहीं किया। उसने बस शांत स्वर में कहा, “गलती किसी से भी हो सकती है। लेकिन समझदारी यह है कि उससे सीख ली जाए। आओ, ऊपर चढ़ो।”
काफी कोशिश और थकान के बाद हिरन ऊपर आ गया। वह चारों तरफ रेत से भरा और हाँफता हुआ खड़ा था। उसकी आँखों में शर्म और डर दोनों थे। लेकिन ऊँट ने उसे शांत रहकर पानी तक साथ चलने के लिए कहा।
दोनों धीरे-धीरे दाईं ओर के सुरक्षित रास्ते से वापस आगे बढ़ने लगे। इस बार हिरन ऊँट से आगे नहीं दौड़ रहा था। वह उसके साथ-साथ चल रहा था, हर कदम सोच-समझकर रख रहा था। उसकी चाल धीमी हो चुकी थी, लेकिन उसमें समझ और संतुलन आ गया था।
कुछ देर बाद वे कूएँ तक पहुँच गए। हवा ठंडी थी और पानी साफ। हिरन ने पानी पिया और ऊँट को देखा। उसने गहरी सांस लेकर कहा, “तुमने मुझे बहुत बड़ी सीख दी है। धीमी लेकिन समझदारी भरी चाल ही सही होती है। तेज़ी हमेशा जीत नहीं देती।” ऊँट मुस्कुराया और बोला, “धैर्य रास्ता दिखाता है, और समझदारी उसे सुरक्षित बनाती है।”
उस दिन के बाद से हिरन ने कभी जल्दबाजी नहीं की। वह तेज़ जरूर था, लेकिन अब वह समझदार भी बन गया था। वह हमेशा रास्ते को परखता, सावधानी से चलता और ऊँट की बात याद रखता। दोनों अच्छे साथी बन गए और रेगिस्तान का हर सफर अब सुरक्षित और सीख से भरा होता।
शिक्षा: धीमी लेकिन समझदारी भरी गति सुरक्षित होती है।