पुजारी की छलना और तेनाली रामन का संघर्ष
युवा होने पर रामन विजयनगर के सम्राट कृष्णदेव राय को प्रसन्न करना चाहते थे। वे राजदरबार का हिस्सा बनना चाहते थे। उन्होंने सोचा कि यह कैसे संभव होगा। इसी दौरान रामन का विवाह हुआ और एक पुत्र हुआ। परंतु वह अभी भी राजमहल में स्थान पाने की इच्छा रखते थे। न तो पारिवारिक बंधन और न ही उसका बोझ उन्हें विचलित करता था।
उस समय विजयनगर के दरबारी पुरोहित ताताचार्य तेनाली के पास मंगलगिरि स्थित देवी मंदिर आए। रामन ने सोचा कि पुरोहित को कैसे प्रसन्न किया जाए। यदि पुरोहित ने सहायता की तो दरबार में स्थान पाना सरल होगा क्योंकि राजा पुरोहित का बहुत आदर करते थे। रामन इसी इरादे से ताताचार्य के पास पहुंचे। परंतु पुरोहित चतुर और धूर्त थे। उन्होंने सोचा कि यदि रामन दरबार में विदूषक बन गया तो उनकी प्रतिष्ठा समाप्त हो जाएगी। साथ ही रामन ने उन्हें लिंगपुराण नामक अपनी कविता दिखाई थी।
पुरोहित के मन में दूसरी योजना थी। उन्होंने सोचा कि जब तक वे यहां हैं रामन से सारे कार्य करवा सकते हैं। बुढ़ापे के कारण स्वयं सब काम करना कठिन है। रामन को मंगलगिरि में ही रखा जाए और राजमहल में नौकरी का लालच देकर बेवकूफ बनाया जाए। रामन दरबार में स्थान पाने के लिए पुरोहित का कोई भी काम करने को तैयार थे। अतः वे पुरोहित के साथ रहने लगे और उनके दैनिक कार्यों में सहायता करने लगे। इस दौरान रामन ने पुरोहित को लिंगपुराण कविता सुनाई। पुरोहित को रामन से ईर्ष्या होने लगी। कितनी उत्तम कविता थी। इसमें एक महान कवि की बुद्धिमत्ता और कल्पना थी। उन्होंने रामन को बधाई दी। उन्होंने कहा कि तुम दरबार के लिए बहुत योग्य हो। राजा तुम्हें अवश्य पसंद करेंगे। ताताचार्य ने संदेहास्पद इरादे से ही रामन की प्रशंसा की। रामन ने पूरी निष्ठा से पुरोहित की सेवा जारी रखी।
अंततः पुरोहित के लौटने का दिन आया। ताताचार्य ने कपटी आंसू बहाए और कहा कि मैं तुम्हारी निष्कपट सेवा के लिए आभारी हूं। जैसे ही मैं वहां पहुंचूंगा तुम्हें महल बुलाने एक व्यक्ति भेजूंगा। तुम उसके साथ आ जाना। बाकी सब मैं संभाल लूंगा। रामन ने आंखों में आंसू लिए पुरोहित को विदा किया। वह तनाव से मुक्त हुए। उन्होंने सपना देखा कि शीघ्र ही दरबार में स्थान पा जाएंगे। परंतु पुरोहित के वादे के अनुसार कोई नहीं आया। वह निराश हुए। नौकरी की यह लंबी प्रतीक्षा व्यर्थ गई।
रामन अपनी पत्नी और बच्चे के साथ विजयनगर के लिए निकल पड़े। उनका उद्देश्य राजमहल में नौकरी पाना था। यात्रा बहुत कठिन थी। वे पुरोहित के घर पहुंचे और सेवक को अपने आगमन की सूचना दी। उन्होंने कहा कि मैं तेनाली से रामन हूं। मैं आपके स्वामी से मिलना चाहता हूं। पुरोहित के द्वारपाल ने अंदर जाकर रामन के आने की बात कही। परंतु ताताचार्य का उत्तर अनुकूल नहीं था। उन्होंने कहा कि मैं तेनाली के किसी रामन को नहीं जानता। मैं उसे नहीं देखना चाहता। जब द्वारपाल ने यह बात रामन को बताई तो वह क्रोधित हो गए। वे पुरोहित के घर के अंदर घुस गए और बोले कि मैं तेनाली से रामन हूं। मंगलगिरि में मैंने ही आपकी सेवा की थी। मैं आपके वादे की याद दिलाने आया हूं। ताताचार्य रामन की इस हरकत को सहन नहीं कर पाए। क्रोधित पुरोहित ने अपने सेवक को रामन को पीटकर बाहर निकालने का आदेश दिया। रामन दुखी और हताश हुए। उन्होंने सोचा कि यह पुरोहित एक धोखेबाज है।