खरगोश-और-कड़वी-औषधि-–-The-Rabbit-and-the-Bitter-Medicine

खरगोश और कड़वी औषधि – The Rabbit and the Bitter Medicine

जानवरों की कहानियाँ

खरगोश और कड़वी औषधि 

हरीभरी पहाड़ियों के पास बसे एक शांत जंगल में एक छोटा सा खरगोश रहता था, जिसका नाम मीनू था। मीनू बहुत तेज दौड़ता था, पेड़ों के बीच कूदता-फाँदता फिरता था और पूरे जंगल का सबसे चंचल जीव माना जाता था। सुबह होते ही वह अपने बिल से निकलकर इधर-उधर दौड़ लगाता, तितलियों का पीछा करता और लम्बी घासों में लोटपोट होता। लेकिन एक दिन अचानक उसे तेज बुखार चढ़ गया। उसकी नाक बंद हो गई, सिर भारी लगने लगा और उसके कान ढीले पड़ गए। वह घर के बाहर से आती हवा की आवाज सुन भी नहीं पा रहा था। उसकी माँ ने देखा कि बेटा कमजोर हो रहा है, तो वह तुरंत जंगल के वैद्य, कछुआ जी, के पास गई। कछुआ जी अपने अनुभव और धैर्य के कारण पूरे जंगल में मशहूर थे।

कछुआ जी ने मीनू को देखा, उसका माथा छुआ और बोले कि उसे तुरंत औषधि की जरूरत है। वे अपने पत्ते और जड़ी-बूटियाँ लेकर आए और एक मिश्रण तैयार किया। यह मिश्रण बहुत कारगर था, लेकिन स्वाद में कड़वा था। जब मीनू की माँ ने कटोरी उसके सामने रखी तो मीनू ने सूँघते ही चेहरा बना लिया। उसने कटोरी दूर धकेली और बोला कि वह यह कड़वी चीज नहीं पिएगा। उसे लगा कि यह उसका स्वाद खराब कर देगी और उसे उल्टी आएगी। माँ ने समझाया कि यह औषधि जरूरी है, नहीं तो बीमारी बढ़ जाएगी, लेकिन मीनू नहीं माना।

दिन बीते और मीनू की हालत और खराब होने लगी। पहले वह थोड़ा-बहुत बाहर चला जाता था, अब बिल से बाहर भी नहीं निकल पा रहा था। खाने में मन नहीं लगता था, पानी भी मुश्किल से पी रहा था। रात को उसे खाँसी भी होने लगी। उसकी माँ परेशान थी, लेकिन मीनू जिद पर अड़ा हुआ था। उसे लगता था कि बिना औषधि पिए भी वह ठीक हो जाएगा। जंगल में उसके दोस्त जैसे गिलहरी चिप्पी, तोता मन्नू और हिरनी छुटकी उसे देखने आए। उन्होंने भी उसे समझाया कि कड़वी चीज़ भी कभी-कभी फायदे के लिए होती है, लेकिन मीनू ने बस सिर हिलाकर मना कर दिया।

एक दिन उसकी हालत इतनी बिगड़ गई कि वह ठीक से बैठ भी नहीं पा रहा था। उसका शरीर हल्का काँप रहा था और आँखें धुँधली हो रही थीं। तब उसकी माँ ने दोबारा कछुआ जी को बुलाया। कछुआ जी ने गंभीर आवाज में कहा कि बीमारी गहरी हो रही है और अब देर नहीं करनी चाहिए। जब मीनू ने यह सुना, तो उसके मन में डर बैठ गया। उसे लगा कि उसने समय रहते औषधि न पीकर गलती की है। उसकी सांसें तेज हो रही थीं और उसे लग रहा था कि वह पहले जैसा कभी नहीं दौड़ पाएगा। उसे अपने दोस्तों के साथ खेलना, हवा में कूदना और तितलियों का पीछा करना याद आने लगा। डर के कारण उसकी आंखें भर आईं और उसने धीमे से कहा कि वह अब औषधि पी लेगा।

माँ ने तुरंत कटोरी उसके सामने रखी। मीनू ने कटोरी को हाथों में थामा और खुद को समझाया कि यह कड़वी ज़रूर है, लेकिन अगर इससे वह ठीक हो सकता है, तो उसे यह पी लेनी चाहिए। उसने घूँट भरा। स्वाद बहुत ही कड़वा था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं छोड़ी। धीरे-धीरे उसने पूरी औषधि खत्म कर ली। माँ ने उसके सिर पर हाथ फेरा और बोली कि उसने सही फैसला लिया है। कछुआ जी मुस्कुराए और बोले कि अब वह जल्द ही ठीक हो जाएगा, बस थोड़ा आराम करे।

अगले दिन मीनू को थोड़ी राहत महसूस हुई। उसका सिर हल्का लग रहा था और उसका बुखार कम हो गया था। उसने एक और औषधि पी, जो थोड़ी कम कड़वी थी। तीन दिनों में उसकी हालत काफी सुधर गई। अब वह बिल के बाहर बैठकर धूप भी ले सकता था। चौथे दिन वह थोड़ी दूरी तक दौड़ने लगा। धीरे-धीरे उसके शरीर में ताकत लौट आई।

शिक्षा: कड़वी चीजें हमें कष्ट पहुंचाती लगती हैं, लेकिन सही समय पर उनका उपयोग करने से बड़ा लाभ मिलता है, इसलिए जरूरी बातों से दूर नहीं भागना चाहिए।

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