मुर्गा-और-सूरज-का-भ्रम-_-The-Rooster-and-the-Illusion-of-the-Sun

मुर्गा और सूरज का भ्रम | The Rooster and the Illusion of the Sun

जानवरों की कहानियाँ

मुर्गा और सूरज का भ्रम

शांत गाँव के किनारे फैली हरी जमीन पर एक लंबा सा बाड़ा बना था जहाँ कई तरह के पक्षी रहते थे और उनमें से सबसे शोर मचाने वाला था एक लाल कलगी वाला मुर्गा जिसका नाम सब प्यार से मुन्ना मुर्गा बुलाते थे क्योंकि उसकी बाँग इतनी तेज होती थी कि सुबह की खामोशी को चीर देती थी और बाड़े में कोई भी उसके उठते ही सो नहीं पाता था और हर दिन की तरह वह जब भी अपने पंख फड़फड़ाता और जोर से कुकड़ूँ-कूँ करता तो आसमान धीरे-धीरे उजाला लेने लगता और क्षितिज से सूर्य की पीली किरणें धीरे-धीरे फैल जाती थीं और इसी क्रम को देखकर उसके मन में धीरे-धीरे एक सोच बैठ गई कि उसके कुकड़ूँ-कूँ करने पर ही सूरज निकलता है और उसकी आवाज न हो तो शायद सूरज दुनिया में आए ही नहीं और यह गलत सोच उसके भीतर इतने गहरे उतर गई थी कि वह खुद को बहुत खास समझने लगा था और उसे लगता था कि सुबह का पूरा काम उसी के भरोसे है और यह सोच दूसरों को भी वह बताने लगा था

जब लोग खेतों में काम करते या पक्षी दाना चुगते तो वह छाती फुलाकर कहता कि अगर वह चुप रह जाए तो दुनिया अंधेरे में डूब जाएगी और कोई भी सुबह का उजाला नहीं देख पाएगा और पहले तो सब हँसकर उसकी बातें सुनते लेकिन धीरे-धीरे मुर्गा अपनी बातों को सच समझने लगा और खुद के बारे में वह इतना सोचने लगा कि वह दूसरों की बातों को सुनना भी बंद कर देता था और बाड़े की मुर्गियाँ उसे समझातीं कि सूरज का निकलना एक प्राकृतिक चलन है और यह उसके होने से नहीं रुकता न बदलता लेकिन वह उल्टा ही कहता कि यह सब उसकी अहमियत को कम दिखाने की कोशिश है और कोई उसके काम का महत्व समझना ही नहीं चाहता

एक दिन खेत के पास रहने वाला बूढ़ा किसान बाड़े में आया और उसने देखा कि मुर्गा फिर से अपनी डींगें हाँक रहा है और किसान मुस्कुराकर बोला कि अगर वह सच में सोचता है कि सूरज उसी से निकलता है तो एक दिन बिना बाँग दिए देखे कि सूरज क्या करता है लेकिन मुर्गा इस बात पर राजी नहीं हुआ क्योंकि उसे लगता था कि अगर उसने एक भी बार चुप रहकर देखा और सूरज नहीं निकला तो सभी उसकी ताकत का मजाक उड़ाएंगे और इसी डर ने उसे रोज सुबह बाँग देने पर मजबूर कर रखा था

एक रात अचानक बाड़े में तेज हवा चली और बारिश आने के संकेत मिलने लगे और खेत गीले होने लगे और आकाश में बादल छा गए और मुर्गा बेचैन हो गया क्योंकि उसे लगा कि सुबह के समय अगर यह मौसम रहा तो वह शायद बाँग नहीं दे पाएगा और उसे डर लगने लगा कि अगर ऐसा हुआ तो सूरज नहीं निकलेगा और पूरा गाँव अंधेरे में ही दिन बिताएगा और इस डर ने उसे रातभर सोने नहीं दिया और वह तड़के चार बजे ही उठ गया ताकि वह सूरज को बुलाने का काम समय पर कर सके और वह बार-बार अपनी आवाज साफ करता रहा कि कहीं उसकी बाँग धीमी न पड़ जाए

लेकिन जब बारिश और तूफान बढ़े तो मुर्गा भीग गया और अचानक वह बीमार पड़ गया और उसके गले में दर्द होने लगा और सुबह होने से पहले ही किसान ने उसे बाड़े में आराम करने को कहा और जब मुर्गा ने बाँग देने की कोशिश की तो आवाज बिल्कुल नहीं निकली और वह घबरा गया कि सूरज को कैसे बुलाएगा और वह खेत की तरफ देखने लगा और आँखें फैलाकर आसमान को ताकने लगा और मन में सोच रहा था कि आज सूरज शायद नहीं आएगा और वह पहली बार अपनी सोच जितनी कमजोर है उतना ही डर महसूस कर रहा था

कुछ देर बाद धीरे-धीरे हवा थमी और बादलों के बीच से हल्की किरणें उतरने लगीं और पूरा आसमान चमक उठा और सूरज पहले की तरह ही निकल आया और गाँव की सारी जमीन पर उजाला फैल गया और इसे देखते ही मुर्गे की आँखें चौड़ी रह गईं और उसे यकीन नहीं हो रहा था कि उसके बिना भी सूरज निकल सकता है और वह खुद को इतना बड़ा समझने में कितना बड़ा भ्रम पाल रहा था और वह धीरे-धीरे समझने लगा कि सूरज उसके होने से नहीं बल्कि प्रकृति के नियम से चलता है और उसकी बाँग सिर्फ सुबह को बताने की आदत है न कि सूरज को लाने की ताकत

जब किसान बाड़े में आया तो मुर्गे ने चुपचाप सिर झुका लिया और किसान ने मुस्कुराकर कहा कि आज उसने एक बड़ी सीख ली है और कोई भी काम चाहे कितना छोटा क्यों न हो उसे करने में गर्व होना अच्छी बात है लेकिन खुद को दुनिया का सबसे बड़ा मान लेना गलत है और अहम इंसान को गलत दिशा में ले जाता है और मुर्गे ने यह सुनकर सिर हिलाया क्योंकि अब उसे समझ आ गया था कि उसकी सोच गलत थी और वह सिर्फ प्रकृति के चक्र का एक छोटा सा हिस्सा है

उस दिन के बाद मुर्गा अपनी बाँग देता रहा लेकिन उसकी आवाज में पहले वाली अकड़ नहीं थी और वह दूसरों की राय भी सुनने लगा और पहले की तरह डींगें नहीं हाँकता था और अब वह जानता था कि सूरज अपना रास्ता खुद बनाता है और उसकी बाँग सिर्फ एक आदत है और अहम ने जो उसे भ्रम में रखा था वह अब टूट चुका था और बाड़े के पक्षी भी उसे देखकर खुश थे कि वह बदल गया है और वह उनसे पहले से ज्यादा मिलकर रहने लगा

कुछ दिनों बाद जब गर्मियों की सुबहें बिल्कुल साफ होने लगीं तो मुर्गा फिर रोज समय पर उठता लेकिन अब वह आसमान को देखकर सोचता कि जो चीजें उसकी क्षमता से बाहर हैं उन पर वह हक नहीं जता सकता और अब वह सुबह का स्वागत करने वाला पक्षी बन गया न कि सूरज को बुलाने वाला और यह बदलाव उसके दिल में बस गया और उसने तय कर लिया कि वह फिर कभी ऐसा भ्रम नहीं पालेगा और अब वह दूसरों को भी समझाता कि किसी का अहम बड़ा नुकसान कर सकता है और अपनी सोच को सही दिशा में रखना जरूरी है

समय बीतता गया और मुर्गा बाड़े में सबसे समझदार पक्षियों में गिना जाने लगा क्योंकि उसने अपनी गलती को स्वीकार कर लिया था और अपनी आदत को बदल लिया था और यह सीख गाँव के बच्चों तक भी पहुँच गई और वे उसे देखकर कहते कि गलती करना बुरा नहीं लेकिन उसे सुधारना बड़ी बात है और मुर्गा यह सुनकर संतुष्ट होता क्योंकि उसने अपने जीवन में पहली बार समझा था कि वह अपने बारे में जो सोचता था वह सच नहीं था

शिक्षा: अहम इंसान को गलत रास्ते पर ले जाता है, सही सोच ही सही दिशा दिखाती है।

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