सुनहरी हवा का रहस्य
रात का समय था, गाँव की गलियों में हल्की ठंडक थी और पेड़ों के बीच से गुजरती सुनहरी हवा चमकती लकीरों की तरह आसमान में फैल रही थी। गाँव की बच्ची ध्वनि अक्सर इस हवा को महसूस करती थी। जब बाकी सब बच्चे सो जाते, तब वह अपनी खिड़की पर बैठकर सोचती कि यह चमकती हुई हवा आखिर आती कहाँ से है। हर बार जब यह हवा चलती, उसके सपनों में कुछ अनोखा होता। कभी रंगों की बारिश, कभी आसमान में चमकती नावें, कभी मुस्कुराती पहाड़ियाँ। उसे लगता कि यह हवा सच में उसके सपनों में जादू बिखेरती है।
एक रात ध्वनि ने तय किया कि वह इस रहस्य को जानेगी। वह चुपके से बाहर निकली और उस सुनहरी हवा के निशान का पीछा करने लगी। हवा की चमक उसे जंगल के अंदर तक ले गई। वहाँ उसने एक चमकते बादल पर बैठी एक आकृति देखी। वह थी हवा की रानी। उसके लंबे चमकते बाल दूर तक लहराते थे, लेकिन उसका चेहरा थका हुआ लग रहा था। ध्वनि ने धीरे से पूछा, तुम कौन हो? मैं हवा की रानी हूँ।
मैं हर रात सुनहरी हवा को लेकर आती हूँ ताकि बच्चों के सपनों में जादू पहुंचा सकूँ। पर मैं अब कमजोर हो गई हूँ। ध्वनि ने हैरानी से पूछा, कमजोर क्यों? हवा की रानी ने उदास होकर कहा, मेरा जादू तभी चलता है जब बच्चे एक-दूसरे के साथ मिलकर रहते हैं, झगड़ते नहीं। लेकिन अब गाँव के बच्चे छोटी-छोटी बातों पर लड़ने लगे हैं। जब दिलों में नाराजगी होती है तो सपनों का जादू कमजोर पड़ जाता है।
ध्वनि कुछ देर चुप रही। उसे याद आया कि उसके अपने दोस्त भी पिछले दिनों कई बार आपस में उलझ गए थे। खेलते समय बहस, खिलौनों को लेकर झगड़ा, और कभी-कभी बिना वजह गुस्सा। शायद इसी वजह से सुनहरी हवा पहले जैसी चमकदार नहीं रही। ध्वनि ने हवा की रानी से कहा, अगर मैं गाँव के बच्चों को समझा दूँ कि झगड़ा न करें, तो क्या तुम्हारी ताकत वापस आ जाएगी? रानी ने हल्की मुस्कान के साथ सिर हिलाया। हाँ, लेकिन यह आसान नहीं है। ध्वनि ने दृढ़ आवाज में कहा, मैं कोशिश करूँगी। अगले दिन ध्वनि ने सभी बच्चों को अपने घर के बाहर बुलाया। उसने उन्हें बताया कि उनकी लड़ाइयाँ हवा के जादू को खत्म कर रही हैं। पहले तो बच्चों ने बात को मजाक समझा,
लेकिन ध्वनि ने उन्हें रात में दिखी सुनहरी हवा की मंद चमक का जिक्र किया। उसने कहा, जब हम एक साथ हँसते हैं तो रात की हवा चमकती है।
और जब हम लड़ते हैं, तो हवा दुखी हो जाती है। कई बच्चे चुप हो गए। उन्हें याद आया कि सच में पिछले दिनों उनके सपने फीके हो गए थे। किसी को रंगों वाले सपने नहीं आए, किसी को उड़ने वाला सपना नहीं मिला। शाम तक ध्वनि ने सबको एक साथ खेलते देखा। लड़ाई की जगह हँसी थी, नाराजगी की जगह दोस्ती। रात होने पर ध्वनि फिर अपनी खिड़की पर बैठी। जैसे ही घड़ी ने नौ बजाए, अचानक वही सुनहरी हवा तेज चमक के साथ दिखाई दी। पहले से ज्यादा चमकदार, पहले से ज्यादा जादुई। हवा की रानी फिर से आकाश में दिखाई दी, इस बार पूरी ऊर्जा के साथ। उसने दूर से ही ध्वनि की ओर आशीर्वाद में हाथ उठाया। मेरा जादू वापस आ गया है क्योंकि तुमने सबको साथ ला दिया।
तुम्हारे गाँव में अब सपनों की रोशनी बुझने नहीं दूँगी। ध्वनि के चेहरे पर खुशी फैल गई। वह जानती थी कि उस दिन से उसका गाँव सिर्फ एक जगह नहीं रहा, बल्कि सपनों का घर बन गया था। अब हर बच्चा जान चुका था कि जादू तभी चलता है जब सब एक साथ हों। और हर रात, जब हवा सुनहरी होकर बहती, बच्चों के सपनों में फिर से रंग, नदियाँ, बादल और हँसी उतरने लगती। और ध्वनि यह देखकर मुस्कुरा देती कि थोड़ी-सी समझदारी और थोड़ी-सी दोस्ती कितनी बड़ी चीज़ बचा सकती है।