धीमी-कछुआ-और-घमंडी-खरगोश---The-Slow-Turtle-and-the-Proud-Hare

धीमा कछुआ और घमंडी खरगोश – The Slow Turtle and the Proud Hare

जानवरों की कहानियाँ

धीमा कछुआ और घमंडी खरगोश

घने पेड़ों से ढकी एक सुंदर सी घाटी थी, जहाँ कई तरह के जानवर रहते थे. वहाँ पास ही एक हरा-भरा मैदान था, जहाँ हर सुबह सूरज की किरणें हल्की गर्मी के साथ उतरती थीं और ठंडी हवा पूरे माहौल को सुखद बना देती थी. इसी मैदान में एक

धीमा कछुआ और एक घमंडी खरगोश रहते थे. दोनों एक ही जगह खेलते और घूमते थे, लेकिन दोनों की आदतें और स्वभाव बिल्कुल अलग थे.

खरगोश तेज था, यह बात जंगल के सभी जानवर जानते थे. वह अपनी फुर्ती और स्पीड पर इतना गर्व करता था कि अक्सर बाकी जानवरों का मजाक बना देता था. खासकर कछुए का, जो धीरे-धीरे चलता था और किसी भी काम में समय लेता था. खरगोश हर दूसरे दिन कछुए से कहता, “तू इतना धीमा है कि अगर अभी कोई तुझे बुलाए, तो शायद रात होने तक पहुँचेगा.” कछुआ उसकी बातों पर गुस्सा नहीं करता, बल्कि मुस्कुराकर कहता, “धीमी चाल भी कभी-कभी जीत दिला देती है.” खरगोश इस बात पर हँसता और मजाक उड़ाते हुए कहता, “तेरी जीत तो सपने में ही हो सकती है.”

एक दिन खरगोश ने कछुए के सामने फिर वही मजाक दोहराया. कछुआ शांति से उसकी बातें सुनता रहा. लेकिन उस दिन वह कुछ अलग सोच रहा था. कछुए ने खरगोश की आँखों में देखकर कहा, “अगर इतना ही भरोसा है अपनी तेज़ी पर, तो आओ मेरे साथ दौड़ लगाओ.” खरगोश पहले तो हँसा, फिर बोला, “तू मुझसे दौड़? यह तो जंगल की सबसे मजेदार खबर होगी.” लेकिन कछुआ शांत था. उसने कहा, “खेल में मजा तभी है जब दोनों ईमानदारी से कोशिश करें.” खरगोश ने हँसते हुए चुनौती स्वीकार कर ली.

अगली सुबह जंगल में हलचल थी. सभी जानवर उत्सुक थे कि ऐसी अनोखी दौड़ का नतीजा क्या होगा. लोमड़ी, तोता, हिरन, हाथी, बंदर, सभी मैदान में इकट्ठा हुए. दौड़ शुरू करवाने की जिम्मेदारी बूढ़ी लोमड़ी को दी गई क्योंकि वह समझदार थी. उसने दोनों को स्टार्ट लाइन पर बुलाया और कहा, “याद रखना, दौड़ जीतने के लिए तेज़ दौड़ से ज्यादा समझदारी की जरूरत होती है.” खरगोश ने लोमड़ी की बात पर हँसते हुए कहा, “मैं जीतकर दिखा दूँगा कि स्पीड ही सब कुछ है.”

दौड़ शुरू हुई. खरगोश बिजली की तरह दौड़ा और कुछ ही पलों में बहुत आगे पहुँच गया. उसने पीछे मुड़कर देखा तो कछुआ बहुत दूर था, धीरे-धीरे चलता हुआ. खरगोश ने सोचा, “यह कहाँ जीत पाएगा. मैं तो चाहे सौ बार रुकूँ, फिर भी पहले ही पहुँच जाऊँगा.” वह एक पेड़ की छाँव में बैठ गया. हवा ठंडी थी, मौसम सुहावना. खरगोश ने सोचा कि थोड़ी देर आराम क्यों न कर लूँ. उसने खुद से कहा, “कछुआ तो अभी बहुत पीछे है. मुझे तो आराम करने में भी कोई खतरा नहीं.”

थोड़ी देर बाद खरगोश को नींद आने लगी. उसने सोचा, “थोड़ी झपकी ले लेता हूँ, कछुआ चाहे जितना चल ले, मैं तो एक छलांग में आगे निकल जाऊँगा.” और वह वहीं सो गया.

उधर कछुआ अपनी ही गति से आगे बढ़ता रहा. वह न रुका, न थका, न घबराया. वह जानता था कि जीत एक दिन में नहीं मिलती; जीत धैर्य, मेहनत और लगातार चलने से मिलती है. जंगल के कई जानवर उसे देखकर खुश हो रहे थे. कई तो उसके साथ-साथ चलते हुए कहते, “तू कर सकता है.” कछुआ बस मुस्कुराता और कहता, “कोशिश से सब होता है.”

धीरे-धीरे उसने रास्ते का हर मोड़ पार किया. सूरज ऊपर चढ़ चुका था. खरगोश अब भी सो रहा था. कछुए ने पास जाकर खरगोश को देखा. वह धीरे-धीरे खर्राटे ले रहा था. लेकिन कछुए ने समय बर्बाद नहीं किया. उसने सोचा, “जो समय मेरे पास है, वह किसी को भी हराने के लिए काफी है.” कछुआ चुपचाप आगे बढ़ गया.

अंत में फिनिश लाइन तक पहुँचते-पहुँचते कछुए की साँस थोड़ी तेज थी, लेकिन उसके कदम रुके नहीं. मैदान के सारे जानवर उसकी तरफ देख रहे थे. वह धीरे-धीरे, लेकिन स्थिर कदमों से चलते हुए आखिरकार फिनिश लाइन पार कर गया. जैसे ही उसने लाइन पार की, सारे जानवर जोर से बोल उठे, “कछुआ जीत गया.”

इस शोर से खरगोश की नींद खुली. उसने तुरंत फिनिश लाइन की तरफ देखा. कछुआ वहाँ खड़ा था, सम्मान के साथ, और पूरा जंगल उसकी जीत का जश्न मना रहा था. खरगोश ने यह देखकर सिर झुका लिया. उसे अपनी गलती का अहसास हो चुका था. उसने कछुए के पास जाकर कहा, “मैंने तुझे कम आंका. मुझे लगा स्पीड ही सब कुछ है.” कछुए ने शांत स्वर में कहा, “तेज़ होने में बुराई नहीं, लेकिन घमंड बर्बादी लाता है. जो अपनी ताकत पर अहंकार कर लेता है, वह एक दिन जरूर हारता है.”

खरगोश को यह बात दिल से समझ आ गई. उसने कछुए से माफी माँगी और आगे से विनम्र रहने का वादा किया. जंगल के जानवरों ने कछुए की जीत का उत्सव मनाया. उस दिन से खरगोश ने सभी का सम्मान करना सीख लिया और कछुआ जंगल में बुद्धि और धैर्य का प्रतीक बन गया. दोनों के बीच दोस्ती भी बढ़ गई, क्योंकि कछुआ रंजिश नहीं रखता था. वह जानता था कि जीत का असली मूल्य तभी है जब वह दूसरों को भी सीख दे.

शिक्षा: घमंड करने वाला हमेशा अपनी ही गलती से हारता है, जबकि विनम्र और धैर्यवान व्यक्ति धीरे-धीरे ही सही, पर सही दिशा में आगे बढ़ता है और अंत में जीत हासिल करता है.

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