बोलता-हुआ-पेड़-The-Talking-Tree

बोलता हुआ पेड़ – The Talking Tree

परी कथाएँ

बोलता हुआ पेड़

हरी पहाड़ियों और साफ नीले आसमान के बीच बसा एक शांत गाँव था, जहाँ लोग मेहनती थे और बच्चों की हँसी हर तरफ गूँजती थी। इस गाँव के बीच एक छोटा जंगल था, जिसे लोग कम ही पार करते थे। जंगल में एक बहुत पुराना पेड़ था, जिसका तना चौड़ा और पत्ते चमकदार थे, जैसे किसी ने उन पर सुबह की ओस को स्थिर कर दिया हो। लोग उसे बस “पुराना पेड़” कहते थे, लेकिन बच्चों में उसके बारे में कई कहानियाँ घूमती थीं। सबसे मशहूर कहानी यह थी कि यह पेड़ बात करता है। पर वह सिर्फ उसी से बात करता है जिसका दिल सच बोलता हो और जो छल-कपट से दूर हो। गाँव के बच्चे कई बार कोशिश करते, लेकिन किसी को आवाज़ नहीं मिलती। कोई कहता शायद पेड़ सोया हुआ है, कोई कहता शायद पेड़ पुराने दिनों की बातें ही सुनना चाहता है, लेकिन असल में किसी को पता नहीं था कि पेड़ कब और कैसे जवाब देता है।

गाँव में एक प्यारी बच्ची थी जिसका नाम था माया। माया ईमानदार, शांत और हमेशा मदद करने वाली थी। वह अक्सर जंगल के पास खेलती, लेकिन पुराना पेड़ देखकर हमेशा सोचती कि क्या यह सच में बोलता है। उसे अपने दादा की वह बात सबसे ज्यादा याद रहती थी कि “कभी भी पेड़ों को हल्के में मत लेना, उनमें दुनिया का सबसे पुराना ज्ञान छुपा होता है।” माया दादा की इस सीख को दिल से मानती थी। एक दिन वह स्कूल से लौट रही थी जब उसे जंगल के पास से आती हवा में एक अजीब-सी नरम आवाज़ सुनाई दी। आवाज़ कोई शब्द तो नहीं थी, लेकिन कुछ थी जो उसे जंगल की ओर खींच रही थी। उसने हिम्मत जुटाई और पेड़ की ओर बढ़ गई।

पुराने पेड़ के पास पहुँचकर उसने खामोशी महसूस की। हवा भी रुक गई और जंगल जैसे उसकी साँसें थामकर खड़ा था। माया ने धीरे से पूछा, “क्या आप सच में बोलते हैं?” लेकिन कोई जवाब नहीं आया। उसने फिर पूछा, “मैं बस जानना चाहती हूँ कि आप सच बताते हैं या लोगों की कहानियाँ ही सच बन गई हैं।” तब भी कोई प्रतिक्रिया नहीं। माया थोड़ी निराश हुई, पर गयी नहीं। उसने पेड़ के पास बैठकर अपनी दिनभर की बातें करनी शुरू कर दी। उसने स्कूल की बातें, अपनी माँ की हँसी, छोटी-छोटी मुश्किलें, और अपने मन की दुविधाएँ धीरे-धीरे पेड़ को सुनाईं। वह जान भी नहीं पाई कि कब वह अपनी पूरी सच्चाई पेड़ के सामने खोल बैठी।

जब उसने आखिरी वाक्य कहा, “मैं बस यह समझना चाहती हूँ कि दिल से सच बोलना क्यों इतना जरूरी है,” उस पल पेड़ की पत्तियाँ धीरे-धीरे झूमने लगीं। हवा में एक गर्माहट फैल गई। माया ने आश्चर्य से इधर-उधर देखा, और फिर उसने वही सुना जिसका उसने हमेशा इंतजार किया था। एक बहुत गहरी लेकिन नरम आवाज़ बोली, “क्योंकि सच दिल से निकले तो दुनिया भी सुनती है, और जंगल भी।” माया की आँखें चमक उठीं। पेड़ ने पहली बार किसी से बात की थी और वह भी उससे। उसने उत्सुक होकर पूछा, “क्या आप हमेशा ऐसे ही सुनते हैं?” पेड़ ने उत्तर दिया, “मैं सब सुनता हूँ, लेकिन जवाब सिर्फ उसी को देता हूँ जो अपने मन की सच्ची बात कह सके।”

माया जब घर लौटी तो उसके चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। गाँव वालों ने पूछा कि वह इतनी खुश क्यों है। माया ने मुस्कुराकर कहा, “कभी-कभी जंगल भी हमें सुनते हैं, बस हमें सच बोलना आना चाहिए।” उसने पेड़ का राज किसी को नहीं बताया क्योंकि उसने समझ लिया था कि कुछ खजाने दिखाने के लिए नहीं, समझने के लिए होते हैं। लेकिन उसकी इस बदलती मुस्कान और साफ दिल ने गाँव के कई लोगों को भी सच बोलने की प्रेरणा दी।

पुराना पेड़ अपनी जगह शांत खड़ा रहा, लेकिन अब वह जानता था कि एक बच्ची दुनिया को बिना कहे भी ईमानदारी का रास्ता दिखा रही थी। और जंगल का हर पत्ता उस दिन थोड़ा ज्यादा चमक रहा था।

शिक्षा: सच बोलने से भरोसा और रास्ता दोनों मिलता है।

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