इंद्रधनुष-का-खजाना-The-Treasure-of-the-Rainbow

इंद्रधनुष का खजाना – The Treasure of the Rainbow

परी कथाएँ

इंद्रधनुष का खजाना

हरे पहाड़ों और शांत नदी के बीच बसे एक छोटे से गाँव में नीलम नाम की एक जिज्ञासु बच्ची रहती थी। नीलम हमेशा आसमान में होने वाले बदलावों को ध्यान से देखती थी। उसे बादलों के आकार, हवा की चाल और खासकर इंद्रधनुष बहुत पसंद था। जब भी बारिश के बाद आसमान में रंगों का सुंदर पुल दिखाई देता, नीलम चुपचाप उसे घूरते हुए सोचती कि आखिर इसके अंत में क्या होता होगा। एक दिन भारी बारिश के बाद जब सूरज हल्का सा निकला, आसमान में चमचमाता हुआ एक लंबा इंद्रधनुष उभरा। नीलम की आंखें चमक उठीं। उसने अपने दादी से पूछा, “इंद्रधनुष के आखिर में क्या होता है?” दादी मुस्कुराईं और बोलीं, “कहते हैं कि वहाँ एक जादुई खजाना होता है, लेकिन उसे सिर्फ परी ही दिखा सकती है।” नीलम ने यह सुनकर ठान लिया कि आज वह उस खजाने को ढूंढ कर ही मानेगी। वह धीरे-धीरे इंद्रधनुष की दिशा में चल पड़ी।

रास्ता आसान नहीं था। कभी चढ़ाई, कभी पत्थरीले मोड़, कभी फिसलनभरी घास, लेकिन नीलम का हौसला कम नहीं हुआ। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ रही थी, ऐसा लग रहा था कि इंद्रधनुष भी उसके करीब आ रहा है। पहाड़ की ऊंचाई पर पहुँचकर उसने देखा कि रंगों के नीचे एक हल्की सी चमक थी, मानो कोई उसका इंतजार कर रहा हो। नीलम उत्साहित होकर आगे बढ़ी, और तभी उसकी आंखों के सामने एक सुंदर परी प्रकट हुई। परी के पंखों पर हल्की रोशनी चमक रही थी, और उसकी मुस्कान बेहद शांत थी।

परी ने कोमल आवाज़ में कहा, “नीलम, इंद्रधनुष का खजाना हर किसी को नहीं दिखता। यह सिर्फ उन लोगों को मिलता है जिनके दिल में निष्कपट साहस और नेकी हो।” नीलम घबरा गई लेकिन धीरे-धीरे बोली, “मैं कुछ गलत नहीं चाहती। बस जानना चाहती हूँ कि खजाना क्या है।” परी ने उसकी आंखों में झांककर कहा, “अगर तुम सच में तैयार हो, तो मेरे साथ चलो।”

इंद्रधनुष की रंगीन रोशनी के बीच से गुजरते हुए दोनों एक खुली जगह पर पहुँचीं जहाँ जमीन सुनहरी चमक से भरी थी। वहाँ कोई सोना, चाँदी, रत्न या महल नहीं था। सिर्फ एक क्रिस्टल का छोटा सा डिब्बा रखा था। नीलम ने हैरानी से पूछा, “यह खजाना है?” परी ने सिर हिलाया और बोली, “हाँ। असली खजाना हमेशा बाहर नहीं, दिलों में छिपा होता है।” उसने डिब्बा खोला। उसके अंदर एक छोटी सी, चमकती हुई रोशनी तैर रही थी। नीलम चकित होकर देखने लगी।

परी ने कहा, “यह है खुशी बाँटने की शक्ति। दुनिया में सबसे बड़ा खजाना। जो इसे समझ ले, उसका दिल कभी खाली नहीं रहता।” नीलम ने पूछा, “लेकिन मैं इसका क्या करूँ?” परी मुस्कुराई, “इसे अपने मन में रखो और जब भी किसी को मदद की जरूरत हो, मुस्कान की जरूरत हो, या सहारे की जरूरत हो, यह शक्ति तुम्हारे काम आएगी। जितनी खुशी तुम बाँटोगी, उतना ही इंद्रधनुष और चमकेगा।”

घर लौटते समय नीलम को ऐसा लग रहा था जैसे उसके अंदर कोई हल्की गर्म रोशनी जल रही हो। रास्ते में उसने एक छोटे बच्चे को गिरा हुआ देखा। वह भागकर उसके पास गई और उसे उठाते हुए बोली, “चोट लगी? चलो मैं तुम्हें घर छोड़ देती हूँ।” बच्चे के चेहरे पर मुस्कान आ गई। उसी पल नीलम को महसूस हुआ कि उसके मन की रोशनी और चमकने लगी है। गाँव में उसकी दयालुता की कहानियाँ फैलने लगीं। लोग कहते कि जब नीलम किसी की मदद करती, तो आसमान में कहीं न कहीं इंद्रधनुष की हल्की सी रेखा जरूर दिखती।

समय बीतता गया लेकिन नीलम ने उस खजाने को कभी नहीं भुलाया। वह छोटी-सी रोशनी उसके दिल में बस गई थी। जब भी कोई उदास होता, वह उसके पास बैठती, बातें करती, मदद करती। उसे समझ आ चुका था कि सच्ची खुशी पाने का सबसे आसान तरीका है उसे दूसरों के साथ साझा करना। एक दिन बारिश के बाद जब इंद्रधनुष फिर उभरा, नीलम ने आसमान की ओर देखा। उसे लगा जैसे परी फिर से मुस्कुराकर उसे देख रही हो। अब नीलम को किसी खजाने की तलाश नहीं थी क्योंकि वह जान चुकी थी कि उसके पास सबसे बड़ा खजाना पहले से है — खुशी बाँटने की शक्ति

शिक्षा: दूसरों को खुशी देना ही सबसे बड़ी खुशी है।

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