कछुआ-और-दो-लोभी-मछलियाँ---The-Turtle-and-the-Two-Greedy-Fish

कछुआ और दो लोभी मछलियाँ – The Turtle and the Two Greedy Fish

जानवरों की कहानियाँ

कछुआ और दो लोभी मछलियाँ

एक शांत तालाब में एक बूढ़ा कछुआ रहता था। तालाब बहुत बड़ा नहीं था, लेकिन उसमें इतने पेड़ पौधे और ठंडी मिट्टी थी कि हर दिन नया और ताज़ा लगता था। उसी तालाब में दो मछलियाँ भी रहती थीं। दोनों तेज, चमकीली और हमेशा घूमने भागने वाली थीं। पर उनकी एक कमी थी। वे हमेशा लालच, ज़िद और हठ में उलझी रहती थीं। कछुआ उन्हें अक्सर समझाता कि जीवन सिर्फ तेज गति से नहीं चलता, समझ भी उतनी ही जरूरी है, पर मछलियाँ उसकी बात को मजाक समझकर हँस देती थीं।

धीरे धीरे गर्मियों का मौसम आया। सूरज की तपिश पहले से ज्यादा तीखी हो गई। हर तरफ सूखा फैलने लगा। तालाब का पानी हर दिन थोड़ा थोड़ा कम होता गया। शुरुआत में मछलियों ने इस बदलाव पर ध्यान ही नहीं दिया। उन्हें लगा कि बरसात आते ही सब ठीक हो जाएगा। लेकिन कछुआ ये बात समझ रहा था कि हालात अच्छे नहीं हैं। तालाब के किनारे की मिट्टी में दरारें पड़ने लगी थीं और पानी आधा रह गया था। एक दिन कछुआ तालाब की गहराई से ऊपर आया और मछलियों को बुलाकर बोला, “हमें अब कुछ करना होगा। अगर ऐसे ही चलता रहा तो ये तालाब ज्यादा दिन नहीं बचेगा।”

दोनों मछलियाँ पास आईं, लेकिन हँसते हुए बोलीं, “ओह कछुआ, तुम हर बात पर चिंता करते हो। पानी थोड़ा कम हुआ है तो क्या, अभी बहुत सा बाकी है।” कछुए ने शांत आवाज़ में कहा, “बहुत सा नहीं, बहुत कम बचा है। अगर हम नए तालाब की तरफ नहीं गए तो मुश्किल हो सकती है। मैंने जंगल के उस पार एक बड़ा तालाब देखा है। वहाँ बहुत पानी है। हमें वहीं जाना चाहिए।” मछलियों ने कंधे उचकाए, जैसे कुछ समझना उन्हें पसंद ही न हो। वे बोलती रहीं, “कछुआ, तुम तो बहुत धीरे चलोगे। इतनी दूर तुम पहुँच भी पाओगे या नहीं? हम तो यहीं रहेंगे।”

कछुआ जानता था कि वे नहीं मानेंगी। वह अकेला उस नए तालाब की तरफ निकल पड़ा। चलना आसान नहीं था, लेकिन उसके पास धैर्य था। वह धीरे धीरे पेड़, कंकड़, छोटी पहाड़ी और सूखी घास के बीच रास्ता बनाता गया। उसे कई घंटे लगे, पर आखिरकार वह नए तालाब के पास पहुँच गया। पानी ठंडा, साफ और चमकीला था। वहाँ पहुँचकर उसने राहत की सांस ली और खुद को डुबोकर तरोताज़ा कर लिया।

उधर उसके पुराने तालाब की हालत बहुत खराब होती जा रही थी। पानी अब एक गड्ढे जितना रह गया था। मछलियाँ अब परेशान थीं। उन्हें लगा कि कछुआ सही था। वे रोज़ आसमान की तरफ देखतीं, शायद बादल बरस जाएँ, लेकिन कुछ नहीं हुआ। एक दिन जब पानी और कम हुआ तो मछलियों ने फैसला किया कि अब कछुए की बात माननी चाहिए। पर अब बहुत देर हो चुकी थी। तालाब का बचा पानी इतना था कि तैरना मुश्किल हो गया था। हवा गर्म थी, बदन में थकान थी, और आसमान से कोई मदद नहीं मिल रही थी।

दिन बीतते गए। तालाब पूरी तरह से सूख गया। दोनों मछलियाँ तड़पती रहीं। उन्हें अब कछुए की बात याद आई। वे समझ गईं कि समय पर सही सलाह को मानना सबसे बड़ी समझदारी होती है। लेकिन समझ आने में जितनी देर हुई, उतनी देर में उनका बचना मुश्किल हो गया। तालाब की जमीन सूख गई और उन्हीं पर उनकी आखिरी सांसें खत्म हो गईं। उनकी कहानी तालाब के आसपास रहने वाले बाकी जानवरों ने भी सुनी और वे सब सीख गए कि जिद का कोई फायदा नहीं।

वहीं कछुआ अपनी नई जगह पर सुरक्षित था। वह वहां के दूसरे जीवों को अपनी कहानी सुनाता और बताता कि समय पर सही फैसला जीवन बचा सकता है। वह हर किसी को यही सिखाता कि हटधर्मी और लालच छोटे ही नहीं, बड़े जीवों को भी बर्बादी की तरफ ले जाते हैं। कछुए को अपने पुराने तालाब की याद जरूर आती, पर उसे ये सुकून था कि उसने सही समय पर समझदारी दिखाकर अपनी जान बचाई।

कुछ महीनों बाद बारिश आई और पुराने तालाब में थोड़ा पानी भरा। लेकिन जिंदगी फिर कभी वैसी नहीं बनी। आसपास के पक्षी अक्सर नई पीढ़ी को बताते कि यहाँ कभी दो सुंदर मछलियाँ रहती थीं जो बहुत तेज थीं, पर उन्होंने सलाह को नजरअंदाज किया और अपनी ही ज़िद के कारण अपनी जिंदगी खो दी। कछुआ जब कभी उस तरफ जाता तो तालाब को देखता और धीरे से सोचता, “काश उन्होंने समझा होता कि समय की पहचान ही सबसे बड़ी बुद्धि है।” फिर वह वापस मुड़कर अपने नए घर की ओर बढ़ जाता, क्योंकि उसने सीख लिया था कि आगे बढ़ना ही जीवन है।

शिक्षा
समय पर सही सलाह मानना समझदारी है और जिद हमेशा नुकसान करती है।

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