विक्रम और बेताल: तीन विशिष्ट ब्राह्मण पुत्रों की अद्भुत कथा
बहुत समय पहले एक समृद्ध और प्रतिष्ठित ब्राह्मण रहता था जिसका नाम विष्णुस्वामिन था। वह विद्वान, धार्मिक और बड़े-बड़े यज्ञों का कर्ता था। उसके घर में हर समय सीखने और पूजा का वातावरण रहता था। एक दिन उसने निर्णय लिया कि वह एक विशाल और महत्त्वपूर्ण यज्ञ संपन्न करेगा, जिसके लिए अनेक दुर्लभ सामग्री की आवश्यकता थी। उसी सामग्री में एक कछुआ भी शामिल था। यज्ञ केवल तभी पूर्ण माना जाता जब कछुआ भी उसमें प्रयुक्त होता। इसलिए विष्णुस्वामिन ने अपने तीनों पुत्रों को कछुआ लाने के लिए भेजा।
विष्णुस्वामिन के तीनों पुत्र अपने-अपने स्वभाव में अत्यंत तुनकमिजाज और नखरीले थे। बड़े पुत्र को भोजन के मामले में अत्यधिक नजाकत थी। वह भोजन में किसी भी प्रकार की गंध, स्वाद या अशुद्धता सहन नहीं कर सकता था। दूसरा पुत्र स्त्रियों के संबंध में अत्यंत चुस्त था। वह स्त्री के सौंदर्य से अधिक उसकी शुद्धता और प्राकृतिक सुगंध पर ध्यान देता था। तीसरा पुत्र शय्या के प्रति इतना नखरीला था कि वह बिस्तर में ज़रा-सी खुरदरी चीज़ भी बर्दाश्त नहीं कर पाता था।
तीनों भाई कछुआ ढूंढते हुए जंगल के एक तालाब तक पहुँचे और एक स्वस्थ कछुआ पकड़ भी लिया, पर बात यहाँ आकर अटक गई कि कौन उसे हाथ लगाए। बड़े पुत्र ने कहा कि वह किसी भी जीव को जो मिट्टी और जल से सना हो, छू नहीं सकता क्योंकि उसे उससे दूषित गंध आएगी। दूसरे पुत्र ने कहा कि वह गंधहीन और स्वच्छ वस्तुओं के अलावा किसी भी प्राणी को छूने में असमर्थ है। तीसरे पुत्र ने भी यही कहा कि वह अपने शरीर को किसी भी कठोर या चिकनी सतह से छूने नहीं देता क्योंकि इससे उसे परेशानी हो सकती है। इस प्रकार तीनों में यह विवाद खड़ा हो गया कि उनमें सबसे अधिक नखरीला कौन है और कछुए को कौन लेकर जाएगा।
समस्या का समाधान न निकाल पाने पर वे तीनों अपने पिता के पास जाने के बजाय राजा के दरबार पहुँचे, ताकि वही निर्णय कर सके। उन्होंने राजा से कहा कि वह यह तय करे कि उनमें सबसे अधिक नखरीला कौन है। राजा ने उनकी बात ध्यान से सुनी और सोचा कि ऐसी विचित्र बात का निर्णय केवल परीक्षा से ही हो सकता है। उसने तीनों की नजाकत को जाँचने का निश्चय किया।
सबसे पहले राजा ने बड़े पुत्र की परीक्षा ली। उसने उसके लिए एक अत्यंत विशिष्ट और स्वादिष्ट भोज की व्यवस्था की। वहाँ पकवानों की सुवास चारों ओर फैल रही थी। लेकिन बड़े पुत्र ने भोजन को छूने तक से इनकार कर दिया। उसने कहा कि चावल से जले हुए मृत शरीरों की गंध आ रही है। राजा आश्चर्यचकित हो गया। उसने तुरंत पता लगाने के लिए दूत भेजे। जाँच से पता चला कि ये चावल एक ऐसे खेत से आए थे जो श्मशान भूमि के निकट था। इस प्रकार बड़े पुत्र की संवेदनशीलता सिद्ध हो गई।
अब राजा ने दूसरे पुत्र की परीक्षा का विचार किया। उसने एक अत्यंत सुंदर, सुगंधित और आकर्षक दासी को उसके पास भेजा। वह स्त्री सौंदर्य का अद्भुत उदाहरण थी, और कोई भी सामान्य मनुष्य उसे देखकर मोहित हो जाता। परंतु दूसरे पुत्र ने उसे तुरंत वापस लौटा दिया। उसने कहा कि उस स्त्री से बकरी जैसी गंध आ रही है। राजा को फिर आश्चर्य हुआ। जाँच करने पर पता चला कि बचपन में उस दासी को केवल बकरी का दूध ही पिलाया गया था, और वही गंध उसके शरीर में बस गई थी। राजा इस दूसरे पुत्र की क्षमता से भी अत्यंत प्रभावित हुआ।
अब तीसरे पुत्र की परीक्षा का समय आया। राजा ने उसे एक बिस्तर पर सुलाया जिसमें सात मोटे गद्दे एक के ऊपर एक बिछाए गए थे। राजा को पूरा विश्वास था कि इतनी मोटी गद्दियों के बाद किसी भी छोटी चीज़ का अहसास नहीं हो सकता। परंतु आधी रात को तीसरा पुत्र अचानक दर्द से चीखता हुआ उठ बैठा। उसके कंधे पर लाल निशान भी दिखाई दे रहा था। जब बिस्तर की जाँच की गई, तो सात गद्दों के नीचे एक बाल का महीन टुकड़ा पाया गया, जो इस असुविधा का कारण था। यह देख राजा तीसरे पुत्र की संवेदनशीलता से भी अत्यंत प्रभावित हो गया।
अब समस्या यह थी कि तीनों की परीक्षा में तीनों अव्वल निकल आए थे। तीनों की नजाकत अपने-अपने क्षेत्र में अद्वितीय थी और राजा यह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि सबसे अधिक नखरीला कौन है। इसलिए उसने निर्णय लिया कि वह इन तीनों को अपने दरबार में विशेष पदों पर नियुक्त करेगा, ताकि उनकी विशिष्ट क्षमताओं का लाभ राज्य को मिल सके। इसी कारण विष्णुस्वामिन अपना यज्ञ पूरा नहीं कर सका, क्योंकि उसके पुत्र राजा की सेवा में नियुक्त कर दिए गए।
इतना कहकर बेताल चुप हो गया और राजा विक्रम से प्रश्न पूछा कि तीनों में सबसे अधिक नखरीला कौन था। राजा ने विचार कर उत्तर दिया कि तीसरा पुत्र सबसे अधिक नखरीला था क्योंकि उसके दावे का प्रमाण उसके कंधे पर दिखाई देने वाला निशान था। बाकी दोनों की बातों में संभावना थी कि उन्होंने किसी और से यह जानकारी प्राप्त कर ली हो।
जैसे ही विक्रम ने उत्तर दिया, बेताल तुरंत उड़कर वापस इमली के पेड़ पर जा बैठा और विक्रम को फिर उसके पीछे जाना पड़ा।