विक्रम-और-बेताल-Vikram-and-Betal

विक्रम और बेताल: धैर्य का सबसे बड़ा पाठ भाग ग्यारह

विक्रम और बेताल की कहानियाँ

विक्रम और बेताल: धैर्य का सबसे बड़ा पाठ 

रात हमेशा की तरह शांत नहीं थी, बल्कि भय और रहस्य से भरी हवा श्मशान भूमि में घूम रही थी। राजा विक्रम अपने कंधे पर बेताल को उठाए पुराने पीपल के पेड़ से वापस तांत्रिक की ओर बढ़ रहे थे। चिता की बुझती राख हवा में उड़ रही थी, कौओं की आवाजें लगातार गूंज रही थीं, लेकिन राजा का मन स्थिर और अडिग था। कदम भारी जरूर थे, पर उनका संकल्प पहले से भी अधिक मजबूत दिखाई दे रहा था। बेताल ने लंबी सांस ली और अपने व्यंग्यपूर्ण स्वर में बोला, “राजा विक्रम, तुम सच में दृढ़ इच्छा के प्रतीक हो। बार-बार मेरे साथ यह कठिन यात्रा करके भी तुम्हारे भीतर एक क्षण का भी संदेह नहीं आता। अब मैं तुम्हें एक नई कहानी सुनाऊँगा जिसमें सब्र, सहनशीलता और समय की अहमियत छुपी है। लेकिन याद रखना, उत्तर जानकर भी अगर तुमने मुंह खोला तो मैं फिर उड़ जाऊँगा।” राजा ने कहा, “बेताल, जो भी हो, कहो। मैं सुनने और समझने के लिए तैयार हूँ।”

बहुत समय पहले समृद्धनगर नाम के राज्य में वीर, न्यायप्रिय और प्रजा-प्रिय राजा वर्धमान राज किया करते थे। यह राज्य उपजाऊ भूमि, गहरी नदियों और हर मौसम में खुशहाल फसलों के लिए जाना जाता था। लेकिन राज्य में उतनी ही तेजी से बढ़ रहा था लालच, उतावलापन और बिना इंतजार परिणाम पाने की प्रवृत्ति। लोग रातों-रात सफलता चाहते थे और impatience उनका स्वभाव बन चुका था। राजा परेशान तो थे, पर इसे बदलने के लिए सही समय की प्रतीक्षा कर रहे थे। उनके पास समाधान था, पर उन्हें उपयुक्त उदाहरण की जरूरत थी जो जनता के मन और हृदय को भीतर से छू सके।

उसी राज्य के किनारे वर्षों पुराना पहाड़ी गाँव बसता था जिसमें एक युवा लड़का अर्जुन रहता था। वह अत्यंत बुद्धिमान, साहसी और मेहनती था, पर उसमें एक कमी थी—वह सब कुछ जल्दी चाहता था। उसकी यही आदत उसे बेचैन रखती। कोयला बेचने वाले उसके पिता कहते, “बेटा अर्जुन, जीवन में धैर्य ही सबसे बड़ा धन है।” पर अर्जुन हंसी में बात टाल देता और कहता, “पिताजी, जो लोग इंतजार करते रहते हैं, जीवन उनके सामने निकल जाता है।”

एक दिन अर्जुन ने सुना कि राजा वर्धमान अपने उत्तराधिकारी के लिए कोई विशेष व्यक्ति चुनने वाले हैं। यह सुनकर अर्जुन के मन में बड़ा सपना जागा—“यदि मैं उत्तराधिकारी बन जाऊं तो सब कुछ बदल दूंगा, मैं इंतजार नहीं करूंगा, न ही दूसरों को करने दूंगा।” उसकी इच्छा महत्वाकांक्षा नहीं, बल्कि अति-जल्द परिणाम की लालसा पर आधारित थी।

कुछ दिनों बाद राजा ने अपना दरबार सजवाया और घोषणा की—“जो भी यह सिद्ध कर दे कि धैर्य जीवन की सबसे बड़ी शक्ति है, वही विशेष पुरस्कार पाने का अधिकारी होगा।” कई योद्धा, विद्वान और व्यापारी आए, हर किसी ने ज्ञान की बातें कही, पर किसी के विचार में गहराई नहीं थी। अर्जुन भी वहाँ पहुँचा, लेकिन वह उत्तर से ज्यादा परिणाम चाहता था। उसने कहा, “महाराज, जो तेज़ चलता है वही आगे निकलता है। जो देर करे, वह पीछे छूट जाता है।”

राजा मुस्कुराए और बोले, “अच्छा, यदि तुम्हें लगता है कि इंतजार समय की बर्बादी है तो तुम मेरे साथ चलो। मैं तुम्हें जीवन का एक वास्तविक अनुभव करवाता हूँ।” अर्जुन उत्साह में तुरंत तैयार हो गया, बिना सोचे कि परिणाम क्या होगा। राजा उसे राज्य के सबसे घने और रहस्यमय जंगल में ले गए, जहाँ एक पुराना पथरीला कुआँ था। उस कुएँ के पास एक छोटी सी झोपड़ी थी। वहां एक बूढ़ा साधु रहता था जो अपने जीवन के संतुलन और धैर्य के लिए जाना जाता था।

राजा ने साधु से कहा, “इनको धैर्य का रहस्य सिखाना है।” साधु ने अर्जुन को देखा और बोला, “यदि तुम धैर्य को समझना चाहते हो, तो तुम्हें कुछ दिनों तक यहाँ मेरा सहयोग करना होगा।” अर्जुन ने सोचा कि शायद यह कोई छोटा सा काम होगा और उसने तुरंत हाँ कह दिया।

पहले दिन साधु ने अर्जुन को केवल पानी से भरी एक मटकी दी और कहा, “खाली नहीं करनी, बस थामे रखना।” पूरा दिन बीता, अर्जुन के हाथ दुखने लगे, लेकिन उसने सोचा कि यह तो आसान है। दूसरे दिन साधु ने कहा, “आज मटकी में पानी नहीं, लेकिन उसे गिरने नहीं देना।” अर्जुन को फिर परेशानी हुई, लेकिन वह उसे संभाले रहा। तीसरे दिन कुएँ के पास साधु ने उसे कहा, “अब इसे अपनी पीठ पर लेकर चलो और गिरने मत देना।” अर्जुन अब थक चुका था, पर उसने खुद को साबित करने का निश्चय किया था। परंतु चौथे दिन साधु ने मटकी में भारी पत्थर रख दिया और कहा, “आज बस चुपचाप इंतजार करना।” अर्जुन क्रोधित होने लगा। उसके मन में बार-बार यही विचार आता—“मैं यहाँ क्यों हूँ, मैं बड़ा काम करने आया था, न कि यह सब करने।”

साधु धीमे स्वर में बोला, “तुम यही सोच रहे हो न कि तुम यहाँ समय बर्बाद कर रहे हो? लेकिन याद रखो, जो व्यक्ति भार उठाने की कला सीख लेता है, वही जीवन की कठिनाइयों को संभाल सकता है। जो थककर बीच में छोड़ देता है, परिणाम उसका नहीं होता।” अगले दिन साधु ने अर्जुन को एक बीज दिया और कहा, “इसे बो दो और रोज पानी डालना, पर इसे जोर से खींचकर बड़ा बनाने की कोशिश मत करना, वरना यह मर जाएगा।” अर्जुन ने बीज बो दिया। पहले सप्ताह कुछ नहीं हुआ, दूसरे सप्ताह भी नहीं। तीसरे सप्ताह थोड़ा अंकुर निकला। अर्जुन परेशान था और सोचता कि यदि जोर से पौधे को ऊपर खींच दे तो जल्दी बड़ा हो जाएगा। पर उसे साधु की बात याद आई—“जल्दबाजी विनाश है।” इसलिए उसने सिर्फ देखभाल जारी रखी।

धीरे-धीरे वह छोटा अंकुर पौधा बन गया, फिर बढ़ता गया। हवा, धूप, ठंड और बारिश झेलते-झेलते पौधे की जड़े मजबूत हो गईं। शायद अर्जुन को भी अहसास हुआ कि जीवन की जड़ें भी धैर्य से मजबूत होती हैं। सपने पाने के लिए रास्ते पर चलना जरूरी है, पर जल्दबाज़ी कभी मंज़िल नहीं दिलाती। महीनों बाद जब पौधा एक मजबूत पौधे में बदल गया, साधु ने अर्जुन से कहा, “देखो, यदि तुमने धैर्य नहीं रखा होता, तो यह पौधा कभी जीवित न रहता। जैसे पौधा समय माँगता है, वैसे ही सफलता भी समय मांगती है।”

अर्जुन की आँखें चमक उठीं, उसका मन शांत हो गया, और उसने पहली बार महसूस किया—धैर्य कमजोरी नहीं, सबसे बड़ी शक्ति है। जब वे वापस दरबार में लौटे तो राजा ने पूछा, “अब तुम्हारा क्या मत है?” अर्जुन झुककर बोला, “महाराज, मैंने समझ लिया है कि धैर्य ही सच्चा हथियार है। व्यक्ति चाहे कितना ही शक्तिशाली, बुद्धिमान या तेज क्यों न हो, यदि धैर्य नहीं है तो कोई भी काम स्थायी सफलता नहीं देता।”

अब बेताल ने विक्रम से प्रश्न पूछा—“बताओ विक्रम, इस कहानी में सबसे महत्वपूर्ण कौन है? राजा, जिसने परीक्षा दी, साधु, जिसने मार्ग दिखाया या अर्जुन, जिसने सीख को स्वीकार किया?” राजा विक्रम ने उत्तर दिया, “सबसे महत्वपूर्ण अर्जुन है, क्योंकि ज्ञान देने वाला तभी सफल होता है जब शिष्य सीख को स्वीकार करे। साधु और राजा मार्गदर्शक थे, लेकिन अर्जुन ने बदलाव को अपनाया और वही असली विजय है।” बेताल हँसा और बोला, “विक्रम, तुमने फिर सत्य कहा। इसलिए मैं फिर उड़ जाता हूँ।” और वह क्षणभर में गायब हो गया।

शिक्षा: जीवन की सबसे बड़ी शक्ति धैर्य है, क्योंकि समय पर किया गया प्रयास ही स्थायी सफलता देता है।

 

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