विक्रम-और-बेताल-Vikram-and-Betal

विक्रम और बेताल: राजा विक्रम और बेताल की बुद्धिमानी की परीक्षा भाग एक

विक्रम और बेताल की कहानियाँ

 

वेताल पच्चीसी, जिसे महान कवि सोमदेव भट्ट ने लगभग ढाई हज़ार वर्ष पहले रचा था, अद्भुत और रोमांचकारी कथाओं का संग्रह है। ये कहानियाँ चालाक और चतुर भूत बेताल द्वारा बुद्धिमान और पराक्रमी राजा विक्रमादित्य को सुनाई जाती हैं।

इन कथाओं में प्राचीन काल की समृद्ध संस्कृति, भव्यता, शौर्य और जीवन के गहरे दर्शन का अद्भुत संगम मिलता है। विक्रम और बेताल की ये कहानियाँ केवल मनोरंजन ही नहीं, बल्कि हर कथा के अंत में एक गूढ़ प्रश्न या नैतिक संदेश भी प्रस्तुत करती हैं, जिससे पाठक सोचने पर मजबूर हो जाता है।

इनका आकर्षण आज भी उतना ही जीवंत है जितना प्राचीन समय में था, क्योंकि यह कहानियाँ मानव स्वभाव, न्याय, बुद्धिमत्ता और नैतिकता की अनमोल झलक प्रस्तुत करती हैं।

विक्रम नामक एक पराक्रमी और न्यायप्रिय राजा था। वह गोदावरी नदी के किनारे बसे एक विशाल और समृद्ध नगर पर शासन करता था। उसकी वीरता, साहस और प्रजा के प्रति करुणा के कारण उसका नाम दूर-दूर तक प्रसिद्ध था। लोग उसे केवल अपने राजा के रूप में नहीं, बल्कि रक्षक और न्यायकर्ता के रूप में भी मानते थे। उसके दरबार में प्रतिदिन अनेक विद्वान, व्यापारी और साधु-संत आया करते थे, और हर व्यक्ति यह जानता था कि राजा विक्रम कभी अन्याय सहन नहीं करता।

एक दिन उसके दरबार में एक साधु आया। वह शांत और तेजस्वी व्यक्तित्व वाला साधु राजा को एक फल भेंट कर गया। राजा ने आदर के साथ फल ग्रहण किया और उसे भंडारी को सौंप दिया। अगले दिन भी वही साधु आया और फिर एक फल देकर चला गया। यह क्रम कई दिनों तक चलता रहा। प्रतिदिन साधु आता, राजा को फल भेंट करता और चला जाता। राजा को यह व्यवहार असामान्य तो लगा, पर वह साधु की मंशा जानने के लिए उससे कुछ पूछना नहीं चाहता था। उसने सोचा कि शायद साधु किसी योग्य समय का इंतज़ार कर रहा है।

शीर्षक: विक्रम और बेताल का प्रथम मिलन

एक सुबह राजा ने देखा कि एक बंदर महल की दीवार पर बैठा है। मनोरंजन की भावना से राजा ने उसी दिन साधु द्वारा दिया गया फल उसे खाने के लिए दे दिया। बंदर ने जैसे ही फल को काटा, उसके भीतर से एक अत्यंत चमकीला रत्न नीचे गिर पड़ा। यह देखकर राजा चकित रह गया। उसने तुरंत अपने भंडारी को आदेश दिया कि साधु द्वारा दिए गए सभी फल उसके सामने लाए जाएँ। जब वे फलों को लेकर आए, तो वे सड़े हुए थे। राजा ने सब फलों को मसलने को कहा। जैसे ही उन्हें दबाया गया, हर एक से अनमोल रत्न बाहर निकला। राजा ने उन रत्नों को अपने पास रखने के बजाय गरीबों में बांट दिया और अगले दिन साधु के आने की प्रतीक्षा करने लगा।

अगले दिन साधु फिर दरबार पहुँचा। राजा ने उसका सम्मानपूर्वक स्वागत किया और शांत स्वर में पूछा, “हे महामहिम, आप मुझे इतने दिनों से इतने कीमती उपहार क्यों दे रहे हैं? बिना किसी उचित कारण के मैं ऐसे उपहार स्वीकार नहीं कर सकता।”

साधु मुस्कुराया और बोला, “मुझे एक ऐसे साहसी व्यक्ति की आवश्यकता है जो मेरे आध्यात्मिक प्रयोजन में मेरी सहायता कर सके। क्या आप मेरा साथ देंगे?” राजा ने उसकी बात बिना किसी झिझक के स्वीकार कर ली। तब साधु ने कहा, “राजन, अगली अमावस की रात आप नगर से बाहर स्थित श्मशान भूमि पर आएँ। वह यहाँ से बीस मील दूर है। मैं बरगद के पेड़ के नीचे आपका इंतज़ार करूँगा।” राजा ने उसकी बात मान ली।

निर्धारित रात को राजा ने अपना सिर और शरीर ढकने के लिए काला वस्त्र ओढ़ा और बिना किसी को बताए अकेले ही उस गहन वन में पहुँच गया। साधु पहले से वहाँ खड़ा उसकी प्रतीक्षा कर रहा था। उसने राजा को देखकर कहा, “राजा विक्रम, इस जंगल के दक्षिणी हिस्से में एक पुराना इमली का पेड़ है। उसके ऊपर एक शव उल्टा लटका हुआ है। उसे मेरे पास ले आइए।”

राजा ने बिना किसी भय के इमली के पेड़ की ओर चलना शुरू कर दिया। पेड़ के पास पहुँचकर उसने देखा कि सचमुच एक शव उल्टा लटका हुआ था। राजा ने उसे नीचे उतारा ही था कि वह शव अचानक जोर से हँस पड़ा। वह हँसी इतनी विचित्र और भयानक थी कि किसी भी सामान्य व्यक्ति का हृदय काँप उठे, लेकिन राजा विक्रम स्थिर खड़ा रहा। उसे समझ आ गया कि यह कोई साधारण शव नहीं, बल्कि भूत है।

राजा ने निर्भय होकर उस शरीर को अपने कंधों पर उठाया और वापस चलने लगा। कुछ दूर चलते ही वह भूत उसके कंधों से फिसलकर वापस पेड़ पर जा लटका। राजा फिर चढ़ा, उसे नीचे उतारा और कंधे पर रखकर आगे चल पड़ा। तभी भूत ने कहा, “मैं बेताल हूँ। तुम कौन हो और मुझे कहाँ ले जा रहे हो?”

राजा ने शांति से उत्तर दिया, “एक साधु ने मुझे तुम्हें उसके पास लाने के लिए कहा है।”

बेताल ने यह सुनकर कोई आपत्ति नहीं की, पर उसने राजा के सामने एक शर्त रखी। वह बोला, “हम दोनों को लंबा रास्ता तय करना है। यात्रा को कम उबाऊ बनाने के लिए मैं तुम्हें कहानियाँ सुनाऊँगा, पर तुम एक भी शब्द नहीं बोलोगे। यदि तुमने एक शब्द भी कहा, तो मैं तुरंत उड़कर अपने पुराने स्थान पर लौट जाऊँगा। क्या तुम यह शर्त मानते हो?”

राजा ने बिना सोचे समझे उसकी शर्त स्वीकार कर ली और मौन रहते हुए बेताल की पहली कहानी सुनने लगा। उस रात से शुरू हुआ यह अद्भुत सफर, आने वाले समय में अनेक रहस्यों, प्रश्नों और परीक्षाओं से गुजरकर आगे बढ़ने वाला था।

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