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विक्रम और बेताल: सत्य प्रेम और छलावा भाग उन्नीस

विक्रम और बेताल की कहानियाँ

विक्रम और बेताल: सत्य प्रेम और छलावा 

रात अपने गहरे सन्नाटे के साथ पूरी तरह जंगल पर फैल चुकी थी। पेड़ों की शाखाओं के बीच चाँद की हल्की रोशनी ऐसे उतर रही थी जैसे आसमान से किसी ने टूटे मोतियों को धीरे धीरे धरती पर बिखेर दिया हो। राजा विक्रम, अपने दृढ़ कदमों के साथ, बेताल को कंधे पर उठाए उसी अंधेरे में आगे बढ़ रहे थे। बेताल का शरीर हमेशा की तरह ठंडा था, पर इस बार उसकी चुप्पी अजीब थी। विक्रम को लगा कि वह कुछ ऐसा सोच रहा है जो सामान्य नहीं।

कुछ दूर चलने के बाद बेताल की आवाज गूँजी। राजन आज की कथा मन, मोह और भ्रम के जाल की कहानी है। वह कहानी जो बताती है कि प्रेम कितना पवित्र होता है और भावनात्मक छल कितना घातक।

विक्रम ने ध्यान से सुना और बेताल ने कहानी आरंभ की।

एक राज्य में देवदास नाम का युवक रहता था। वह शांत स्वभाव का, पढ़ा लिखा और मददगार था। उसे संगीत का शौक था और अक्सर शाम को नदी किनारे बैठकर बांसुरी बजाता था। उसकी धुन सुनकर गांव वाले कहते थे कि उसके संगीत में जादू है। देवदास ने अपने जीवन को सरल बनाए रखा था और उसकी एक ही इच्छा थी कि वह किसी सच्चे और निर्मल मन वाली युवती से जीवन साथी पाए।

उसी राज्य में सुहानी नाम की एक सुंदर और विनम्र युवती रहती थी। वह अपने माता पिता की इकलौती संतान थी। सुहानी का स्वभाव मधुर था और उसकी मुस्कान लोगों का मन मोह लेती थी। वह दयालु थी और अक्सर गांव के गरीबों की मदद करती। गांव में हर कोई उसका सम्मान करता था।

देवदास ने पहली बार सुहानी को तब देखा जब वह नदी के किनारे सूखी लकड़ियाँ इकट्ठी कर रही थी। हवा उसके लंबे बालों को उड़ा रही थी और सूरज की रोशनी उसके चेहरे पर पड़कर उसे किसी स्वप्न समान बना रही थी। देवदास उसकी साधारण सी उपस्थिति में छिपी शालीनता से प्रभावित हुआ। उसने पहली बार अपने हृदय में हलचल महसूस की।

अगले कई दिनों तक दोनों नदी किनारे एक दूसरे से मिलते रहे। सुहानी देवदास के संगीत को पसंद करती थी और देवदास सुहानी के भीतर छिपी सरलता की प्रशंसा करता था। धीरे धीरे दोनों के बीच अच्छी मित्रता हो गई। यही मित्रता प्रेम में बदलने लगी लेकिन दोनों ने कभी इसे स्वीकार नहीं किया। प्रेम उनके मन में था, शब्दों में नहीं।

लेकिन कहानी में मोड़ तब आया जब राज्य में एक और युवक आया। उसका नाम तिलक था। तिलक बाहर से आकर्षक और मीठा बोलने वाला था। उसकी मुस्कुराहट में ऐसा आकर्षण था कि कोई भी उस पर जल्दी विश्वास कर लेता। लेकिन उसके मन में लालच और स्वार्थ भरा था। वह अपनी बातों में लोगों को फँसाने में माहिर था।

तिलक ने जल्द ही समझ लिया कि देवदास और सुहानी के बीच एक नरम रिश्ता पनप रहा है। उसे यह सब अच्छा नहीं लगा क्योंकि वह सुहानी में अपना लाभ देख रहा था। सुहानी के पिता गांव में सम्मानित किसान थे और उनकी अच्छी संपत्ति थी। तिलक ने सोचा कि यदि वह सुहानी का भरोसा जीत ले, तो उसके पिता की दौलत उसका भविष्य बदल सकती है।

तिलक ने योजनाबद्ध तरीके से सुहानी के आस पास जाना शुरू किया। वह उसे मीठी बातें कहता, छोटी छोटी मदद करता और बातचीत में खुद को बेहद समझदार और दयालु दिखाता। धीरे धीरे सुहानी भी उसके प्रति विनम्र हो गई। उसे तिलक की बातों में कोई खतरा नहीं दिखा।

देवदास तिलक की मंशा को समझ रहा था। उसे महसूस हुआ कि तिलक किसी और उद्देश्य से सुहानी के करीब आ रहा है। लेकिन सुहानी को आहत करने से बचने के लिए देवदास चुप रहा। वह चाहता था कि सुहानी खुद सच पहचान ले।

एक शाम तिलक ने सुहानी से कहा कि अगर वह सच में उसे अपना मित्र मानती है तो उसे यह साबित करना होगा कि वह उस पर भरोसा करती है। उसने सुहानी से कहा कि उसके परिवार के कुछ लोग कठिन परिस्थिति में हैं और उसे मदद की जरूरत है। सुहानी दया के कारण तुरंत सहमत हो गई। तिलक ने उससे कुछ धन मांगा और सुहानी ने अपने पिता की नजरों से बचकर वह धन उसे दे दिया।

देवदास को जब यह बात पता चली तो उसका दिल भारी हो गया। उसे डर लगा कि सुहानी किसी जाल में फँस रही है। लेकिन सुहानी को सच बताने से पहले ही तिलक गांव से गायब हो गया। सुहानी कई दिनों तक उसकी प्रतीक्षा करती रही। उसने सोचा कि शायद वह वापस आएगा। लेकिन तिलक कहीं नहीं दिखा।

कुछ सप्ताह बाद खबर आई कि पास के जंगल में लुटेरे पकड़े गए हैं। उनके पास से गांव का वह धन भी मिला जो सुहानी ने तिलक को दिया था। तिलक किसी लुटेरे से कम नहीं था। उसी ने उनका मार्ग दिखाया और धन हड़पने के लिए उन्हें साथ मिला लिया था। परंतु विवाद होने पर लुटेरों ने उसे घायल कर जंगल में छोड़ दिया।

जब सिपाही तिलक को उठा कर लाए और सच्चाई सामने आई, सुहानी के मन पर बिजली गिर गई। उसकी आंखों में आंसू थे पर वह टूट नहीं रही थी। धीरे धीरे उसने सच्चाई को स्वीकार किया। वह जान गई कि सहानुभूति और प्रेम अलग भावनाएँ हैं। किसी का दर्द महसूस करना और किसी झूठे व्यक्ति पर विश्वास कर लेना दोनों में फर्क है।

देवदास ने सुहानी को संभाला। उसने उसे समझाया कि सच्चा प्रेम कभी दबाव नहीं डालता, न कोई प्रमाण मांगता है। सच्चा प्रेम अपने आप में आत्मविश्वास रखता है और किसी को भावनाओं में फँसाकर अपने स्वार्थ पूरे नहीं करता।

समय के साथ सुहानी पहले से मजबूत और समझदार बन गई। उसने तिलक को क्षमा तो कर दिया पर उसके साथ कोई संबंध नहीं रखा। देवदास और सुहानी ने धीरे धीरे अपने सच्चे और निर्मल प्रेम को स्वीकारा और गांव में लोगों ने उनके रिश्ते का सम्मान किया।

इतना कहकर बेताल ने विक्रम से पूछा। राजन आपको क्या लगता है? क्या सुहानी को तिलक को दूसरा अवसर देना चाहिए था क्योंकि वह अंत में घायल मिला? या उसे अपने आत्मसम्मान को प्राथमिकता देते हुए उससे दूर रहना ही सही निर्णय था?

राजा विक्रम ने तुरंत उत्तर दिया। सुहानी का निर्णय सही था। कोई गलती भावनाओं में हो जाए तो वह सामान्य है, लेकिन छल किसी व्यक्ति के स्वभाव में छिपा होता है। तिलक ने अपने स्वार्थ के लिए विश्वास का दुरुपयोग किया, और जो व्यक्ति एक बार भावनात्मक छल करता है वह दोबारा भी वही करेगा। आत्मसम्मान और सत्य प्रेम हमेशा छल से ऊपर होते हैं।

विक्रम का तर्क सुनकर बेताल जोर से हँसा और हवा में गायब हो गया। विक्रम को फिर लौटकर पेड़ की ओर जाना पड़ा और इस प्रकार एक नई चुनौती उनकी प्रतीक्षा करने लगी।

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