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विक्रम और बेताल: असली योद्धा कौन? भाग पंद्रह

विक्रम और बेताल की कहानियाँ

विक्रम और बेताल: असली योद्धा कौन?

अंधेरी रात, घने पेड़ों की कतारें और हवा में फैलती मिट्टी की गंध। राजा विक्रमादित्य अपनी तलवार कमर पर बांधे हुए उसी दृढ़ कदमों से आगे बढ़ रहे थे जिन पर पूरा राज्य गर्व करता था। बेताल उनके कंधे पर उल्टा लटका था, पर उसकी आँखों में वही पुरानी चमक थी, जैसे वह हर बार विक्रम को किसी नई पहेली में फँसाने का इंतज़ार कर रहा हो। आज की रात भी कुछ अलग नहीं होने वाली थी।

जैसे ही विक्रम ने कुछ कदम और बढ़ाए, बेताल ने अपनी धीमी लेकिन पैनी आवाज़ में कहा, “राजन, आप जानते हैं कि मैं बार-बार आपकी पकड़ से छूट जाता हूँ, पर आप फिर भी लौट आते हैं। यह जिद क्यों? क्या आपको लगता है कि कोई असली योद्धा सिर्फ तलवार चलाने से बन जाता है?”

विक्रम ने उत्तर नहीं दिया। वह जानते थे कि बातचीत का कोई भी टुकड़ा बेताल को कहानी शुरू करने का निमंत्रण दे देता है। और हुआ भी ऐसा ही।

“आज,” बेताल ने कहा, “मैं आपको एक ऐसी कथा सुनाता हूँ जिसमें यह सवाल उठता है कि असली योद्धा कौन होता है।”

बेताल ने कहानी शुरू की। एक बार की बात है, एक राज्य में दो योद्धा रहते थे। पहला था आर्यन, जिसकी ताकत और तलवारबाज़ी के किस्से पूरे राज्य में मशहूर थे। दूसरा था विक्रमानंद, जो शारीरिक रूप से कमजोर था लेकिन उसका हृदय और बुद्धि बहुत तेज़ थी। दोनों को राजा ने एक कठिन कार्य पर भेजा — एक विशाल राक्षस जो गांवों में आतंक फैलाता था, उसे हराना।

आर्यन सीधे राक्षस के पास गया और तलवार से उस पर हमला करने लगा। उसने अपनी सारी शक्ति और कौशल दिखाए। पर राक्षस हर वार से बच जाता और उसकी शक्ति दिन-ब-दिन बढ़ती चली जाती। दूसरी ओर, विक्रमानंद ने राक्षस का अध्ययन किया। उसने देखा कि राक्षस किसी विशेष जड़ी-बूटी की खुशबू से शांत हो जाता है। उसने गांव के लोगों से जड़ी-बूटी इकट्ठा कर उसे राक्षस के सामने रखा। राक्षस पहले तो हमला करने आया, पर जड़ी-बूटी की खुशबू से उसकी आंखें ढक गईं और वह धीरे-धीरे शांत हो गया।

जब दोनों योद्धा लौटे, राजा ने पूछा, “तो असली योद्धा कौन है?” सभी लोग कहने लगे कि आर्यन क्योंकि उसने राक्षस से सीधा सामना किया। लेकिन राजा ने कहा, “विक्रमानंद ने भी राक्षस को हराया। उसने धैर्य, बुद्धि और रणनीति का इस्तेमाल किया।”

विक्रम ने बेताल की ओर देखा और गंभीर स्वर में कहा, “तो असली योद्धा वह नहीं जो केवल शक्ति दिखाता है, बल्कि वह जो परिणाम तक पहुँचने के लिए समझ और योजना का उपयोग करता है।”

बेताल मुस्कुराया। “सही कहा, राजन। पर क्या आप जानते हैं कि असली परीक्षा अभी बाकी है? उस राक्षस की तरह, असली चुनौती हमेशा सामने नहीं आती। असली योद्धा वह होता है जो हर कठिनाई में धैर्य और बुद्धिमानी से काम ले।”

रात गहराती चली गई। विक्रम और बेताल ने जंगल के उस अंधकार में कई और कहानियाँ साझा कीं। बेताल ने विक्रम को एक और कहानी सुनाई — एक राजा की जो केवल तलवार की ताकत पर विश्वास करता था और हमेशा युद्ध में हारता था। उसकी सामरिक कमजोरी और जल्दबाज़ी उसकी सबसे बड़ी दुश्मन बन गई थी। वहीं उसके सिपाही, जो शांति और योजना के साथ कार्य करते थे, वही असली योद्धा साबित हुए।

विक्रम ने मन ही मन सोचा कि यह सबक उनके लिए भी महत्वपूर्ण था। केवल तलवार चलाना ही नहीं, बल्कि हर समस्या का समीक्षा करना, योजना बनाना और धैर्य रखना, यही असली शक्ति है।

लेकिन जैसे ही विक्रम ने कहानी की गहराई में उतरकर सोचने की कोशिश की, बेताल ने अचानक कहा, “राजन, अब मुझे उड़ जाना होगा!” और वह फिर से उड़ गया, उसकी हल्की हँसी हवा में गूँज रही थी। विक्रम ने उसे देखते हुए सिर हिलाया। उसे पता था कि बेताल की यह आदत है — हर बार कहानी सुनाने के बाद गायब हो जाना और अगली बार किसी नए सवाल के साथ लौटना।

विक्रम ने जंगल की ओर देखा और अपने मन में तय किया कि चाहे बेताल कहीं भी उड़ जाए, वह हमेशा सीख और समझ के लिए तैयार रहेगा। केवल ताकत से नहीं, बल्कि धैर्य, बुद्धि और सही निर्णय से ही असली योद्धा बनता है।

जैसे ही सूरज की पहली किरणें पेड़ों की शाखाओं से छनकर आईं, विक्रम ने अपने आप से कहा, “आज की रात की कहानियाँ और बेताल की शिक्षा मुझे सिखाती हैं कि असली योद्धा वही है जो समझदारी और साहस के साथ हर चुनौती का सामना करे।”

और इस तरह, भाग पंद्रह का अंत हुआ। विक्रम और बेताल की यह यात्रा केवल युद्ध और लड़ाई की नहीं, बल्कि ज्ञान और समझ की यात्रा थी। असली योद्धा वही है जो केवल बाहरी युद्ध में नहीं, बल्कि जीवन की हर चुनौती में धैर्य, बुद्धि और नैतिक साहस दिखाता है।

शिक्षा: असली योद्धा वह है जो केवल शक्ति से नहीं, बल्कि बुद्धि, धैर्य और सही निर्णय से जीत हासिल करता है।

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